प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिनों की रूस यात्रा पर गए हैं। उनकी ये यात्रा इसलिए खास है क्योंकि ये यूक्रेन युूद्ध शुरू होने के बाद पहली बार रूस में हो रही है। क्या है इस यात्रा के मायने, इससे क्या मिलेगा। साथ ही ये भी जानें कि कैसे भारत रूस के साथ यूरोप के साथ संतुलन बनाकर चल रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के बुलावे पर दो दिन के रूस दौरे पर पहुंचे। ये यात्रा कई मायनों में अहम है। रूस हमारा सबसे पुराना और सबसे विश्वसनीय भागीदार देश है। कई संकट के समय साथ निभाता रहा है। अब यूक्रेन युद्ध के समय जब ज्यादातर देश रूस के खिलाफ खड़े हैं, तब भारत एक सच्चे दोस्त की भूमिका निभाते हुए पूरी दुनिया के सामने ये कह रहा है कि हम रूस के साथ हैं। इसके बावजूद भारत ने रूस के धुर विरोधी खेमे के देशों अमेरिका और यूरोप के साथ भी संतुलन बनाए रखा है।
2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से यह मोदी की पहली रूस यात्रा है। यह यात्रा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन की प्रतीक है, जो दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझीदारी में बातचीत का सबसे बड़ा मंच बन चुका है।
यात्रा के दौरान क्या कुछ होगा
यात्रा के दौरान मोदी और पुतिन द्वारा भारत-रूस संबंधों से जुड़े तमाम पहलुओं की समीक्षा की। इस यात्रा में दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग समेत कई तरह के समझौते भी अहम हैं। रूस भारत के लिए सैन्य उपकरणों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। साथ ही, व्यापार और ऊर्जा संबंधों पर समझौतों को और आगे बढ़ाया जाएगा।
भारत बता रहा है कि उसके लिए रूस अहम
जिस तरह से यूक्रेन युद्ध के बाद भारतीय प्रधानमंत्री की वहां की यात्रा हो रही है, वो ये बता रही है कि इस युद्ध के कारण दुनिया में तमाम देशों के रिश्तों में जो जटिलताएं आई हैं, उसमें मोदी का वहां जाना रूस को ये बताने के लिए काफी है कि भारत मजबूती से उसके साथ खड़ा है।
रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ा
रूस से भारत को तेल और ऊर्जा उत्पादों में काफी वृद्धि से व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है। भारत से रूस को होने वाले निर्यात को वो गति नहीं मिल पाई है। रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा 2022-23 में 43 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2023-24 में 57.2 बिलियन डॉलर हो गया। 2023 की पहली तिमाही में भारत को रूस के साथ 14.7 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ था।
भारत अपने हित को तवज्जो देगा
हालांकि, यूरोपीय संघ भारत की मजबूरियों और उसकी विदेश नीति की जटिलता को समझता है। वो भी भारत को नाराज नहीं करना चाहते, क्योंकि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख साझेदार है। भविष्य में भी यूरोपीय संघ भारत के साथ सहयोग जारी रखेगा, साथ ही उसकी स्वतंत्र विदेश नीति के दृष्टिकोण को स्वीकार करेगा। यूरोपीय संघ-भारत के बीच मजबूत संबंध बनाए रखना दोनों पक्षों की प्राथमिकता बनी हुई है।
रूस के साथ संबंधों को एक अलग अहमियत
रूस ने कश्मीर जैसे मुद्दों पर भारत को हमेशा साथ दिया है और भारत के पक्ष में अपने यूएनएससी वीटो का इस्तेमाल किया है। दोनों ही देशों ने एक दूसरे की निंदा करने से परहेज किया है और गुटनिरपेक्षता की नीति को बनाए रखा है।
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