जयपुर

पार्टी की राष्ट्रीय नीतियों (National Policies) पर चलने में राजस्थान भाजपा (Rajasthan BJP) नाकाम, एससी-एसटी वर्ग निकल रहा हाथ से

अनुसूचित जाति-जनजाति कांग्रेस के लिए बड़े वोट बैंक है और पिछले एक दशक से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की इन वर्गों पर नजर है। उसका प्रयास है कि यह वर्ग भाजपा के पाले में आ जाएं। भाजपा पूरे देश में नीति पर चल रही है और उसे इस तरह की राष्ट्रीय नीतियों (National Policies) के कारण बहुत सी सफलताएं भी मिली हैं। लेकिन, राजस्थान भाजपा (Rajasthan BJP) को पार्टी की इस राष्ट्रीय नीति से कोई सरोकार नहीं दिखाई दे रहा है। प्रदेश भाजपा इन वर्गों के दिल में उतरने के बजाय, इनके कंधों पर बंदूक रखकर राजनीति करने में लगी है। यही वजह है कि एससी-एसटी वर्ग का वोट बैंक भाजपा के खाते में आने बजाय कांग्रेस के पाले में ही जाता दिख रहा है।

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग के लिए विशेष रणनीति पर काम कर रहा है। पूरे देश में भाजपा के केंद्रीय नेताओं का जहां भी प्रवास होता है, वहीं उनका भोजन एससी-एसटी, ओबीसी कार्यकर्ताओं के घरों में ही होता है। पिछले विधानसभा चुनावों में अमित शाह जयपुर आए, तो उन्होंने भी एक कार्यकर्ता के घर पर भोजन किया। इसके जरिए भाजपा इन वर्गों के लोगों के दिलों में जगह बनाने में लगी है क्योंकि भाजपा पर सवर्णों वर्ग की पार्टी होने का ठप्पा लगा हुआ है और समझा जाता है कि इसी वजह एससी-एसटी वर्ग भाजपा से दूरी रखता रहा है।

एक सप्ताह से प्रदेश भाजपा की राजनीति जयपुर नगर निगम ग्रेटर के इर्द-गिर्द घूम रही है। इस दौरान एसी-एसटी वर्ग से जुड़े दो मामले सामने आए। इनमें एक विद्याधर नगर स्थित कच्ची बस्ती को उजाड़ने और दूसरा नगर निगम ग्रेटर में सफाईकर्मियों के स्थायीकरण का। एक तरफ भाजपा विद्याधर नगर मामले को लेकर राजस्थान प्रदेश सरकार को बदनाम करने की राजनीति करती रही, उधर सरकार की ओर से नगर निगम ग्रेटर के सफाईकर्मियों के स्थायीकरण का आश्वासन दे दिया गया। इससे पूर्व सरकार नगर निगम हैरिटेज में भी नए सफाईकर्मियों का स्थायीकरण करके वाल्मिकी समाज को अपने पक्ष में ला चुकी है।

ऐसे में सवाल उठता है कि जब हेरिटेज निगम का कांग्रेसी बोर्ड सफाईकर्मियों का स्थायीकरण कर चुका था, तो ग्रेटर में भाजपा बोर्ड क्या करता रहा? भाजपा बोर्ड ने सफाईकर्मियों के स्थायीकरण का प्रयास क्यों नहीं किया? यदि महापौर सौम्या गुर्जर सफाईकर्मियों के स्थायीकरण के लिए प्रयास करती तो शायद भाजपा इस समाज के दिलों में जगह बना पाती।

इसके उलट महापौर विद्याधर नगर में घुमंतु जाति के लोगों की बस्ती को उजाड़ने के मामले को लेकर राजनीति करने में जुटी हैं। कहा जा रहा है कि मजबूरी में पूरी भाजपा को उनका साथ देना पड़ रहा है। क्या इन वर्गों के कंधों पर बंदूक रखकर राजनीति करने से भाजपा इनका दिल जीत पाएगी? विद्याधर नगर में जो हुआ, सो हुआ, इस निंदनीय घटनाक्रम के बाद महापौर सौम्या का फर्ज बनता था कि वह इन लोगों का पुनर्वास कराती, उनके भोजन की व्यवस्था कराती लेकिन वह राजनीति करने में जुट गई।

वाल्मिकी समाज की नाराजगी का भुगतना पड़ा खमियाजा
प्रदेश में पिछली भाजपा सरकार के समय 21 हजार सफाईकर्मियों की भर्तियां की गई थी। जयपुर में भी 4957 सफाईकर्मियों की भर्तियां हुईं। वाल्मिकी समाज की मांग थी कि इन भर्तियों में सिर्फ उनके ही समाज को नौकरियां दी जाएं लेकिन भर्तियों में सामान्य, ओबीसी और एसटी वर्ग के लोगों को भी सफाईकर्मी बनने का मौका मिल गया, जिससे वाल्मिकी समाज भाजपा से नाराज हो गया। वहीं सफाईकर्मियों को अभी तक स्थायीकरण का भी लाभ नहीं मिल पाया।

पूर्व महापौर की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण भाजपा को नुकसान
एससी वर्ग की नाराजगी का खमियाजा भाजपा को पहले विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा और जिन विधानसभा क्षेत्रों में एससी वर्ग बहुतायत में था, वहां भाजपा को हार मिली। इसके बाद हुए लगभग सभी चुनावों में एससी वर्ग ने कांग्रेस का साथ दिया। इन भर्तियों से पूर्व सरकार ने वित्त विभाग का हवाला देते हुए साफ कर दिया था कि सरकार इन भर्तियों के लिए वित्त व्यवस्था नहीं करेगी, इसके बावजूद तत्कालीन महापौर अशोक लाहोटी ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते गलत निर्णय लिया और भर्तियां कराई। भाजपा सूत्रों का कहना है कि इसमें उनका साथ तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष ने दिया।

भाजपा गायों और दलितों की राजनीति कर रही है। सवर्ण वोट बैंक बचाने की चलते भाजपा पहले गायों की मौत के मामले में महापौर निर्मल नाहटा का त्यागपत्र ले चुकी है, तो क्या अब दलितों के दिलों में जगह बनाने के लिए वर्तमान महापौर का त्यागपत्र लिया जाएगा?

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