जयपुर

प्राचीन स्मारकों की सुरक्षा और राजस्थान के पुरातत्व विभाग में फैले भ्रष्टाचार पर मुख्यमंत्री ने लिया प्रसंज्ञान, मंत्री का मौन खड़े कर रहा सवाल

जयपुर। निविदा शर्तों में हेरफेर कर अनुभवहीन ठेकेदारों को प्राचीन स्मारकों का संरक्षण कार्य दिए जाने और पुरातत्व विभाग में फैले भ्रष्टाचार को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रसंज्ञान लिया है। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से विभाग के अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा गया है, लेकिन विभाग के अधिकारी मामले को दबाने में जुटे हैं। हैरानी की बात यह है कि मंत्री मौन धरे बैठे हैं।

क्लियर न्यूज ने 31 दिसंबर को ‘पुरातत्व विभाग राजस्थान-कोई भी ठेकेदार आए, पुरा स्मारकों पर हथौड़े चलाए’, वहीं 1 जनवरी को ‘राजस्थान के पुरातत्व विभाग ने मुख्यमंत्री के निर्देशों की उड़ाई धज्जियां’ खबरें प्रकाशित कर बताया था कि विभाग के अधिकारी कमीशन के फेर में स्मारकों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। संरक्षण की निविदा शर्तों में हेराफेरी कर अनुभवहीन ठेकेदारों को स्मारकों के संरक्षण का काम सौंप रहे हैं। इन्हीं खबरों पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

दूसरी खबर में हमने बताया था कि कोरोना को देखते हुए मुख्यमंत्री ने ठेकेदारों से वसूली जा रही अंतर राशि को हटाने के निर्देश दिए थे, लेकिन विभाग के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री के आदेशों को भी मानने से इन्कार कर रखा है और ठेकेदारों से अंतर राशि वसूल कर रहे हैं, ताकि ठेकेदार उनके दबाव में रहे और मोटा कमीशन देने के साथ ही बिलों में एडजस्टमेंट करके अधिकारियों की जेबें भरते रहें।

सूत्रों का कहना है कि खबर प्रकाशित होने के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से पुरातत्व कला एवं संस्कृति विभाग की शासन सचिव मुग्धा सिन्हा को पत्र लिखकर इन खबरों पर स्पष्टीकरण मांगा गया था। मुख्यमंत्री कार्यालय से पत्र प्राप्त होते ही सिन्हा ने उसी दिन निदेशक से स्पष्टीकरण मांग लिया, करीब एक पखवाड़ा बीतने के बावजूद विभाग के निदेशक की ओर से स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

मंत्री मौन, आखिर जवाब देगा कौन?

सूत्रों का कहना है कि विभाग में हो रहे सभी काम-काज में पुरातत्व कला एवं संस्कृति मंत्री बी डी कल्ला के निजी स्टाफ का सीधा नियंत्रण है। ऐसे में जब एक ओर स्मारकों की सुरक्षा खतरे में पड़ी हो, विभाग में जमकर भ्रष्टाचार हो रहा हो, दूसरी ओर मुख्यमंत्री इन मामलों पर स्पष्टीकरण मांगे और मंत्री मौन रहें तो कहा जा सकता है कि मामला बेहद गंभीर है। विभाग में चल रही गड़बड़ियों पर मंत्री मौन रहेंगे तो फिर जवाब कौन देगा?

निजी स्टॉफ और दो अधीक्षकों ने जमा रखी चौसर

अंदरखाने कहा जा रहा है कि गड़बड़ियों में निजी स्टॉफ और विभाग के दो सेटिंगबाज अधीक्षकों ने अपनी चौसर बिछा रखी है। मंत्री को गुमराह किया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि निजी स्टॉफ ने ही मंत्री की जगह मोर्चा संभाल रखा है और खुद के स्तर पर बड़े फैसले किए जा रहे हैं। निदेशक को भी इन्होंने अपने प्रभाव में ले रखा है और शासन सचिव को दरकिनार कर रखा है। उन्हें किसी भी बात की जानकारी नहीं दी जा रही है। शासन सचिव की भूमिका नगण्य रह गई है।

शासन सचिव इस लिए दरकिनार

सूत्रों का कहना है कि शासन सचिव मुग्धा सिन्हा की भूमिका निष्पक्ष रही है। वह काफी समय से विवादित फाइलों का विशेष परीक्षण करने में लगी थी, जिससे निदेशक पुरातत्व, बरसों से एक ही जगहों पर जमे सेटिंगबाज अधिकारी और इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारियों में भारी बौखलाहट थी, इसलिए मंत्री स्टॉफ से मिलीभगत कर शासन सचिव को ही साइडलाइन कर दिया गया।

इस निर्णय की मंशा नहीं आ रही समझ

ताजा मामला सिसोदिया बाग और विद्याधर बाग का चार्ज सोहनलाल चौधरी से लेकर राकेश छोलक को देने और छह महीने बाद फिर छोलक से इनका चार्ज लेकर चौधरी को देने का मामला है। क्यों चौधरी से चार्ज लेकर छोलक को दिया गया और क्यों इस फैसले को फिर पलट दिया गया? इसका जवाब देने को कोई तैयार नहीं है।

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