जयपुर

राजस्थान में ओवैसी का 1 तोड़ है, राजस्थान का मूल ओबीसी

एआईएमआईएम-बीटीपी समीकरण से हुए नुकसान की भरपाई कर देंगी मूल ओबीसी जातियां

जयपुर। राजस्थान में सियासी समीकरण अचानक से बदलने लगे हैं। एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी की एंट्री से घबराई कांग्रेस से बुधवार को भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) ने आधिकारिक तौर पर अपना समर्थन वापस ले लिया है। माना जा रहा है कि एआईएमआईएम-बीटीपी के बीच कोई समझौता हो चुका है। इसके खिलाफ कांग्रेस ने बीटीपी के गढ़ में सेंधमारी के लिए कार्ययोजना बनाई है, लेकिन कांग्रेस की यह सारी कवायद बेकार साबित होगी।

कांग्रेस के पास एआईएमआईएम-बीटीपी को कोई तोड़ है तो वह सिर्फ मूल ओबीसी जातियां है। यह तय माना जा रहा है कि ओवैसी की पार्टी राजस्थान की सियासत में जरूर कूदेगी, ऐसे में कांग्रेस मूल ओबीसी जातियों को साध ले, तो ओवैसी राजस्थान में कोई चमत्कार नहीं दिखा पाएंगे, लेकिन जिस जयपुर से ओवैसी का जिन्न प्रकट हुआ, वहीं से ही नई सियासत भी शुरू हो गई है, जो अगले विधानसभा चुनावों में नए-नए समीकरण सामने लेकर आएगी।

जयपुर में मूल ओबीसी जातियों को महापौर पद नहीं दिए जाने से दोनों जातियों में भयंकर आक्रोष फैला है, दोनों जातियां जल्द कांग्रेस और भाजपा से किनारा कर सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजस्थान में ओबीसी में शामिल जाट और गुर्जर समाज को कांग्रेस और भाजपा उचित प्रतिनिधित्व देती आई है, लेकिन माली, कुम्हार और यादव जातियों को आजादी के बाद से ही राजनीति में उचित प्रतिनिधित्व से वंचित रखा गया। इन जातियों के बाहुल्य वाली विधानसभा और लोकसभा सीटों पर स्वर्ण व अन्य लोगों को टिकट देकर दशकों से कांग्रेस-भाजपा ने इन जातियों के हकों पर डाका डाला है।

यदि कांग्रेस इन जातियों को उचित प्रतिनिधित्व दे तो वह ओवैसी-बीटीपी को साथ लेकर भाजपा के अरमानों पर पानी फेर सकती है। कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए ओवैसी-बीटीपी समीकरण जितने वोट काटेगा, उसकी भरपाई मूल ओबीसी जातियां कर देगी।

दूर तलक जाएगी बात

जयपुर में सबसे ज्यादा आबादी वाली मूल ओबीसी जातियों माली और कुम्हार को जयपुर महापौर चुनाव में साफ संदेश मिल गया है कि दोनों पार्टियां उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं देना चाहती है, तभी तो गुर्जर समाज से दोनों महापौर बना दिए गए, जबकि गुर्जर समाज के जयपुर में ज्यादा वोटर नहीं है। पूर्व में भी एक बार जयपुर महापौर पद ओबीसी के नाम आया था। उस समय भी भाजपा ने मूल ओबीसी जातियों को हाशिये पर रखा और शील धाभाई को महापौर बनाया गया था।

कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल के लिए मूल ओबीसी की चढ़ाई बलि

कांग्रेस में तर्क दिया जा रहा है कि पायलट प्रकरण से हुए डैमेज को कंट्रोल करने और आरक्षण की मांग कर रहे गुर्जर समाज को खुश करने के लिए नगर निगम हैरिटेज में मुनेश गुर्जर को महापौर बनाया गया, लेकिन क्या कांग्रेस द्वारा अपने अंदरूनी विवादों को सुलझाने के लिए माली और कुम्हार समाज को हाशिये पर डालना इन दोनों जातियों के हकों पर डाका नहीं है?

भाजपा ने बेवहज बड़े मतदाताओं को किया नाराज

दूसरी ओर ग्रेटर महापौर सौम्या गुर्जर को लेकर न्यायालय में वाद चल रहा है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि गुर्जर को जयपुर महापौर पद के लिए ऊपर से थोपा गया है। इसलिए भाजपा कार्यकर्ता उनकी कुंडली खंगालने में लगे हैं। ऐसे में यहां भी माली-कुम्हार समाज भाजपा के धोखे से तिलमिलाए हुए हैं।

दूसरा विकल्प हो गया जरूरी

अखिल भारतीय क्षत्रीय कुमावत महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री छोटूलाल कुमावत का कहना है कि दोनों निगमों में गुर्जर समाज से महापौर बना दिया गया और सबसे ज्यादा प्रभुत्व वाले कुमावत-माली समाज को दोनों पार्टियों ने दरकिनार कर दिया। अब समय आ गया है कि यह दोनों मूल ओबीसी जातियां कोई दूसरा विकल्प तलाशें। यह दोनों समाज शांतिप्रिय समाज है, लेकिन अब शांति से काम नहीं चलेगा, हकों के लिए लड़ना पड़ेगा।

महापौर पद नहीं दिया, विधायक-सांसद कैसे बनने देंगे

राजस्थान प्रदेश माली (सैनी) महासभा रजि. के अध्यक्ष छुट्टनलाल सैनी का कहना है कि दोनों पार्टियों की हकीकत सामने आ चुकी है। पूरे प्रदेश में प्रभाव रखने वाली इन दोनों जातियों को पार्षद से आगे बढ़ने नहीं दिया जा रहा है। दोनों पार्टियां इनको महापौर का पद पर भी नहीं देखना चाहती है तो वह विधायक और सांसद का टिकट कैसे देगी। दोनों समाजों में इसके खिलाफ भारी आक्रोश है और अगले विधानसभा चुनाव में दोनों जातियां भाजपा और कांग्रेस से किनारा कर सकती है।

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