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‘पश्तूनिस्तान’ की तैयारी: पाकिस्तान में फिर बनेगा ‘बांग्लादेश’, भारत की भूमिका निभाएगा तालिबान

पाकिस्तान और तालिबान के बीच पश्तूनिस्तान आंदोलन को लेकर विवाद चरम पर है। पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान पश्तूनिस्तान आंदोलन को हवा देकर उसके देश को बांटने की कोशिश कर रहा है। वहीं, तालिबान का कहना है कि वह डूरंड लाइन पर बाड़ाबंदी के खिलाफ है, जो पश्तूनों को बांटने का काम कर रहा है।

पाकिस्तान ने 8 नवंबर, 2023 को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान के साथ संबंधों को सामान्य करने से पीछे हटने की पुष्टि की। इसे आधिकारिक तौर पर अफगान तालिबान सरकार के प्रति पाकिस्तान की विदेश नीति में बदलाव के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से काबुल को यह सूचना दी है कि वह तालिबान सरकार को कोई विशेष विशेषाधिकार नहीं देगा।
इसे तालिबान-पाकिस्तान संबंधों में गिरावट के तौर पर देखा जा रहा है। यह पाकिस्तान-अफगानिस्तान संबंधों में बहुत महत्व रखता है, क्योंकि वर्षों से अफगान तालिबान को पाकिस्तान का समर्थन मिल रहा है, जिसमें अगस्त 2021 में काबुल में अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान रिपब्लिकन सरकार को सत्ता से हटाने में सक्रिय भागीदारी भी शामिल है।
काबुल पर तालिबान के कब्जे को पाकिस्तान ने बताया था जीत
पाकिस्तान में कई लोगों के लिए अफगान तालिबान का उदय उसकी दशकों पुरानी नीति की जीत थी। महत्वपूर्ण रूप से, इसे अफगानिस्तान में पाकिस्तान की रणनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटना के रूप में माना जाता है, जो प्रभावी रूप से भारत के लिए एक बहुत बड़ा झटका था। हालांकि, पाकिस्तान के अफगान दृष्टिकोण में यह बदलाव अचानक नहीं है। यह उनके संबंधों की गुणवत्ता में धीरे-धीरे आ रही गिरावट का परिणाम है। इस्लामाबाद ने लगातार अफगान तालिबान पर आरोप लगाया कि उसने अपने क्षेत्र का इस्तेमाल पाकिस्तान तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) जैसे पाकिस्तान विरोधी समूहों को देश के अंदर सीमा पार गतिविधियों के संचालन के लिए करने की अनुमति दी है।
टीटीपी को लेकर तालिबान से नाराज है पाकिस्तान
इस्लामाबाद ने टीटीपी जैसे पाकिस्तान विरोधी समूहों को परिचालन सहायता प्रदान करने के लिए अफगान तालिबान को भी दोषी ठहराया। इस्लामाबाद हाल के महीनों में अपने जनजातीय क्षेत्र में विभिन्न सुरक्षा प्रतिष्ठानों को निशाना बनाकर किए गए आतंकवादी हमलों में वृद्धि के लिए अफगान तालिबान से टीटीपी को मिल रहे इस समर्थन को जिम्मेदार मानता है। अफगान तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने इस्लामाबाद की निंदा करते हुए कहा कि उनका समूह पाकिस्तान की सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार नहीं है और पाकिस्तानी प्रतिष्ठान को अपने घरेलू सुरक्षा क्षेत्र को सुरक्षित करने में असमर्थता के लिए दूसरों को दोष देना बंद कर देना चाहिए। मुजाहिद ने कहा, ‘उन्हें (पाकिस्तानी सरकार) को अपनी घरेलू समस्याएं खुद ही सुलझानी चाहिए और अपनी विफलताओं के लिए अफगानिस्तान को दोष नहीं देना चाहिए।’
पश्तूनिस्तान का विभाजन कर रहा पाकिस्तान
इस्लामाबाद और काबुल के बीच बढ़ते आपसी अविश्वास के बीच पाकिस्तान ने 17 लाख अफगान अप्रवासियों को देश से बाहर निकालने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया है। पाकिस्तान ने अपने देश की असुरक्षा बढ़ाने में इन अफगान अप्रवासियों को सीधे तौर पर दोषी ठहराया है। सबसे पहले इन आप्रवासियों को स्वेच्छा से पाकिस्तान से वापस लौटने के लिए 1 नवंबर की समय सीमा दी थी, जिसे अब आगे बढ़ा दिया गया है। अगर इस अवधि के बाद भी कोई अफगान अप्रवासी पाकिस्तान में पकड़ा गया तो उसे हिरासत में लिया जाएगा और सीमा पार अफगानिस्तान में धकेल दिया जाएगा।
डूरंड लाइन पर तालिबान-पाकिस्तान में तनाव
अक्टूबर में इस ऐलान के बाद से 2,50,000 से अधिक लोगों को पहले ही अफगानिस्तान वापस या निर्वासित किया जा चुका है। यह बताता है कि अफगानिस्तान में काबिज तालिबान और पाकिस्तान के संबंध कितने खराब हो चुके हैं। तालिबान और पाकिस्तान में डूरंड लाइन को लेकर पहले से ही विवाद था, जो पिछले दो साल में हिंसक झड़पों में बदल चुका है। डूरंड रेखा 19वीं शताब्दी के अंत में बनी थी जब ब्रिटिश भारतीय सरकार ने अपने सचिव सर मोर्टिमर डूरंड के माध्यम से अफगानिस्तान के अमीर अब्दुर रहमान खान के साथ नवंबर में अपने क्षेत्रों के बीच सीमाओं को चिह्नित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
डूरंड लाइन को क्यों नहीं मानता तालिबान
ब्रिटिश सरकार और अफगानिस्तान से अमीर अब्दुर रहमान खान की मनमानी ने पश्तून गढ़ को भी विभाजित कर दिया। ऐसे में इस लाइन को कभी भी लोगों ने अपनी मंजूरी नहीं दी और लगातार अफगान शासन और सरकारों ने इसका विरोध किया है। जैसे ही पाकिस्तान, ब्रिटिश भारत से एक अलग देश के रूप में उभरा, उसने डूरंड रेखा को अफगानिस्तान के साथ अपनी आधिकारिक सीमा बना लिया। अफगानों ने इस औपनिवेशिक सीमा की वैधता पर विवाद किया और ब्रिटिश भारत सरकार के साथ सभी समझौतों को शून्य घोषित कर दिया। 31 जुलाई, 1947 को अफगान प्रधानमंत्री शाह महमूद खान ने घोषणा की कि भारत-अफगान सीमा के संबंध में सभी समझौते ब्रिटिश भारतीय अधिकारियों के साथ संपन्न हो चुके हैं, और इसलिए ब्रिटिश भारत का अस्तित्व समाप्त होने के बाद वे सभी अमान्य हो जाएंगे।
पश्तूनिस्तान आंदोलन को हवा दे रहा तालिबान
अफगानिस्तान ने एक स्वतंत्र पश्तूनिस्तान (या पख्तूनिस्तान) की स्थापना की मांग करने वाले समूहों को संरक्षण दिया, जिससे 1950 के दशक में दोनों देशों के बीच संबंध ठंडे रहे। अफगानिस्तान में मुजाहिद आंदोलन के बाद तालिबान ने इस मांग को छोड़ दिया और पाकिस्तान की शरण में चला गया। उस वक्त पाकिस्तान को अमेरिका का संरक्षण प्राप्त था। ऐसे में वह पाकिस्तान के जरिए सभी आवश्यकताओं की पूर्ति में लगा रहा। इस बार 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा जमाया, तब उसे पाकिस्तान की चाल का अंदाजा हुआ। तालिबान यह जान गया कि पाकिस्तान अब कुछ नहीं है और उससे अफगानिस्तान को कोई फायदा नहीं होने वाला है। ऐसे में तालिबान ने एक बार फिर पश्तूनिस्तान आंदोलन को हवा देना शुरू कर दिया।
पश्तूनिस्तान आंदोलन से पाकिस्तान आगबबूला
तालिबान के पश्तूनिस्तान आंदोलन को हवा देने से पाकिस्तान भड़का हुआ है। इसने इस्लामाबाद और काबुल के बीच द्विपक्षीय संबंधों को गर्त में पहुंचा दिया है। पाकिस्तान इस बात से नाराज है कि तालिबान के पश्तूनिस्तान आंदोलन से उसके देश का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। फरवरी 2022 में अफगान तालिबान के डूरंड रेखा पर विवाद की पुष्टि उसके प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने की थी। मुजाहिद ने दोहराया था कि डूरंड रेखा का मुद्दा अभी भी अनसुलझा है। उसने सीमा पर पाकिस्तान के बाड़ लगाने की तुलना एक देश को बांटने से की थी जो पश्तूनिस्तान है। इसलिए, जैसे-जैसे अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, इससे पता चलता है कि काबुल से निपटने की इस्लामाबाद की नीति विफल हो गई है और वहीं पहुंच गई है, जहां से शुरू हुई थी।

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