सीएचओ की रिपोर्ट ने खोल दी मिलीभगत की पोल
अधिकारियों और कंपनी प्रबंधक की मिलीभगत से होने जा रहा था फर्जी बिल का भुगतान
जयपुर। शहरी सरकार ने फूड वेस्ट के निस्तारण और उसके जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल के लिए ग्रीन लाइन प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, लेकिन नगर निगम के अधिकारियों और कंपनी के प्रबंधकों की मिलीभगत के चलते इस प्रोजेक्ट का लाभ शहर की जनता को नहीं मिल पाया।
प्रोजेक्ट में अधिकारियों की मिलीभगत से शुरू से ही भ्रष्टाचार होने लगा। वर्तमान में कंपनी के प्रबंधक अधिकारियों से मिलीभगत करके 90 लाख के बिल का भुगतान निगम से लेना चाहते हैं, लेकिन निगम के सेवानिवृत्त मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी की नोटशीट ने अधिकारियों और कंपनी के अरमानों पर पानी फेर दिया। इस नोटशीट ने निगम अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच मिलीभगत की पोल खोलकर रख दी है।
ग्रीन लाइन प्रोजेक्ट में जिस बिल के लगातार चर्चे हो रहे हैं, उसे फर्जी भुगतान का मामला बताया जा रहा है। प्रोजेक्ट के तहत शिवशक्ति एंटरप्राइजेज को सिविल लाइन, विद्याधर नगर और सांगानेर जोन में चलने वाले मैरिज गार्डनों, होटलों, रेस्टारेंटों, खान-पान की दुकानों से फूडवेस्ट उठाने और उसे खाद में परिवर्तित करने का वर्कआर्डर 5 जनवरी 2011 को दस वर्ष कि लिए दिया गया था।
अनुबंध के अनुसार संवेदक फर्म ने निगम को अवगत कराया कि अप्रेल 2011 से सितंबर 2013 तक इन जोनों में स्थित मैरिज गार्डनों से फूड वेस्ट एकत्रित किया गया, लेकिन गार्डन संचालकों द्वारा फर्म को निर्धारित यूजर चार्ज (प्रति आयोजन 500 रुपए) का भुगतान नहीं किया गया।
काम एक, पहला बिल 60 लाख
स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समिति ने 26 अगस्त 2013 की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि उपरोक्त जोनों में कार्यरत स्वास्थ्य अधिकारी, मुख्य सफाई निरीक्षकों द्वारा कार्य प्रमाणित किए जाने के बाद फर्म की ओर से अप्रेल 2011 से सितंबर 2013 की अवधि में किए गए कार्य का नियमानुसार भुगतान किया जाए, लेकिन फर्म की ओर से कई महत्वपूर्ण रिकार्ड निगम को सौंपे बिना करीब 60 लाख रुपए के भुगतान के लिए तत्कालीन निगम आयुक्त हेमंत गेरा को पत्र लिखा गया।
दूसरा बिल 70 लाख
बाद में फर्म की ओर से इसी कार्यअवधि अप्रेल 2011 से सितंबर 2013 तक के लिए निगम को 70 लाख 70 हजार रुपए के भुगतान के लिए पत्र लिखा गया। इस पत्र पर स्वास्थ्य शाखा की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। जिस पर फर्म की ओर से राज्य सरकार के सामने निगरानी याचिका प्रस्तुत कर दी, लेकिन सरकार ने इस याचिका को विचारणीय नहीं माना।
तीसरा बिल 90 लाख का हो गया
अब फर्म की ओर से इसी कार्यअवधि अप्रेल 2011 से सितंबर 2013 तक के लिए निगम को 90 लाख 75 हजार रुपए का बिल दे रखा है। मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी ने एक ही कार्यअवधि के लिए अलग-अलग राशि के बिल पेश किया जाना संदेहास्पद माना और नोटशीट में इसे फर्जी भुगतान प्राप्त करने की कोशिश बताया और इस मामले की जांच जरूरी बताई है।
हकीकत भी यही है कि एक ही कार्यअवधि के अलग-अलग राशि के बिल कैसे हो सकते हैं, जबकि फर्म की ओर से इन बिलों को सत्यापित करने के लिए कोई रिकार्ड निगम में पेश नहीं किया गया है। बिना रिकार्ड फर्म की ओर से यह भी साबित नहीं किया जा सकता है कि फर्म ने इस अवधि में मैरिज गार्डनों से फूड वेस्ट उठाया या नहीं, मैरिज गार्डन संचालकों ने फर्म को भुगतान किया या नहीं।