जयपुर

‘फ्लाइंग सिख’ पद्मश्री मिल्खा सिंह (91) ने जमीन छोड़ भरी ‘आसमानी उड़ान’

फिटमेस की मिसाल और देश के खेल रत्न ‘फ्लाइंग सिख’ पद्नश्री मिल्खा सिंह (91) ने शुक्रवार, 18 जून को जमीन छोड़ आसमानी उड़ान भरी। वे जीवन के अंतिम दौर में बीमारी से पूर्व तक पूर्ण रूप से फिट और एथलेटिक ट्रेक पर सक्रिय रहे और अनेक लोगों को फिट रहने के लिए प्रेरित करते रहे। यद्यपि हर बीमारी उनसे कोसों दूर रहा करती थी किंतु वे कोरोना महामारी ने उन्हें कुछ ऐसा घेरा कि वे इससे बाहर ही नहीं निकल सके। पांच दिन पहले ही उनकी पत्नी निर्मला कौर का कोरोना से ही निधन हो गया था, उसके बाद से वे सदमें थे। सिंह इतने बीमार थे कि पत्नी की शवयात्रा तक में शामिल नहीं हो सके थे।

मिल्खा सिंह मोहाली के एक निजी अस्पताल में भर्ती रहे थे। यद्यपि अस्पताल में कुछ स्वास्थ्य लाभ होने के बाद उन्हें घर लाया गया किंतु एक बार फिर स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती कराया गया। दो दिन पहले ही उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी और लगा कि उनके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा है लेकिन शुक्रवार को अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। उनका ऑक्सीजन स्तर करीब 55 रह गय था। इसके बाद उन्हें सघन चिकित्सा इकाई में रखा गया पर रात्रि करीब साढ़े ग्यारह बजे उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। राष्ट्रपित रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश-विदेश के राजनेताओं, खेल हस्तियों ने उनके निधन पर श्रद्धांजलि व्यक्त की है।

एक गिलास दूध के लिए लगाई दौड़

मिल्खा सिंह भारत के ऐसे धावक रहे जिनका जीवन बचपन बेहद कठिनाई भरा रहा। उनका जन्म 20 नवम्बर 1929 को वर्तमान पाकिस्तान और तत्कालीन हिंदुस्तान के गोविन्दपुर में एक सिख राठौर (राजपूत) परिवार में हुआ था। भारत विभाजन की अफरा-तफरी में मिल्खा सिंह ने अपने माता-पिता को खो दिया। वे भड़कते दंगों के बीच बचते-बचाते किसी तरह भारत आये। यहां उन्हें एक ढाबे में बर्तन मांझकर जीवन गुजारने को मजबूर होना पड़ा। इसके बाद रोटी के लिए की जाने वाली दौड़ धूप के कारण वे सेना में शामिल हो गये।  यहां उन्होंने सेना के लिए होने वाली एक क्रॉस-कंट्री दौड़ में केवल एक गिलास दूध के लिए 400 से अधिक सैनिकों के साथ दौड़ लगाई। इस दौड़ में छठे स्थान रहने वाले मिल्खा सिंह को आगे के प्रशिक्षण के लिए चुना गया। उसके बाद उनके प्रभावशाली एथलीट करियर की शुरुआत हुई और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

जब एक सैकंड के सौवें हिस्से से चूके ओलंपिक कांस्य

मिल्खा भारत के ऐसे एक मात्र एथलीट रहे जिन्होंने 400 मीटर की दौड़ में एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता था। वर्ष 1958  के टोक्यो एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक, वर्ष 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर और चार गुणा 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीता था। वे वर्ष 1960 के रोम ओलंपिक के बाद दुनिया में एक जाना-माना नाम हो गये जब वे जर्मनी के एथलीट कार्ल कूफमैन से 400 मीटर दौड़ मात्र एक सैकंड के सौवें अंतर से कांस्य पदक से पिछड़ गए थे। यह 400 मीटर की दौड़ उन्होंने 45.73  सैकेंड में पूरी की थी जो करीब 40 वर्षों तक भारत का राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी रहा।

यूं मिली फ्लाइंग सिख की उपाधि

बहुत नाम था 10 के दशक में पाकिस्तानी धावक अब्दुल खालिक का। वर्ष 1960 में मिल्खा सिंह को पाकिस्तान में दौड़ने का मौका मिला। हालांकि वे अपनी कड़वी यादों के कारण पाकिस्तान जाना नहीं चाहते थे लेकिन मिल्खा सिंह के समर्थकों और प्रशंसकों की ओर से उन पर दबाव बनाया गया कि वे पाकिस्तान खालिक की चुनौती को स्वीकारें। लाहौर के खचाखच भरे स्टेडियम में हजारों महिलाएं नकाब हटाकर उन्हें अपने पास से एक बार गुजरते हुए देखने को बेताब थीं।

यहां तक कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अय्यूब भी इस विशेष प्रतिस्पर्धा को देखने के लिए आये थे। भारत-पाकिस्तान के बीच की कड़ी प्रतिद्वंद्विता के दबाव के बीच 200 मीटर की दौड़ के लिए मिल्खा सिंह ट्रेक पर उतरे और गोली की आवाज के साथ उन्होंने ऐसी दौड़ लगाई कि खालिक बस उन्हें कांटे की टक्कर ही दे सके। मिल्खा के पावों की चपलता से पार पाना उनके बस की बात नहीं थी। इस प्रतिष्ठापूर्ण दौड़ की जीत के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अय्यूब ने मिल्खा सिंह को ‘फ्लाइंग सिख’ की उपाधि दी थी.

युद्धबंदी प्रतिद्वंद्वी से मिलने पहुंचे

वक्त ने एक बार फिर पलटा खाया और 1965 के भारत-पाक युद्ध में बंदी बनाए गए यही एथलीट मेजर अब्दुल ख़ालिक़ को मेरठ की जेल में रखा गया। जेल में जवानों को दौड़ते-खेलते देख कर ख़ालिक़ ने बताया की वे भी धावक हैं और मिल्खा सिंह से मिलने इच्छा रखते हैं। इस बात की जानकारी मिलने पर मिल्खा उनसे मिलने मेरठ जेल गये। दोनों गले मिल कर काफी रोए और एक खिलाड़ी का दूसरे देश के खिलाड़ी के साथ ऐसा प्रेम देखकर ही ख़ालिक को सजा पूरी होने से पहले ही छोड़ दिया गया था।

नहीं मिला भारत रत्न और ना राज्यसभा की सदस्यता

पांच दिन पूर्व ही कोरोना पीड़ित होकर जीवन को अलविदा कहने वालीं पत्नी निर्मल कौर के साथ स्वर्गीय मिल्खा सिंह

मिल्खा सिंह की पत्नी स्वर्गीय निर्मल कौर को इस बात का मलाल रहा कि उनके ‘सरदार जी’ यानी मिल्खा सिंह को भारत रत्न नहीं मिल सका। उन्हें पंजाब सरकार ने राज्यसभा में भेजने का प्रस्ताव दिया था कि लेकिन  लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक अफ़सर ने उनकी इस प्रस्ताव पर यह लिख दिया था कि संविधान में खिलाड़ियों को राज्यसभा भेजने का प्रावधान नहीं है।

फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ में फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की भूमिका फरहान अख्तर ने निभाई है

इस बात पर दुखी निर्मल कौर कहा करती थीं कि जब सचिन तेंदुलकर और हॉकी खिलाड़ी दिलीप टिर्की को राज्यसभा में भेजा जा सकता है, तो उनके ‘सरदार जी’ को क्यों नहीं। यद्यपि वे मिल्खा सिंह पर बनी फिल्म भाग मिल्खा भाग को लेकर बेहद खुश थीं। वे इस फिल्म में मिल्खा सिंह की भूमिका निभाने वाले फरहान अख्तर के अभिनय की जबर्दस्त कायल रहीं।

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