धरम सैनी
जयपुर। राजस्थान में आगामी 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रमुख चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के चाणक्य अमित शाह होंगे। पूरा चुनाव केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशन में लड़ा जाएगा। इस दौरान प्रदेश के किसी चेहरे को आगे नहीं किया जाएगा। चुनाव जीतने के बाद केंद्रीय नेतृत्व ही मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा करेगा।
इसके पीछे सबसे प्रमुख कारण भाजपा में चल रही गुटबाजी को बताया जा रहा हैराजस्थान भाजपा में चल रही गुटबाजी पर कहा जा रहा है कि दशकों से चली आ रही गुटबाजी को खत्म करने के बजाय केंद्रीय नेतृत्व इस मामले को लटकाए हुए है ताकि आखिर में सभी को केंद्र की शरण में आना पड़े। जब सभी गुट लड़-झगड़ कर केंद्र की शरण में पहुंच जाएंगे, तब राजस्थान में बीस सालों के लिए कमल खिलाने की रणनीति पर काम होगा।
2018 के विधानसभा चुनावों में अमित शाह ने यहां फैली गुटबाजी को देखा। उन्हें समझ आ गया कि इसका कम समय में इलाज नहीं हो सकता है, इसलिए उस समय राजस्थान को उसके हाल पर छोड़ दिया गया। चुनावों के दौरान राजे गुट ने टिकट वितरण में प्रदेश अध्यक्ष मदनलाल सैनी और दूसरे गुट की चलने नहीं दी और भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
छह महीने बाद भाजपा ने लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा और कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। केंद्रीय नेतृत्व को समझ में आ गया कि राजस्थान की जनता मोदी के साथ है और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से ज्यादा प्रभावित है। ऐसे में सभी गुटों को कमजोर किया जा रहा है, ताकि अगला चुनाव केंद्रीय नेतृत्व के हाथ में रहे।
शुरू से रही है गुटबाजी
राजस्थान भाजपा में गुटबाजी तो भैरोंसिंह शेखावत के समय से थी, लेकिन वसुंधरा राजे के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद यह खुलकर बाहर आ गई। चेहरे बदलते रहे, लेकिन यह गुटबाजी खत्म नहीं हो पाई। आलाकमान भी इस गुटबाजी को थामने में विफल हो गया। सूत्रों का कहना है कि 2018 के चुनावों के पहले राष्ट्रीय नेतृत्व ने गुटबाजी को समाप्त करने के लिए सर्जरी करनी शुरू की।
गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए नाम आगे किया गया, लेकिन राजे गुट ने 65 दिनों तक दिल्ली में ही डटे रहकर केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और शेखावत को काबिज नहीं होने दिया। बाद में हालातों को ध्यान में रखते हुए आलाकमान को बीच का रास्ता निकालते हुए मदनलाल सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बनाना पड़ा।
पूनिया नहीं छोड़ पाए छाप
सैनी के असामयिक निधन के बाद सतीश पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाने से भी राजे गुट की भृकुटियां तन गई और लंबे समय तक पूनिया कार्यकारिणी नहीं बना सके। उन्होंने केंद्र के हस्तक्षेप से कार्यकारिणी बनाई, लेकिन अभी तक वह कोई छाप छोडऩे में विफल रहे हैं। वह एक भी प्रदेश स्तर की बैठक आज तक नहीं कर पाए। न तो वह कांग्रेस को निशाने पर ले पाए और न ही पार्टी में ही कोई नवाचार कर पाए।
2023 के चुनाव केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशन में
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इन स्थितियों में केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान में 2023 के चुनावों में कोई नया चेहरा सामने लाने की कोशिशों में लगा है, लेकिन गाहे-बगाहे चर्चा चल जाती है कि प्रदेश में यदि कोई चेहरा है तो वह सिर्फ राजे हैं, जिनका कार्यकर्ताओं और जनता से सीधा जुड़ाव है। ऐसे में इन चुनावों की कमान प्रदेश नेतृत्व के हाथ में रखने के बजाए केंद्रीय नेतृत्व अपने हाथों में लेगा।
राजे गुट की चुप्पी से केंद्र की रणनीति पर संक्षय
जानकारों का कहना है कि अगले विधानसभा चुनावों से पूर्व राजस्थान के लिए बनने वाली रणनीतियों में भाजपा को कई बदलाव करने पड़ेंगे, क्योंकि राजे गुट अभी तक केंद्रीय नेतृत्व के ट्रेप में नहीं फंस पाया है। राजे गुट ने चुप्पी साध रखी है और प्रदेश में चल रहे घटनाक्रम पर पैनी निगाह बना रखी है। राजे गुट पर कई बार हमले किए गए, लेकिन उनकी ओर से अभी तक किसी भी हमले का जवाब नहीं दिया जाना संक्षय की स्थितियां बना रहा है। ऐसे में कहा जा रहा है कि चुनाव से ऐन पहले भाजपा में जमकर भगदड़ मच सकती है।
भाजपा में आलाकमान तय करेगा मुख्यमंत्री
इस बीच नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया का मंगलवार को उदयपुर में दिया गया बयान भी गौरतलब है। कटारिया ने प्रेसवार्ता में कहा कि राजस्थान में पूनिया कटारिया की नहीं बल्कि बीजेपी की सरकार बनेगी। हमारे यहां कार्यकर्ताओं की सरकार बनती है। एक सवाल के जवाब में कटारिया ने कहा कि कुछ लोगों के कहने से या खुद के सोचने से कोई मुख्यमंत्री नहीं बनता। हमारे यहां पार्टी आलाकमान ही निर्णय करेगा मुख्यमंत्री कौन बनेगा?