जयपुर। राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। सरकार बनने के बाद से ही उसको अस्थिर करने के प्रयास हो चुके हैं, लेकिन राजस्थान से बाहर के नेता भी गुटबाजी की आग में घी खेने का काम कर रहे हैं। अब कल्कि पीठाधीश्वर कहलाने वाले कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम के ट्वीट ने राजस्थान कांग्रेस की गुटबाजी को हवा दी है। कल्कि भगवान तो चार लाख वर्ष बाद महाप्रलय लेकर आएंगे, लेकिन उनके यह उपासक सरकार के चार साल पूरे होने से पहले ही महाप्रलय लाने की फिराक में है।
कांग्रेस के प्रचारक और प्रियंका गांधी के करीबी नेता माने जाने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम के एक ट्वीट ने राजस्थान कांग्रेस की गुटबाजी को हवा देने का काम किया है। कृष्णम ने भरतपुर के बयाना में हुई किसान पंचायत में सचिन पायलट के वीडियो को अपने ट्विटर हैंडल पर रिट्विट करते हुए उन्हें ‘मुख्यमंत्री भव’ का आशीर्वाद दिया। इस ट्वीट के बाद से ही राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी गरमा गई है। कृष्णम ने मुख्यमंत्री के युवा पीढ़ी को आगे लाने वाले ट्वीट पर भी सवाल खड़ा किया था कि ‘क्या आपका इशारा सचिन पायलट की तरफ है?’
उत्तर प्रदेश की राजनीति के चलते पायलट को निपटाया
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि आचार्य प्रमोद के ट्वीट से पायलट मुख्यमंत्री तो बनने से रहे, लेकिन इस ट्वीट ने कांग्रेस के गुटों के बीच बनी खाई को बढ़ा दिया है। आचार्य ने पायलट को सपोर्ट देने के लिए यह ट्वीट नहीं किया, बल्कि पायलट उत्तर प्रदेश की राजनीति में आने से रोकने के लिए किया है। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में एआईएमआईएम की दखल के चलते कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोट खिसकते नजर आ रहे हैं, ऐसे में कांग्रेस को ओबीसी जातियों को अपने पक्ष में करने के लिए पायलट की दरकार है।
आचार्य प्रमोद पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं, ऐसे में वह नहीं चाहेंगे कि कोई दूसरा उत्तर प्रदेश में उभरे। ऐसे में पायलट को राजस्थान में उलझाए रखने के लिए उन्होंने यह ट्वीट किया है। आचार्य खुद उत्तर प्रदेश में जातिवादी राजनीति कर रह हैं और वह बार-बार उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मुख्यमंत्री की बात उठाते आ रहे हैं।
मध्यप्रदेश उपचुनाव के दौरान आए थे करीब
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि आचार्य प्रमोद और सचिन पायलट का कोई पुराना नाता नहीं है, बल्कि मध्यप्रदेश में कुछ समय पूर्व हुए उपचुनावों के दौरान दोनों करीब आए थे। दोनों ने मिलकर कांग्रेस प्रत्याशियों का प्रचार किया था और एक ही हेलिकॉप्टर में इनका आना-जाना हो रहा था।
कहां से चले कहां आ गए
सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री बनने की चाहत और अशोक गहलोत से बैर की भावना पायलट के राजनीतिक कैरियर को खत्म कर रही है। पायलट का राजनीतिक सफर केंद्रीय मंत्री के रूप में शुरू हुआ। इसके बाद पायलट राजस्थान कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष बने और उसके बाद उपमुख्यमंत्री, लेकिन मुख्यमंत्री बनने की चाहत ने उन्हें एक जातिवादी राजनेता के रूप में स्थापित कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब पायलट जाट और गुर्जर समाज की राजनीति करेंगे?
राजस्थान में सफल नहीं होती जातिवादी राजनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजस्थान में तीन दशक पहले तक थोड़ी-बहुत जातिवादी राजनीति होती थी, लेकिन उसके बाद प्रदेश में जातिवादी राजनीति सफल नहीं हो पाई है। प्रदेश में जिसने भी जातिवादी राजनीति करने की कोशिश की, किसी बड़े ओहदे पर नहीं पहुंच पाया। प्रदेश के साक्षर मतदाता जातिवादी राजनीति की चालों में नहीं फंसते हैं, ऐसे में जातिवादी राजनीति कर पायलट अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। वर्तमान में पायलट के साथ हनुमान बेनीवाल भी जातिवादी राजनीति कर रहे हैं। इससे पूर्व भाजपा के किरोड़ी लाल मीणा ने भी जातिवादी राजनीति करने की कोशिश की और उनको पार्टी छोड़ने तक की नौबत आ गई थी, वहीं इतिहास पायलट के साथ दोहराता नजर आ रहा है।