जयपुरपर्यटन

पुरातत्व विभाग बर्बाद कर रहा बारिश का पानी

विद्याधर बाग की बावड़ी में चार दिन से चल रहे दो मडपंप

कम नहीं हो रहा बावड़ी का पानी

जयपुर। राजस्थान जैसे सूखे प्रदेश में बारिश के पानी को अमृत के समान माना जाता है, लेकिन पुरातत्व विभाग इस अमृत को गंदी नालियों में बहा रहा है, जबकि इसकी जरूरत ही नहीं है। बारिश से भरा हुआ पानी कुछ दिनों में जमीन में समा जाता और आस-पस के इलाके को सरसब्ज करता है।

14 अगस्त को जयपुर में हुई भारी बारिश ने घाट की गूणी में भी तबाही मचाई। गूणी में बनी कई दीवारें, छतरियां और विद्याधर बाग की सुरक्षा दीवार दो जगह से क्षतिग्रस्त हो गई। इसी दौरान बारिश का पानी बाग में बनी बावड़ी में लबालब भर गया। बारिश हुए एक महीना बीतने के बावजूद बावड़ी में पानी भरा हुआ था, जिसे अब पुरातत्व विभाग पंप लगाकर नालियों में बहा रहा है।

जानकारी के अनुसार अल्बर्ट हॉल में भरे पानी को निकालने के बाद यहां से दो मडपंप गुरुवार को विद्याधर बाग भेजे गए। गुरुवार से यह मडपंप चल रहे हैं, लेकिन बावड़ी का पानी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। सोमवार सुबह नौ बजे तक बावड़ी में करीब 3 फीट तक पानी भरा था, जबकि बावड़ी के बीच में बना कुआं पूरा पानी में डूबा हुआ था।

पानी की आवक के रास्ते खुले

बावड़ी से पानी निकालने का काम लगातार चल रहा है, लेकिन वर्तमान में बारिश नहीं होने के बावजूद बावड़ी में पानी की आवक बनी हुई है। कर्मचारियों का कहना है कि हम रोज पानी खाली करते हैं और अगले दिन सुबह बावड़ी में फिर से डेढ से दो फीट तक पानी आ जाता है। बावड़ी का पेंदा कई दशकों से टूटा हुआ है। आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण कई बार पेंदे की मरम्मत करवा चुका है, लेकिन पेंदा बार-बार टूट जाता है। ऐसे में पानी पहाड़ों से रिसता हुआ बावड़ी के पंदे से अंदर आ रहा है। कुछ पानी बावड़ी की दीवारों से भी रिसकर आ रहा है।

इस लिए पानी बर्बाद

विभाग की ओर से अब घाट की गूणी में बारिश से हुए नुकसान की मरम्मत कराई जाएगी। मरम्मत कार्य शुरू होने में अभी कुछ महीनों का समय लग सकता है। बावड़ी में पानी का रिसाव खत्म होने में छह महीने से अधिक का समय लग सकता है, ऐसे में छह महीने से पहले बावड़ी की मरम्मत नहीं कराई जा सकती है। आने वाले छह महीने पर्यटकों की भी उम्मीद नहीं है। ऐसे में विभाग बावड़ी से पानी निकालने की बेकार की कवायद कर रहा है। पहाड़ों से पानी की आवक कम होने के बाद बावड़ी का पानी अपने आप जमीन में जाकर स्टोर हो जाता।

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