ताज़ा समाचारदिल्ली

कोरोना महामारी के साये में कड़े प्रावधानों वाला रहेगा 1 फरवरी को पेश होने वाला केंद्रीय बजट 2021-22

डॉ. अश्विनी महाजन

देश के जाने-माने अर्थशास्त्री, दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन, स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक

पूरे देश की निगाहें एक फरवरी 2021 को संसद में पेश होने वाले केंद्रीय बजट 2021-22 पर लगी हैं। यूं तो बजट के बारे में हर बार ही उत्सुकता होती है कि वित्तमंत्री के पिटारे में विभिन्न वर्गों के लिए क्या योजनाएं हैं? क्या सरकार आयकर में कोई छूट देगी? कॉरपोरेट टैक्स के बारे में सरकार का क्या नजरिया रहेगा ? देसी और विदेशी निवेशकों पर क्या कर प्रावधान होंगे? शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, बैंकिंग आदि के बारे में क्या नजरिया होगा ? कौन सी नई जनकल्याणकारी योजनाएं होंगी ?

हमें समझना होगा कि इस बार का बजट एक महामारी के बाद का बजट है। पिछली एक सदी के बाद पहली बार ऐसी महामारी आई, जिसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। हालांकि भारत में इस बाबत हालात (केरल और महाराष्ट्र को छोड़कर) सुधरे हुए दिखाई देते हैं लेकिन इस महामारी के कारण हुए नुकसानों की भरपाई बहुत जल्द होने वाली नहीं है।

पिछले वर्ष हमने देखा कि कैसे महामारी के कारण आवाजाही बाधित हुई, जिसके कारण न केवल मांग बाधित हुई, काम-धंधों पर भी जैसे ब्रेक लग गया। कुछ व्यवसायों में घर से काम (वर्क फ्रॉम होम) थोड़ी-बहुत मात्रा में चला लेकिन अधिकांश मामलों में आर्थिक गतिविधियां पूरे या अधूरे तौर पर बाधित रही। मजदूरों का बड़े शहरों से पलायन, कामगारों का काम से निष्कासन या उनके वेतन में भारी कटौती, इस महामारी के कालखंड में सामान्य बात बन गई। ऐसे में जीडीपी के प्रभावित होने के साथ-साथ, सरकार का राजस्व भी प्रभावित हुआ।

राजस्व घटा

महामारी से पूर्व भी अर्थव्यवस्था कई कारणों से मंदी की मार झेल रही थी। पूर्व में बैकों द्वारा दिए गए ऋणों की वापसी नहीं होने के कारण, बैंकों के बढ़ते एनपीए के चलते बैंकों का मनोबल ही नहीं गिरा था, लोगों का बैंकों पर विश्वास भी घटने लगा था। उसके साथ ही साथ आईएलएफएस सरीखे गैरबैंकिंग वित्तीय संस्थानों में घोटालों के कारण वित्तीय क्षेत्र के संकट और अधिक बढ़ गए थे।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों पर नकेल कसने के प्रयासों में बैंकों द्वारा कार्य निष्पादन भी प्रभावित हो रहा था और व्यवसाय भी। बैंकों द्वारा ऋण भी कम मात्रा में दिए जा रहे थे। कुल मिलाकर नए निवेश भी घटे और चालू आर्थिक गतिविधियां भी। कठिन परिस्थितियों में जब पिछले साल वित्तमंत्री ने बजट पेश किया था, वर्ष 2019-20 में राजस्व उम्मीद से कम दिखाई दिया था लेकिन यह अपेक्षा जरूर थी कि इसकी भरपाई 2020-21 में हो सकेगी।

उसके पश्चात वर्ष 2020-21 में भी महामारी के प्रकोप ने राजस्व में सुधार की सभी अपेक्षाओं पर पानी फेर दिया है । वित्तीय वर्ष 2020-21 के पहले 9 महीनों में जीएसटी से कुल राजस्व 7,79,884 करोड़ रुपए ही प्राप्त हुआ है, जबकि इस कालखण्ड में अपेक्षा न्यूनतम 10 लाख करोड़ रुपए की थी। जीएसटी में इस कमी का असर हालांकि केन्द्र और राज्य, दोनों के राजस्व पर पड़ा है लेकिन राज्यों के हिस्से की भरपाई (14 प्रतिशत वृद्धि के साथ) देर-सबेर केन्द्र सरकार को नियमानुसार करनी ही पड़ेगी। इस कारण केन्द्र को इसका नुकसान राज्यों से कहीं ज्यादा होगा।

दूसरे इस वर्ष वैयक्तिक आयकर और निगम (कॉरपोरेट) कर भी उम्मीद से कम रहने वाला है। सरकार के इस वर्ष का विनिवेश का लक्ष्य भी पूरा होने की दूर-दूर तक कोई संभावना दिखाई नहीं देती।

खर्च के लिए दबाव

एक तरफ जहां महामारी के चलते सरकारी राजस्व में भारी नुकसान हो रहा था, रोजगार खोने के कारण भारी संकट से गुजर रहे मजदूरों और अन्य प्रभावित वर्गों के जीवनयापन की कठिनाइयों के कारण उन्हें खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिए सरकार का दायित्व तो था ही, गांवों में लौट रहे मजदूरों को रोजगार दिलाने का भी दबाव था। अस्सी करोड़ लोगों को लगभग 9 महीने तक मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया गया। महामारी से निपटने के लिए सरकार का स्वास्थ्य पर खर्च भी बढ़ चुका था। महामारी से पार पाने हेतु कोरोना योद्धाओं, शिक्षकों एवं अन्य वर्गों को वैक्सीन उपलब्ध कराने की भी आवश्यकता है।

महामारी के कारण बाधित गतिविधियों को दुबारा शुरू करने की भी जरूरत थी। यह सरकार की मदद के बिना नहीं हो सकता था। पूरी तरह से छिन्न-भिन्न हुई आर्थिक गतिविधियों को पुनः पटरी पर लाना, महामारी की मार झेल रही आम जनता को राहत देना, रोजगार खोने वालों के लिए राहत और रोजगार की व्यवस्था करना, पहले से ही मंदी की मार झेल रही अर्थव्यवस्था को सही रास्ते पर लाना, यह सरकार का दायित्व भी है और प्राथमिकता भी।

दुनिया भर में सरकारों ने इस महामारी से निपटने के लिए राहत पैकेजों की व्यवस्था की है। उसी क्रम में भारत सरकार ने भी अपने सभी राहत उपायों की घोषणा की है। ये सभी राहत उपाय कुल मिलाकर देश की जीडीपी के लगभग 10 प्रतिशत के बराबर बताये जा रहे हैं। इन राहत अथवा प्रोत्साहन पैकेजों में सरकार ने लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहन, प्रवासी मजदूरों एवं किसानों के लिए राहत पैकेज,  कृषि विकास, स्वास्थ्य उपायों, व्यवसायों को अतिरिक्त ऋणों की व्यवस्था, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस समेत कई उपायों की घोषणा की गई है ।

सरकार ने हाल ही में रीयल एस्टेट क्षेत्र को राहत एवं प्रोत्साहन देने, इलैक्ट्रॉनिक्स, टेलीकॉम, मोबाइल फोन और एक्टिव फार्मास्यूटिकल उत्पादों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए ‘प्रोडक्शन लिंक्ड’ प्रोत्साहनों की भी घोषणा की है।

बढ़ेगा राजकोषीय घाटा

पिछले साल का बजट प्रस्तुत करते हुए, वित्तमंत्री ने वर्ष 2020-21 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी को 3.5 प्रतिशत रखा था। लेकिन बदले हालात में घटे सरकारी राजस्व और बजट अनुमानों से कहीं ज्यादा खर्च के दबाव के चलते इस वर्ष का राजकोषीय घाटा अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकता है । माना जा रहा है कि इस महामारी का बड़ा असर राजकोषीय घाटे पर पड़ सकता है । माना जा रहा है कि वर्ष 2020-21 के लिए यह राजकोषीय घाटा जीडीपी के 8 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।

महामारी से निपटने के लिए राहत के प्रयासों की अभी शुरुआत भर हुई है। आगामी वर्ष में इन प्रयासों को और आगे बढ़ाने की जरूरत होगी। सरकार द्वारा आत्मनिर्भरता के संकल्प और अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए तमाम प्रयासों के चलते अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी इस वर्ष भारत की जीडीपी में 11.5 प्रतिशत संवृद्धि का अनुमान दिया है। इसके चलते राजस्व में वृद्धि तो होगी लेकिन सरकार को जीडीपी ग्रोथ की इस गति को बनाए रखने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत होगी।

ऐसे में केन्द्र सरकार का राजकोषीय घाटा अधिक रहेगा। लेकिन, इसके साथ ही साथ केन्द्र सरकार ने कोरोना से उपजी समस्याओं से निपटने के लिए राज्य सरकारों को भी अतिरिक्त ऋण लेने के लिए अनुमति दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस वर्ष राज्यों के बजट में भी राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4 से 5 प्रतिशत के बीच रह सकता है। ऐसे में देश में कुल राजकोषीय घाटा 10 से 11 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।

समय की मांग है कि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सभी प्रकार के प्रयास किए जाएं। कुछ समय तक एफआरबीएम एक्ट को स्थगित रखते हुए देश की अर्थव्यवस्था को गति देना जरूरी होगा। वित्तमंत्री इस बात को समझती हैं और आशा की जा सकती है कि जहां महामारी से प्रभावित वर्गों को सरकारी बजट का समर्थन मिलेगा, अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए प्रयासों में कोई कंजूसी नहीं की जाएगी। वर्षों से चीन से सस्ते आयातों की मार झेल रही अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भरता और ‘वोकल फॉर लोकल’ का संकल्प एक नई दिशा और ऊर्जा देगा और यह बजट उस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।

Related posts

संवैधानिक मूल्यों की रक्षार्थ स्वतंत्र (Independent), सशक्त (strong) और निष्पक्ष न्यायपालिका (impartial judiciary)जरूरीःमुख्यमंत्री गहलोत (CM Gehlot)

admin

देश के सम्मानीय न्यूरोलॉजिस्ट (Neurologist) पद्मश्री डॉ. अशोक पानगड़िया (Dr. Ashok Pangariya) को कोरोना ने हमसे छीना, उनके निधन के समाचार से देश भर में शोक की लहर

admin

रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) पर बंद रहेगा ठिकाना गोविंद देव जी मंदिर (Thikana Govind Dev Ji Temple), केवल ऑनलाइन (Online) ही किये जा सकेंगे दर्शन, अब मोहर्रम (Moharram) का अवकाश 20 अगस्त को

admin

Leave a Comment