अपने फायदे के लिए पार्षदों को मोहरा बनाने की जुगत में विधायक
जयपुर। नगर निगम के पिछले बोर्ड में महापौर बदलने के दौरान भाजपा पार्षदों में हुई बगावत का अब नगर निगम के चुनावों पर गहरा असर आ सकता है। शहर भाजपा में उस समय शुरू हुई सिर फुटौव्वल अभी तक भी जारी है और निवर्तमान पार्षद व टिकट के कद्दावर दावेदार न तो विधायकों की सुनने को तैयार हैं और न ही संगठन की।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि दावेदारों में विधायकों और पूर्व विधायकों को लेकर भारी रोष है। कहा जा रहा है कि शहर में तीन दशकों से अपना प्रभाव जमा रहे विधायकों की कुर्सियां हिली हुई है। शहर में उनका भारी विरोध चल रहा है। पिछले विधानसभा चुनावों में तो उन्होंने जोड़-जुगाड़ करके टिकट ले लिया, लेकिन उनको लग रहा है कि अब आम कार्यकर्ता भी उनका विरोधी हो रहा है। ऐसे में वह अपना प्रभाव जमाकर अपने चहेते लोगों को पार्षद का टिकट दिलाने में लगे हैं, ताकि वह अपनी सल्तनत बचा सकें। विधानसभा टिकट नहीं मिलने की स्थिति में ऐसे पार्षद उनके पक्ष में इस्तीफा देकर संगठन को ब्लैकमेल कर सकें।
पिछले विधानसभा चुनावों में ऐसा ही कुछ देखने को मिला था, जबकि भाजपा के एक कद्दावर नेता व मंत्रीजी का टिकट कटने को तैयार था, लेकिन उनके क्षेत्र के कुछ चुनिंदा पार्षदों ने इस्तीफा देने की बात कह भाजपा के बोर्ड को गिराने की धमकी दी, तब जाकर नेताजी को अंत समय में टिकट मिल पाया और वह इस सीट पर हारते-हारते आखिरकार जीत गए। ऐसा ही कुछ तीसरे बोर्ड में हुआ था, जबकि एक अन्य कद्दावर नेता ने भी भाजपा बोर्ड को गिराने की धमकी दी थी। बाद में उन्हें विधानसभा बदलकर टिकट दिया गया था। इससे सीख लेकर अन्य विधायक और पूर्व विधायक भी अपने चहेतों को टिकट दिलाने में लगे हैं, ताकि भविष्य में उनका उपयोग किया जा सके।
सूत्र बताते हैं कि शहर भाजपा में विधायकों और कार्यकर्ताओं के बीच अब ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात ‘वाली स्थिति बनी हुई है। कद्दावर कार्यकर्ता और दावेदार अब विधायकों की भी नहीं चलने दे रहे हैं और सीधे बगावत की बात की जा रही है। कार्यकर्ता, दावेदार और निवर्तमान पार्षद संगठन के पदाधिकारियों तक की नहीं मान रहे हैं और कह रहे हैं कि टिकट वितरण में विधायकों-पूर्वविधयकों का हस्तक्षेप खत्म किया जाए।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब संगठन के पदाधिकारी ही ईमानदार नहीं है तो हम क्यों ईमानदारी का चोला पहने। दो वर्ष पूर्व भाजपा बोर्ड में बगावत हुई, क्रॉस वोटिंग हुई और बोर्ड गिर गया। इसके जिम्मेदार शहर संगठन और विधायक हैं। भाजपा ने शहर अध्यक्ष और दो महामंत्रियों के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं की। यह कार्रवाई भी विधायकों के हस्तक्षेप के कारण रोकी गई और शक के आधार पर कुछ पार्षदों को नोटिस देकर उनकी छवि बिगाडऩे का काम किया गया। ऐसे में टिकट वितरण के समय कौन कार्यकर्ता विधायकों का हस्तक्षेप बर्दाष्त करेगा। ऐसे में यदि टिकट वितरण में जरा सी भी हील हुज्जत हुई तो हंगामा होते देर नहीं लगेगी।