राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा से सटे बाड़मेर जिले को भौगोलिक दृष्टि से बेहद शुष्क क्षेत्र समझा जाता है। लेकिन, यहां की धरती को नम करता है यहां से निकलने वाला काला सोना (कच्चा तेल) और यहां के वो लोग जो अपने घर से बाहर निकल व्यापार के क्षेत्र में ऊंचा मुकाम बनाते रहे हैं। ऐसी ही शख्सियत हैं परिधान निर्यात क्षेत्र का एक बड़ा नाम सूरजकांत बोहरा। क्लियरन्यूज डॉट लाइव ने अपनी विशेष लेखों की श्रृंखला People who made it BIG के तहत सूरजकांत बोहरा से विशेष बातचीत की। पेश है इस बातचीत के कुछ अंश..
कुछ नया करने की चाहत और चाचा जी ने दिया मौका
बोहरा के ताऊजी और चाचाजी बाड़मेर से निकलकर जयपुर में निर्माण क्षेत्र में बड़ी नामचीन हस्तियों में शुमार थे। जयपुर से कॉमर्स विषय में स्नातक करने के बाद नवयुवक सूरजकांत के लिए उनके कारोबार में जुड़ने का सीधा-सादा विकल्प सामने था, सो जुड़ गये परिवारिक कारोबार से। निर्माण क्षेत्र की बारीकियां सीखने के साथ सूरजकांत को कुछ नया करने की इच्छा बलवती हो ही रही थी कि उनके चाचाजी ने 1990 में उन्हें मौका दे दिया।
मौका क्या दिया, वास्तव में चाचाजी को भी जरूरत थी, किसी संघर्षशील, ईमानदार सऔहयोगी की जो परिधान निर्यात के क्षेत्र में उनका मजबूत साथी बन सके। और, उन्हें सूरजकांत से बेहतर आखिर कौन मिलता? बकौल सूरज बड़ों का आदेश होने के बाद पीछे हटने का प्रश्न ही नहीं था।
परिवार को महत्व, सम्मान और पत्नी को स्वतंत्र उद्यमी बनाने में प्रेरक
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सूरज की बातों से ही झलक जाता है कि वे परिवार को बेहद महत्व देने वाले व्यक्ति हैं। सूरज की पत्नी मोनिका बोहरा तेजी से उभरती हुई उद्यमी हैं और उनका फैशन स्टूडियो जयपुर के सी-स्कीम क्षेत्र में है। इस स्टूडियो के संचालन की खास बात यह है कि मोनिका जो एनआईएफटी डिग्री के साथ आगे बढ़ी हैं, अपने पति सूरजकांत से कारोबार के संबंध में बेहद सीमित मदद लेती हैं। सूरज और मोनिका साथ हैं, एक दूसरे के काम का बेहद सम्मान करते हैं किंतु उद्यमियों के तौर पर दोनों का स्वतंत्र व्यक्तित्व हैं। परिवार हो या फैक्ट्री, छोटा हो या बड़ा सूरज सभी का सम्मान करते हैं, उनके साथ मधुरता के साथ बात करते हैं और एक गाइड की भूमिका में रहते हैं।
बोहरा की पारखी निगाहें गलती होेने ही नहीं देती
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चाचाजी के साथ कारोबार अच्छा चल रहा था। सूरजकांत कारोबार की रीढ़ बन चुके थे। यद्यपि सूरज ने परिधान निर्यात के क्षेत्र में किसी प्रकार का शिक्षण-प्रशिक्षण हासिल नहीं किया था लेकिन उन्होंने दिन-रात की कड़ी मेहनत और लगन से काम करते हुए इस क्षेत्र की बारीकियां सीखीं। ऑफिस चैंबर में बैठे-बैठे काम करवाना उन्हें कभी रास नहीं आया।
वे हमेशा जहां कारीगर काम करते हैं, वहीं खड़े रहकर सारे काम करते रहे हैं शुरू से। यही वजह है कि सूरजकांत को आधारभूत सैद्धांतिक जानकारियों के साथ प्रेक्टिकल जानकारियां भी हैं। उनकी पारखी नजरें कामकाज के फ्लोर पर किसी किस्म की गलती होने ही नहीं देती।
सफलता का राज, समय की पाबंदी
सूरजकांत कहते हैं कि उन्हें समय की पाबंदी रखना बेहद पसंद है। वे अपने ऑफिस निर्धारित समय से बीस मिनट पहले ही पहुंच जाते हैं। यही वजह है कि उनकी फैक्ट्री के श्रमिक भी कभी लेट नहीं होते। यही उनकी सफलता का कारण भी है और ऐसा इसलिए क्योंकि परिधान निर्यात क्षेत्र में निर्धारित समय पर माल की आपूर्ति बेहद आवश्यक होती है। बोहरा तो अपना काम समय से पहले ही करने के आदी रहे हैं।
लगन और ईमानदारी बनी साख
बोहरा की पूरी लगन व ईमानदारी के साथ किये कामकाज की गुणवत्ता की विदेश में ऐसी साख रही है कि वैश्विक मंदी के दौर में भी उनके पास कभी काम की कमी नहीं रही। स्थिति तो यह रही है कि आज से करीब 10 वर्ष पूर्व जब बोहरा ने चाचाजी से अलग होकर स्वतंत्र रूप से कामकाज शुरू किया तो उनके पास काम की कमी नहीं बल्कि भरपूर काम रहा। वे कहते हैं कि उन्हें अपने कामकाजी जीवन में ब्रेकडाउन जैसी स्थिति का सामना कभी नहीं करना पड़ा। कह सकते हैं कि वैश्विक मंदी भी ईमानदारी के साथ किये काम की कद्र करते हुए उनसे दूर ही रही।
काम के प्रति समर्पण
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सूरजकांत बोहरा कहते हैं कि यदि कामकाज की गुणवत्ता अच्छी हो तो काम की कमी नहीं रहती। कोरोना महामारी के दौरान कुछ परेशानी जरूर देखने को मिली। कोरोना प्रोटोकॉल के कारण दो-तीन महीने यानी फरवरी 2020 के अंत से लेकर 15 मई 2020 तक को तो घर ही बैठना पड़ा। लेकिन, मई की शुरुआत से ऑर्डर आने शुरू हो गये थे तो 20 मई 2020 के बाद से उन्होंने कंपनी में कामकाज की शुरुआत की।
फिर, तब से लकर अब तक 70 फीसदी तक काम ने रफ्तार पकड़ ली है और अब दो-तीन महीने में ही 100 फीसदी क्षमता के साथ काम होने लगेगा। सूरजकांत कहते हैं कि यदि काम को लेकर समर्पण का भाव हो तो फिर ना तो काम की कमी रहती है और ना ही विफल होने की गुंजाइश।
बायर्स के साथ जैसलमेर में किला भवन
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सूरजकांत बताते हैं कि कुछ विदेशी खरीदारों (बायर्स) से ऐसे संबंध हो गये हैं कि वे सिर्फ उनके साथ ही काम करना पसंद करते हैं। कुछ बायर को भारत और भारत में भी विशेषतौर पर जैसलमेर इतना पसंद है कि उन्होंने बोहरा के साथ मिलकर वहां किला भवन नाम से दो होटल और एक शोरूम भी स्थापित किया है। किला भवन संबंधी निवेश में दो विदेशी निवेशक हैं। उनकी और बोहरा की इस निवेश को लेकर नीति यही है कि वे जितना भी लाभ कमाते हैं, उसे जैसलमेर के इन तीनों प्रोजेक्ट पर ही निवेश कर देते हैं।
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आज बोहरा जैसलमेर में 17 लोगों को और जयपुर में प्रत्यक्ष तौर पर करीब 50 लोगों और परोक्ष रूप से करीब 250 को रोजगार दे रहे हैं। सूरजकांत बाड़मेर की धरती का वो लाल हैं जिनकी आभा परिधान निर्यात के क्षेत्र में विश्व कारोबारी मंच पर निरंतर बिखर और निखर रही है।