शिक्षक सम्मान समारोह के दौरान राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूछा कि ट्रांस्फर पोस्टिंग के लिए पैसे देने पड़ते हैं क्या? सामने से शिक्षकों की आवाज आई, हां देने पड़ते हैं, गहलोत ने कहा मामला गंभीर है। मंगलवार को शिक्षक सम्मान समारोह में शिक्षामंत्री गोविंद सिंह डोटासरा की हुई सार्वजनिक किरकिरी के बाद आशंका जताई जा रही है कि उनकी बेलगाम बयानबाजी (Statements) और अदूरदर्शी (short-sighted) निर्णयों (decisions) और कार्यों के कारण मंत्री पद के साथ-साथ उनका प्रदेशाध्यक्ष पद भी ना चला जाए। क्योंकि उनके कारनामों से लगातार सरकार और कांग्रेस को खमियाजा भुगताना पड़ रहा है।
राजधानी में आयोजित राज्यस्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह में उस समय अजीब स्थिति हो गई, जबकि खुद मुख्यमंत्री गहलोत ने शिक्षकों से पूछ लिया कि क्या तबादलों के लिए पैसे देने पड़ते हैं, तो उपस्थित शिक्षकों की ओर से आवाज आई कि हां देने पड़ते हैं। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री गहलोत ने गोविंद सिंह डोटासरा (Dotasara) के संबोधन पर चुटकी भी ले ली कि डोटासरा जी ने ऐसे बातें रखी, जैसे ये आपसे विदाई ले रहे हों। गहलोत ने कहा कि लंबे अरसे से ये आलाकमान को कह रहे हैं कि मुझे एक पद पर रखो। गहलोत की इन चुटकियों ने सियासी हलकों में चर्चाएं तेज हो गई है कि डोटासरा का मंत्री पद जाना तय है। कांग्रेस में कहा जा रहा है कि शिक्षकों द्वारा तबादलों में पैसे देने की स्वीकारोक्ति प्रमुख कारण नहीं है, बल्कि कारण तो कुछ अलग है, जिसके चलते मुख्यमंत्री गहलोत डोटासरा से किनारा कर रहे हैं।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि प्रख्यात समाजवादी विचारक, काशी विश्वविद्यालय के चांसलर और स्वतंत्रता सेनानी आचार्य नरेंद्र देव के पत्रों और लेखों की 1952 में प्रकाशित पुस्तक में उन्होंने कहा था कि यदि कांग्रेस को सत्ता में बने रहना है और जनता के दिलों में राज करना है, तो उन्हें अपने घरों और कार्यालयों का मोह छोड़कर हमेशा सड़कों पर उतरना होगा, लेकिन डोटासरा वर्तमान में राजस्थान में उल्टी गंगा बहा रहे हैं, जिससे मुख्यमंत्री काफी नाराज हैं। कहा जा रहा है कि डोटासरा की बेलगाम बयानबाजी (Statements) और अदूरदर्शी (short-sighted) निर्णयों (decisions) और कार्यों के कारण लगातार सरकार और कांग्रेस को खमियाजा भुगताना पड़ रहा है। ऐसे में यह संभावनाएं जताई जा रही है कि मंत्री पद के साथ-साथ उनका प्रदेशाध्यक्ष पद भी चला जाए।
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से इस समय जोर-शोर से पेट्रोल, डीजल, गैस और बढ़ती महंगाई के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया जा रहा है। यात्राएं निकाली जा रही है। यह यात्राएं शहीद स्मारक से पीसीसी, जिला कलेक्ट्रेट से पीसीसी या फिर सिविल लाइंस फाटक से पीसीसी की ओर निकाली जा रही है। ऐसे में कार्यकर्ता सवाल पूछ रहे है कि यदि कांग्रेस को जनता के बीच में जाना है तो फिर यात्राएं जनता के बीच से पीसीसी की ओर क्यों निकाली जा रही है? पीसीसी से जनता के बीच क्यों नहीं जाया जा रहा? इससे कार्यकर्ताओं को जनता के बीच से निकलकर अपने घरों और दफतरों में जाने का संदेश मिल रहा है।
14 नवबंर को बाल दिवस पर भी स्टेच्यु सर्किल से पीसीसी के लिए पदयात्रा निकाली गई। बताया जा रहा है कि इससे भी मुख्यमंत्री नाराज बताए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री 14 नवंबर को अपने निवास से पीसीसी गए और फिर वहां से रामनिवास बाग स्थित पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू की प्रतिमा पर आयोजित कार्यक्रम में डोटासरा के साथ आए। यदि डोटासरा को इस दिन पदयात्रा करनी थी तो वह पीसीसी से रामनिवास बाग तक क्यों नहीं की गई?
सूत्रों का कहना है कि डोटासरा की बेलगाम बयानबाजी और कार्यों के कारण भी सरकार और कांग्रेस को गाहे-बगाहे खामियाजा भुगतना पड़ता है और वह बार-बार विपक्ष के निशाने पर आ जाते हैं। आरपीएससी प्रकरण में डोटासरा के कारण सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई। अभी हाल ही में उनके एक रिश्तेदार को शिक्षा विभाग में सलाहकार बनाए जाने के मामले ने तूल पकड़ा है। एक गलत आदेश को लेकर उनकी पूर्व में मुख्यमंत्री निवास पर स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल से झड़प भी काफी चर्चाओं में रही।
कांग्रेस में कहा जा रहा है कि अभी तक डोटासरा के विवादों में मुख्यमंत्री उन्हें बचाते आए हैं, लेकिन मुख्यमंत्री की भी एक सीमा होती है। वह कब तक डोटासरा के विवादों को सुलझाते रहेंगे, खुद उनके सामने कई बड़ी समस्याएं है। ऐसे में गहलोत द्वारा ली गई चुटकियों को डोटासरा से किनारा करने के रूप में देखा जा रहा है।