धऱम सैनी
विदेशी छात्रों के साथ संवाद के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर जाति का मुद्दा उछाला है। विदेशी छात्रों से उन्होंने कहा है कि भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतंत्र नहीं है। भारत में जाति की लड़ाई है। राहुल गांधी ने इस बयान के जरिए यह साबित करने की कोशिश की है कि कांग्रेस ने जातिगत जनगणना को मुद्दा बनाकर कोई गलत नहीं किया है। अब यहां यह देखने वाली बात है कि खुद कांग्रेस क्या इस मुद्दे पर निष्पक्ष है? क्या कांग्रेस ने पूरी निष्पक्षता के साथ इस मुद्दे पर काम किया है? या फिर चुनावी लाभ लेने और ओबीसी जातियों को ठगने के लिए यह मुद्दा उठाया है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस ने सिर्फ चुनावी फायदे के लिए जातिगत जनगणना के मुद्दे को हवा दी है। कांग्रेस की इस मुद्दे पर न तो पहले और न ही अब निष्पक्षता से काम करने की मंशा है। कर्नाटक में सरकार बनने के बाद और राजस्थान व छत्तीसगढ़ में सरकार जाने से पहले इतना काम कर सकती थी कि यह मुद्दा पांच राज्यों के चुनाव के साथ—साथ लोकसभा चुनावों में भी पार्टी को अच्छा—खासा फायदा पहुंचा जाता। लेकिन, कांग्रेस इस मुद्दे के प्रति निष्पक्ष नहीं रही और उसने इसे सिर्फ चुनावी फायदे का मुद्दा बनाया। कांग्रेस के योजनाकारों ने सोचा कि अगर इस मुद्दे पर निष्पक्षता के साथ काम किया तो सवर्ण वर्ग के वोटर कांग्रेस के हाथ से निकल जाएंगे और उनका ध्रुविकरण भाजपा की ओर हो जाएगा।
राहुल गांधी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जातिगत जनगणना को प्रमुख मुद्दा बनाया। इसके जरिए सत्ता में काबिज होने के बाद कांग्रेस ने इसपर आगे कोई काम नहीं किया। इसके बाद पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले थे। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस यदि इस मुद्दे पर निष्पक्ष होती तो दोनों राज्यों के आखिरी विधानसभा सत्र में जातिगत जनगणना के लिए बजट का कोई प्रावधान करती, लेकिन दोनों ही राज्यों में ऐसा नहीं किया गया, बल्कि चुनावी लाभ लेने के लिए चुनाव से पहले जातिगत जनगणना को मुद्दा बनाया गया। आजाद समाज पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष विनीत सांखला ने कहा कि राजस्थान में जातिगत सर्वे की मांग उठाई गई, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस मामले पर प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर गेंद केंद्र के पाले में डाल दी, खुद कुछ किया नहीं। वह चाहते तो सर्वे के बजाए जनआधार कार्ड में जाति जोड़ने का काम शुरू करा सकते थे। इससे भी जातियों की असल जनसंख्या आसानी से मालूम चल जाती।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि अगर कांग्रेस कर्नाटक में जातिगत सर्वे के लिए काम करती और राजस्थान व छत्तीसगढ़ में इसके लिए कोई प्रावधान किया जाता तो ओबीसी वर्ग के वोटरों में भरोसा कायम होता और कांग्रेस को हार का मुंह नहीं देखना पड़ता। कांग्रेस को यदि अभी भी इस मुद्दे का फायदा लोकसभा चुनावों में लेना है तो उसे अभी से ही कांग्रेस शासित राज्यों में बजट का प्रावधान कर जातिगत सर्वे के काम को तुरत—फुरत में शुरू करना चाहिए। इसके बिना ओबीसी वोटरों को कांग्रेस पर भरोसा नहीं होगा।