बेंगलुरु । कृषि तथा कृषि संबंधित व्यवसाय भारत में आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत हैं। 70 प्रतिशत ग्रामीण परिवार अब भी अपनी आजीविका के लिए मुख्य रूप से कृषि पर आश्रित हैं। हालांकि भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर है किन्तु ज़्यादातर किसानों के लिए कृषि लाभदायक व्यवसाय नहीं रहा जिस कारण अधिकतर किसान खेती छोड़कर गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। यह स्थिति आनेवाले दिनों में एक गंभीर समस्या बनकर उभर सकती है क्योंकि खेती किसी भी समाज की मुख्य ज़रूरत है।
किसी भी देश के लिए कृषि का मूल्य मात्र आर्थिक पैमाने पर मापा नहीं जा सकता है। ये वो क्षेत्र है जिसके द्वारा लोगों को अपने भोजन के अधिकार की प्राप्ति होती है। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि हर श्रेणी के लोगों को खेती से जोड़ा जाए। इसका हल सिर्फ खेती को लाभदायक व्यवसाय बनाकर नहीं होगा बल्कि इसके लिए ज़रूरत है शहरी लोगों में भी कृषि के प्रति जागरूकता और रूचि पैदा करने की। और इसका सबसे महत्वपूर्ण तथा सरल उपाय यह कि कृषि विज्ञान को प्राथमिक स्तर से ही विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम का एक अभिन्न अंग बनाया जाए जिससे आगे चलकर ये बच्चे कृषि उद्योग को बेहतर बना सकें और इस क्षेत्र में रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न कर सकें।
विद्यार्थी जीवन में कृषि शिक्षा शुरू करने से बच्चों को उनके जीवन और आस-पास की दुनिया का परिप्रेक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिलती है और वे प्रकृति के प्रति बेहतर रूप से अवगत होते हैं। कृषि शिक्षा आवश्यक है, जिससे विद्यार्थियों को ये पता चले की चीनी सुपरमार्केट से खरीदी जाती है किन्तु उसे बनाने में एक गन्ना किसान की मेहनत तथा चीनी मिल का योगदान होता है। उन्हें न सिर्फ अपने द्वारा उगाए फल या सब्जी खाने का आनंद प्राप्त होगा अपितु उन्हें यह पता चलेगा कि खेती कितना कठिन कार्य है और एक किसान कितने आदर और सम्मान का अधिकारी है। बचपन से ऐसे वातावरण को देखने पर ये आने वाली पढ़ी-लिखी पीढ़ियां जब खेती के व्यवसाय को मजबूरी से नहीं बल्कि अपनी पसंद से अपनाएंगी तो यकीनन यह क्षेत्र बेहतर रूप से संगठित और लाभदायक बन सकेगा।
कुछ विद्यालयों ने अपने स्तर पर पहल करके कृषि संबंधित विषयों को अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया है। बंगलुरू निवासी मनोज तथा विनय के अनुसार उनके बच्चों के विद्यालय में जैविक खेती के द्वारा सब्जियां उगाई जाती हैं जिन्हें बच्चों का नाश्ता/ खाना बनाने के काम में लाया जाता है। उनके अनुसार कृषि तथा बागबानी उनके विद्यालय की दिनचर्या का हिस्सा है और इससे विद्यार्थी किसान, भोजन, पेड़, जल या यूं कहें कि संपूर्ण पर्यावरण को महत्व देना सीखते हैं।
बंगलुरू स्थित सृष्टि मोंटेसरी हाउस ऑफ चिल्ड्रन की संस्थापिका श्रीमती कल्पना प्रसाद के अनुसार 6-12 वर्ष की आयु ऐसी है जिसमें बच्चों में अत्यधिक ऊर्जा होती है और वे अपने आसपास के वातावरण को महसूस करना चाहते हैं। उनके अनुसार यह सबसे उपयुक्त समय है जब इन्हें बागबानी से परिचित कराया जाना चाहिए। इस अवधि में सीखी और अभ्यास की गई ये कला उनके साथ जीवनपर्यन्त रहेगी। इसके द्वारा बच्चे धरती तथा पर्यावरण से जुड़ाव महसूस करते हैं और यह अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यदि हम आगे आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण के प्रति उनके कर्तव्य का ज्ञात नहीं कराएंगे तो यह पर्यावरण, समाज और मानवता के प्रति हमारी सबसे बड़ी विफलता होगी।
औरिंको एकेडमी की संस्थापिका डा० चेतना केणी के अनुसार यह आवश्यक है कि कृषि विज्ञान स्कूली पाठ्यक्रम का अंग हो, किन्तु इसके लिए मात्र बागबानी की एक – दो कक्षाएं या एक पौधे का पौधारोपण करना काफी नहीं है। उनके अनुसार कृषि विज्ञान को हर स्तर पर दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाना महत्वपूर्ण है। इसलिए उनके स्कूल में बागबानी तथा कृषि विज्ञान किंडरगार्डन से लेकर बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है। वे कहती हैं कि विद्यार्थियों को, उनके स्तर के अनुसार, खेती के हर खंड- बुवाई से लेकर बिक्री और प्रसंस्करण- से अवगत कराना आवश्यक है तभी आप उनमें इस क्षेत्र के प्रति रुचि जागृत कर सकते हैं। उनके विद्यार्थी स्कूल के बगीचे में साग- सब्जी का उत्पादन करते हैं, हाइड्रोपोनिक्स तथा वर्टिकल गार्डेनिंग जैसी कम जगह में खेती करने वाली तकनीक सीखते हैं और स्कूल द्वारा व्यवस्थित खेतों के दौरे पर जाते हैं। इस प्रकार उन्हें न सिर्फ खेती का ज्ञान होता है बल्कि प्रत्यक्ष रूप से खेती से जुड़ी समस्याओं का ज्ञान होता है। खेती द्वारा जुड़ी इस प्रकार की संपूर्ण शिक्षा प्रदान करके हम उम्मीद कर सकते हैं कि यह बच्चे न सिर्फ पर्यावरण के प्रति सजग रहेंगे, किसानों की मेहनत की कद्र करेंगे बल्कि आगे चलकर खेती से जुड़े व्यवसाय अपनाएंगे और कृषि क्षेत्र की उन्नति के लिए कार्य करेंगे।
कृषि क्षेत्र के बेहतर भविष्य के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि पढ़े-लिखे, वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से सक्षम नौजवान इस क्षेत्र को अपनाएं और इस क्षेत्र को तरक्की और समृद्धि की ओर ले जाएं। दुनिया की आबादी जितनी तेज़ी से बढ़ रही है खेती व्यवसाय से जुड़े लोग तथा खेती के लिए उपयुक्त भूमि उतनी ही तेज़ी से घट रही है। ऐसे में कृषि विज्ञान तथा इससे संबद्धित्त क्षेत्रों को बुनियादी शिक्षा का अंग बनाकर भविष्य की खाद्य समस्या का निराकरण किया जा सकता है।