जयपुर

मंदिर तुड़वाने वाले कर रहे मंदिर की जमीन और पुजारी के नाम पर राजनीति, भाजपा मुख्यालय से 100 मीटर दूर प्रदर्शन, 500 लोग भी नहीं जुटा पाए शहर सांसद, विधायक और पूर्व विधायक

राजस्थान भाजपा में लंबे समय से चर्चा चल रही है कि अगले विधानसभा चुनावों में जयपुर शहर की सभी विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों को बदला जाएगा। गुरुवार को भाजपा प्रदेश कार्यालय से मात्र 100 मीटर दूर आयोजित धरने-प्रदर्शन को देखकर तो यही कहा जा रहा है कि प्रदेश भाजपा की सोच एकदम सही है। कारण यह कि इस धरने में शहर सांसद, विधायकों, पूर्व विधायकों, शहर अध्यक्ष के मौजूद रहने के बावजूद 500 कार्यकर्ताओं की भीड़ नहीं जुट पाई। भाजपा में ही कहा जा रहा है कि इस धरने ने शहर भाजपा की पोल खोलकर रख दी है।

दौसा जिले के महवा के टीकरी गांव निवासी पुजारी की मौत के बाद सांसद किरोड़ीलाल मीणा छह दिनों से शव के साथ धरने पर बैठे थे। गुरुवार सुबह वह शव को किसी तरह जयपुर भाजपा प्रदेश कार्यालय ले आए। यहां से शव को 100 मीटर दूर सिविल लाइंस फाटक पर रखकर धरना शुरू कर दिया गया, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि धरने में 100-150 से ज्यादा लोग नहीं जुट पाए।

अब भाजपा में ही सवाल खड़े हो रहे हैं कि धरने में 500 लोग भी क्यों नहीं जुट पाए, जबकि दिनभर प्रदेश कार्यालय पर ही इससे ज्यादा लोगों की भीड़ रहती है? भाजपा सूत्रों का कहना है कि इसका कारण शहर भाजपा से कार्यकर्ताओं की नाराजगी है। पिछली भाजपा सरकार में शहरभर में मंदिरों को तोडऩे की एकतरफा कार्रवाई की गई थी, जिससे आज भी कार्यकर्ता नाराज हैं।

सूत्रों के अनुसार उस समय शहर के प्राचीन मंदिरों को बचाने के लिए कार्यकर्ता शहर के सभी विधायकों, मंत्रियों और प्रदेशाध्यक्ष के पास भागे-भागे फिर रहे थे, लेकिन किसी ने उनकी सुनवाई नहीं की, बल्कि मौके पर जाकर मंदिरों के टूटने का तमाशा देख रहे थे। ऐसे में कार्यकर्ता कह रहे हैं कि मंदिरों को तुड़वाने वालों को अब मंदिर और पुजारी के नाम पर राजनीति करने का हक नहीं है। शहर भाजपा के सभी नेता अपनी जमीन खो चुके हैं।

फिर सामने आई गुटबाजी

भाजपा में कहा जा रहा कि इस धरने से फिर भाजपा की अंदर की कलह सामने आ गई है। जो नेता धरने में शामिल हुए, उन्हें राजे गुट का बताया गया और कहा गया कि दूसरे गुटों की ओर से कोई भी नेता या कार्यकर्ता धरने में शामिल नहीं हुए। सूत्र कह रहे हैं कि धरने को महवा से जयपुर शिफ्ट करने के पीछे भाजपा में ब्राह्मण खेमे की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन धरने में ब्राह्मण समाज के लोग भी नहीं जुट पाए। दो वैश्य विधायक भी धरने में थे, लेकिन उनके साथ वैश्य समाज के लोग नहीं थे। सांसद भी हाथ हिलाते आए और हाथ हिलाते घर चले गए, जबकि यह सभी लोग जाति का चेहरा बनकर पार्टी से अपने टिकट की मांग करते हैं।

पुराना इतिहास भविष्य में आएगा आड़े

भाजपा सूत्रों का कहना है कि शहर भाजपा नेताओं नें सरकार में रहते हुए जो इतिहास बनाया, भविष्य में वही इतिहास इनके आड़े आएगा। धरने में शामिल एक पूर्व मंत्री पिछली सरकार में परकोटे के मंदिरों को तोडऩे के लिए बनाई कमेटी के सदस्य थे। मंदिरों को तोडऩे की रणनीति इन्हीं के बंगले पर बनी। शहर के मंदिरों पर एकतरफा कार्रवाई में सांसद का भी मौन समर्थन था।

परकोटा क्षेत्र के दो पूर्व विधायक मंदिरों के विध्वंस की सभी कार्रवाइयों में शामिल रहे। एक विधायक अपने क्षेत्र में मंदिरों को टूटने से रोकने में सफल रहे, लेकिन शहरभर में टूट रहे मंदिरों पर मौन रहे। एक विधायक जो पूर्व में महपौर थे, ने अपनी कुर्सी पक्की करने के लिए निगम मुख्यालय में वास्तु परिवर्तन कराना शुरू किया और मुख्यालय में बने दो मंदिरों को तुड़वाने की पूरी तैयारी कर ली थी। इन बातों को शहर भाजपा कार्यकर्ता न भूले हैं और न ही कभी भूलेंगे।

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