सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है लेकिन समलैंगिक युगल को बच्चा गोद लेने का अधिकार दे दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत के फैसले से कहा कि इस तरह की अनुमति सिर्फ कानून के जरिए ही दी जा सकती है और कोर्ट विधायी मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। गौरतलब है कि कोर्ट ने 10 दिनों की सुनवाई के बाद 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि समलैंगिक विवाह पर कहा, “विवाह का कोई अयोग्य अधिकार नहीं है सिवाय इसके कि इसे कानून के तहत मान्यता प्राप्त है। नागरिक संघ को कानूनी दर्जा प्रदान करना केवल अधिनियमित कानून के माध्यम से ही हो सकता है। समलैंगिक संबंधों में ट्रांससेक्सुअल व्यक्तियों को शादी करने का अधिकार है।”
आज मंगलवार, 17 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूढ़ ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि होमो सेक्सुअल को भी गोद लेने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि यह स्टीरियोटाइप बात है कि हेट्रो बेहतर पैरेंट्स होंगे और होमो नहीं। यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि कौन बेहतर पैरेंट्स हैं कौन नहीं। हेट्रो ही अच्छे और होमो गलत, यह धारणा गलत है।
अदालत ने कहा है कि शेष सिविल अधिकार के लिए जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डालते हुए कहा कि जीवन साथी चुनना किसी के जीवन का महत्वपूर्ण निर्णय माना जा सकता है। यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के मूल में है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव से मना किया। उल्लेखनीय है कि कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने की इजाजत देने का विरोध किया था। आयोग ने कोर्ट में कहा था कि इस तरह का प्रयोग नहीं होना चाहिए। आयोग ने शोध के आधार पर तर्क दिया गया था कि समलैंगिक जिस बच्चे का पालन करेंगे उसका मानसिक और भावनात्मक विकास कम हो सकता है।
सीजेआई ने कहा कि समलैंगिकता केवल शहरी कॉन्सेप्ट नहीं है। शादी का स्वरूप बदल गया है। यह डिबेट दिखाती है कि विवाह का रूप स्थिर नहीं है। सती प्रथा से लेकर बाल विवाह और अंतरजातीय विवाह तक विवाह का रूप बदला है। विरोध के बावजूद शादियों के स्वरूप में बदलाव आया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह समलैंगिक विवाह में लोगों के अधिकार और पात्रता के निर्धारिण के लिए एक कमेटी बनाए। यह कमेटी समलैंगिकों को राशन कार्ड में एक परिवार के तौर पर दर्शाने पर भई विचार करे। इसके अलावा उन्हें जॉइंट बैंक अकाउंट, पेंशन के अधिकार, ग्रैच्युटी आदि में भी भी अधिकार देने को लेकर विचार किया जाए। कमेटी की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाए।