जयपुर। भाजपा हो या कांग्रेस, इस बार के निकाय चुनावों में बड़ी संख्या में दोनों प्रमुख दलों के कार्यकर्ताओं ने निर्दलीय पर्चा भरा है। अब दोनों संगठन अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए निर्दलीय पर्चा भरने वाले कार्यकर्ताओं की मान-मनौव्वल में लगे हुए हैं, उन्हें संगठन में पद का लालच दिया जा रहा है, ताकि वह अपना नामांकन वापस ले लें।
हकीकत में देखें तो आजकल कार्यकर्ताओं ने कम समय में ऊंचा पद प्राप्त करने के लिए संगठन के खिलाफ जाकर पर्चा भरने और फिर मान-मनौव्वल में संगठन में कोई पद लेकर पर्चा वापस लेने का शार्टकट अपनाया है। निर्दलीय नामांकन कर कार्यकर्ताओं की ओर से संगठन पर दबाव बनाया जाता है, ऐसे में संगठन की ओर से उन्हें पद का लॉलिपॉप मिलता है और वह अपना नामांकन वापस ले लेते हैं।
ऐसा ही कुछ इस समय भी हो रहा है। कांग्रेस और भाजपा के संगठन निर्दलीय पर्चा भरे कार्यकर्ताओं से संपर्क साध कर उन्हें मनाने में लगे हैं। उन्हें संगठन में पद का लालच दिया जा रहा है। भाजपा ने इस कार्य के लिए अपने विधायकों को काम पर लगाया है, तो कांग्रेस ने भी अपने बड़े नेताओं को कार्यकर्ताओं को साधने में लगाया है।
दोनों पार्टियों में 30-30 के करीब ऐसे कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने निर्दलीय पर्चा भरा है। नाम वापसी की तारीख से पूर्व दोनों संगठनों की ओर से इन कार्यकर्ताओं को कुछ न कुछ पद दे दिया जाएगा। दशकों तक संगठन में मेहनत करने के बाद भी पद नहीं मिलता है, लेकिन इस तरह थोड़ा सा दबाव बनाकर यदि साधारण कार्यकर्ता को जिले में पद मिल जाता है, तो वह उसके लिए बड़ी जीत मानी जाती है।
इस शार्टकट से दोनों संगठनों में संगठन निष्ठ कार्यकर्ताओं में रोष है, क्योंकि इन लोगों को संगठन से बगावत करने पर भी ईनाम के तौर पर बड़ा पद मिल जाता है और संगठन निष्ठ कार्यकर्ता मुँह ताकते रह जाते हैं। संगठन के प्रति वफादार कार्यकर्ता कभी संगठन के खिलाफ नहीं जाता है, ऐसे में लंबे समय से देखा जा रहा है कि दोनों ही प्रमुख संगठनों में वफादार कार्यकर्ताओं को दरकिनार करके रखा जाता है।