रविवार, 6 जून 2021 संगीत की दुनिया के लिए काली सुबह लेकर आयी। मशहूर कव्वाल सईद साबरी का हृदयाघात से से निधन हो गया। रविवार शाम को ही उन्हें जयपुर के घाटगेट स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक किया गया। वे 85 बरस के थे और बीमार होने से पूर्व तक वे पूरे जोशोखरोश के साथ गाया करते थे।
संगीत की दुनिया में राजस्थान का नाम यूं तो अनेक गायकों और संगीतकारों ने रोशन किया है पर उनमें साबरी बंधुओं के नाम को अलग ही मुकाम हासिल हुआ। सईद साबरी के साथ साथ उनके बटे फरीद और अमीन साबरी उनके जोड़ीदारों के तौर पर गाया करते थे। यह दुर्भाग्य ही है कि इसी वर्ष अप्रेल में ही सईद साबरी के बड़े बेटे उस्ताद फरीद साबरी का भी हृदयाघात से ही निधन हुआ था और अब सईद साबरी के जाने से कव्वाली जगत को गहरा आघात लगा है।
साबरी बंधुओं में अकेले रह गए उस्ताद अमीन साबरी का कहना है, ‘पिता जी सईद साबरी साहब फक्कड़ तबियत इनसान थे, शोहरत की चमक से एकदम दूर। सुनने वाला छोटा हो या बड़ा उनके लिए सभी एक समान हैसियत रखते थे। हमें हर सुनने वाले का दिल से सम्मान करना उन्होंने सिखाया। पहले बड़े भाई फरीद और अब हमारे वालिद साहब के चले जाने हमारा कव्वाली का मंच एकदम सूना हो गया जिसकी भरपाई इस जनम में तो होना नामुमकिन है।’
उल्लेखनीय है कि साबरी बंधुओं ने बॉलीवुड की करीब दस फिल्मों में दर्जनों कव्वालियां गाकर और देश दुनिया के अनगिनत मंचों पर कार्यक्रमों के जरिए सूफियाना कव्वाली की परंपरा को परवान चढ़ाया था। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ फिल्म हिना के लिये गायी उनकी कव्वाली ‘देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए’ ने जबर्दस्त प्रसिद्धि हासिल की। उसके बाद उन्होंने सुभाष घई की 1997 में आई फिल्म ‘परदेस और उसके बाद बोनी कपूर की 1999 में ‘सिर्फ तुम’ सहित कई फिल्मों में अपनी गायकी का जलवा बिखेरा।
sufiana-qavvali-ko-parwan-chadhane-wale-mashoor-qavval saeed-sabri ka nidhan