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सीएम भजन लाल की अग्रिम जमानत को रद्द करने वाली याचिका खारिज

जयपुर के अतिरिक्त सत्र न्यायालय क्रम-4 ने गोपालगढ़ दंगा मामले में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को मिली अग्रिम जमानत रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका सांवरमल चौधरी द्वारा दाखिल की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि भजनलाल शर्मा ने अदालत की अनुमति के बिना विदेश यात्रा कर जमानत की शर्त का उल्लंघन किया है। अदालत ने अपने फैसले में यह कहा कि सांवरमल चौधरी इस मामले में न तो पीड़ित हैं और न ही उनकी ओर से एफआईआर दर्ज कराई गई है, इसलिए उन्हें यह याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे में अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी।
याचिका में भजनलाल शर्मा पर यह आरोप था कि उन्होंने 2013 में सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल की थी। अदालत ने 10 सितंबर 2013 को उनकी जमानत मंजूर करते हुए यह शर्त रखी थी कि भजनलाल बिना अनुमति के देश से बाहर नहीं जाएंगे। याचिका में दावा किया गया था कि अब जबकि भजनलाल प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके हैं और केंद्र में भाजपा की सरकार है, इसके बावजूद अभियोजन पक्ष ने अदालत के आदेश के उल्लंघन पर कोई कार्रवाई नहीं की है। याचिका में अदालत से आग्रह किया गया कि इस आदेश की अवहेलना के चलते भजनलाल शर्मा की अग्रिम जमानत को रद्द कर उन्हें हिरासत में लिया जाए।
मुख्यमंत्री की ओर से अधिवक्ता अश्विनी बोहरा ने अदालत में यह तर्क दिया कि याचिका दाखिल करने वाला एक निजी व्यक्ति है और उसके किसी अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है, इसलिए याचिका खारिज की जानी चाहिए। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया। इसके अलावा, अदालत ने पूर्व विधायक जाहिदा खान और अनीता गुर्जर की उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने जमानत की शर्त के तहत बिना अनुमति विदेश न जाने का प्रतिबंध हटाने का अनुरोध किया था।
गोपालगढ़ हिंसा, जो वर्ष 2011 में हुई थी, के बाद भजनलाल शर्मा, जाहिदा खान और अन्य आरोपी स्थानीय पुलिस स्टेशन पहुंचे थे। इस हिंसा के मामले में सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू की थी। गिरफ्तारी से बचने के लिए वर्ष 2013 में जाहिदा खान, अनीता गुर्जर, जमशेद खान, प्रमोद शर्मा, जवाहर सिंह बेडम, केसरी सिंह, गिरधारी तिवारी और भजनलाल शर्मा सहित कई अन्य आरोपियों ने अग्रिम जमानत की अर्जियां दाखिल की थीं। इन अर्जियों पर सुनवाई के बाद अदालत ने इन्हें अग्रिम जमानत प्रदान की थी।
इस मामले में अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि जमानत की शर्तों का उल्लंघन या अदालत की अनुमति के बिना विदेश जाने का आरोप लगाना तभी न्यायोचित हो सकता है जब पीड़ित पक्ष स्वयं शिकायत दर्ज कराए।

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