जयपुर। उपराष्ट्रपति (Vice President) एम वेंकैया नायडु ने रविवार को जैसलमेर में सीमा के निकट स्थित प्रसिद्ध लोंगेवाला युद्ध स्थल (Longewala battle site) की यात्रा की और भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 की उस निर्णायक लड़ाई (1971 war) में भारतीय सैनिकों के अदम्य पराक्रम को याद किया। उपराष्ट्रपति रविवार को अपनी पांच दिवसीय राजस्थान यात्रा पर जैसलमेर पहुंचे।
उन्होंने अपनी इस यात्रा की शुरुआत प्रसिद्ध तनोट माता के मंदिर (Tanot Mata temple) के दर्शन से की। मंदिर में उपराष्ट्रपति ने अपनी पत्नी उषा नायडु के साथ तनोट माता की पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर उन्होंने तनोट स्थित विजय स्तंभ पर वीर सैनिकों की स्मृति में फूलमाला अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
इसके बाद उपराष्ट्रपति लोंगेवाला युद्ध स्थल पहुंचे जहां मेजर जनरल अजीत सिंह गहलोत ने उन्हें उस ऐतिहासिक लोंगेवाला युद्ध की जानकारी दी। बाद में अपनी एक फेसबुक पोस्ट में उपराष्ट्रपति ने लोंगेवाला युद्ध स्थल की अपनी यात्रा को जीवन का अविस्मरणीय अवसर बताया। उन्होंने लिखा कि भारत-पाकिस्तानी सीमा के निकट, धूल भरे थार रेगिस्तान में रेत के टीले पर खड़े होकर उस भीषण युद्ध की गाथा सुनना और हमारे वीर सैनिकों के पराक्रम की कहानियां सुनना, मेरी स्मृति में हमेशा के लिए अंकित रह गया है।
सीमा क्षेत्र की अपनी इस यात्रा को, अपनी ज्ञान यात्रा का भाग बताते हुए नायडु ने लिखा है कि वे देश के विभिन्न इलाकों की यात्रा करते रहे हैं, इस महान देश की समृद्ध विविधता के बारे में देखने और समझने का प्रयास करते रहे हैं। देश को विश्वगुरु बनाने के लिए परिवर्तन के महायज्ञ में सम्मिलित होने के लिए लोगों का आह्वान करते रहे हैं।
उस युद्ध में मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी और 23 पंजाब की कंपनी के उनके साथी सैनिकों के शौर्य की सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने लिखा कि लोंगेवाला का युद्ध देश के सामरिक इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है जिसमें देश के फौलादी इरादों को उजागर किया, जिसमें संख्या बल में कम सैनिकों ने अपने से कहीं बड़ी दुश्मन की आगे बढ़ती सेना को रोक दिया।
1971 की लड़ाई के कारणों पर लिखते हुए उपराष्ट्रपति ने लिखा कि इस युद्ध की शुरुआत पाकिस्तानी सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर किए जा रहे बर्बर अत्याचारों और उसके कारण बड़ी संख्या में वहां से शरणार्थियों के भारत पलायन के कारण हुई। उन्होंने लिखा कि 13 दिन के उस युद्ध में भारत को निर्णायक जीत हासिल हुई और बांग्लादेश के लोगों को एक दमनकारी शासन से मुक्ति मिली।
इस निर्णायक युद्ध से पहले और उसके दौरान के घटनाक्रम पर नायडु ने लिखा है कि 4 दिसंबर 1971 के उस रात लोंगेवाला चौकी पर तैनात भारतीय सैनिक एक असंभव से दिखने वाले युद्ध का सामना कर रहे थे। दुश्मन के मुकाबले उनकी संख्या बहुत कम थी, सामने दुश्मन की हल्के हथियारों से लैस दो टैंक रेजिमेंट और दो रिकॉइल लैस गन थीं। लेकिन इन बहादुर सैनिकों ने भारतीय सेना की शौर्य परंपरा के अनुरूप यादगार पराक्रम का प्रदर्शन किया और मातृ भूमि की रक्षा में वहीं डट कर दुश्मन का मुकाबला किया। नायडु ने भारतीय सैनिकों के कभी हार न मानने के जज्बे का अभिनंदन किया है।
उन्होंने लिखा है कि दुश्मन के टैंक चौकी से महज 50 मीटर दूर तक पहुंच गए थे, इसके बावजूद मेजर चांदपुरी और उनके साथी सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन को अगली सुबह तक रोके रखा जब तक भारतीय वायुसेना के जेट नहीं पहुंच गए और एक के बाद एक दुश्मन के टैंकों को निशाना बनाने लगे। लोंगेवाला युद्ध को साहस और शौर्य की अद्भुत गाथा बताते हुए उपराष्ट्रपति ने लिखा है कि लोंगेवाला युद्ध की कहानियां आज भी जीवित हैं और सैनिकों की पीढ़ियों को प्रेरणा दे रही हैं।
क्षेत्र की संरक्षक देवी के रूप में तनोट माता पर सैनिकों और स्थानीय समुदाय की अगाध आस्था के बारे में लिखते हुए उपराष्ट्रपति ने लिखा कि लोंगेवाला युद्ध में विपरीत परिस्थितियों में भी विजय और वीरगति की गाथाओं से सैनिकों की देवी मां में आस्था और दृढ़ हुई है। मंदिर की विजिटर बुक में नायडु ने सीमा सुरक्षा बल के सैनिकों के संकल्प और समर्पण की सराहना की जो थार रेगिस्तान की कठिन परिस्थितियों में भी सीमाओं की रक्षा में तत्पर रहते हैं।