जयपुर

उच्चस्तरीय कमेटी की जांच रिपोर्ट आई नहीं, हटाए अधीक्षक को फिर दे दिया नाहरगढ़ का अतिरिक्त चार्ज

जयपुर। प्रदेश के स्मारकों पर टिकट बिक्री में दशकों से चल रहे घोटाले को पुरातत्व विभाग रोकने में नाकाम साबित हो रहा है। हाल यह है कि राजधानी में भी टिकट घोटाले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। घोटाले रुकेंगे कैसे, जांच रिपोर्ट आए बिना ही हटाए अधिकारियों को व्यक्तिगत हितों को साधने के लिए फिर से पुरानी जगह का चार्ज दे दिया जाए। ताजा मामला जयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल नाहरगढ़ फोर्ट का है। एक ओर तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं, वहीं विभाग के अधिकारी और कर्मचारी टिकटों के खेल में पर्यटकों से दुव्र्यवहार कर रहे हैं। टिकटों का घोटाला अधिकारियों-कर्मचारियों की नस-नस में रम चुका है, ऐसे में प्रिंसीपल सेकेटरी या मंत्री स्तर से ऊपर उठकर मुख्यमंत्री स्तर पर टिकटों में खेल की जांच की जानी चाहिए, क्योंकि दशकों से चल रहे इस घोटाले में हर वर्ष करोड़ों रुपयों के राजस्व से हाथ धोना पड़ रहा है।

एक महीने पूर्व नाहरगढ़ फोर्ट के दो वीडियो सोश्यल मीडिया पर जबरदस्त तरीके से वायरल हुए थे। इन वीडियो में बताया गया था कि पंजाब से आए कुछ छात्रों से पुरातत्व विभाग के कर्मचारियों ने टिकट के पूरे पैसे ले लिए और उन्हें स्टूडेंट टिकट थमा दिया गया था। छात्रों ने इसका विरोध किया तो फोर्ट पर पुरातत्व विभाग की ओर से तैनात होमगार्ड ने छात्रों को बिना फोर्ट देखे ही वहां से भगा दिया।

इस मामले में पुरातत्व विभाग की ओर से लीपापोती की कार्रवाई की जा रही है, जिससे साबित हो रहा है कि टिकट घोटालों में ऊपर तक की मिलीभगत है। इन वीडियो के वायरल होने के बाद विभाग ने एक होमगार्ड को लाइन में भेज दिया और विभाग के एक चपरासी का मुख्यालय तबादला कर दिया। तबादले में भी खेल हुआ और अतिरिक्त प्रभार वाले अधिक्षक ने यह तबादले किए, जबकी उसको तबादले का अधिकार नहीं था। नाहरगढ़ अधीक्षक राकेश छोलक से भी नाहरगढ़ का अतिरिक्त चार्ज वापस ले लिया गया, क्योंकि मामले की जांच के लिए पहले विभागीय जांच कमेटी बनाई गई, बाद में आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण (एडमा) के सीईओ राजनारायण शर्मा की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन कर दिया था। कमेटी में पुरातत्व विभाग के दो अधिकारियों को भी शामिल किया गया। इस उच्च स्तरीय कमेटी ने अभी तक अपनी रिपोर्ट पेश नहीं की है।


उच्चस्तरीय जांच कमेटी की रिपोर्ट आए बिना ही 30 सितंबर को अधीक्षक राकेश छोलक को फिर से नाहरगढ़ फोर्ट का चार्ज दे दिया गया, जिससे इस मामले में पुरातत्व विभाग में गदर मचा है। जांच रिपोर्ट आए बिना छोलक को चार्ज दिए जाने का विरोध किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि विभागीय जांच कमेटी में अधीक्षक को बचाने के लिए लीपापोती की गई है, तभी तो उच्च स्तरीय जांच कमेटी गठन की जरूरत पड़ी। ऐसे में इस कमेटी की रिपोर्ट से पूर्व छोलक को फिर से चार्ज दिए जाने पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस रिपोर्ट के बाद जांच कमेटी में शामिल विभागीय अधिकारी भी शक के दायरे में आ गए हैं, या तो उन्होंने मिलीभगत के चलते लीपापोती वाली रिपोर्ट पेश की है, या फिर उनके ऊपर झूंठी रिपोर्ट पेश करने का उच्च स्तर से दबाव था। पुरातत्व विभाग के सूत्रों का कहना है कि पूरा विभाग इन दिनों ऊपरी दबाव में चल रहा है। कुछ अधिकारियों ने विभिन्न मंत्रियों के रिश्तेदारों तक पहुंच बना रखी है और इसका फायदा उठाकर वह विभाग के अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रताडि़त कर रहे हैं। सूत्र यह भी बता रहे हैं कि नाहरगढ़ फोर्ट मामले में विभाग की प्रिंसीपल सेके्रटरी तक पर ऊपर से दबाव डाला गया है।

पुरातत्व सूत्रों का कहना है कि विभागीय जांच में वायरल वीडियो को जांच का आधार बनाया गया है और कहा जा रहा है कि इन छात्रों ने टिकट ही नहीं लिया था। जबकि, दोनों वीडियो में कहीं भी ऐसा नहीं आ रहा है कि युवकों ने टिकट नहीं लिया। टिकट लेने के बाद ही मूल्य को लेकर यह विवाद शुरू हुआ था। एक वीडियो में होमगार्ड वीडियो बनाने वाले और छात्रों से बदतमीजी कर रहा है, और उन्हें धक्के देकर बाहर निकाल रहा है। इस तरह का व्यवहार तभी सामने आता है, जबकि ऊपर तक मिलीभगत का खेल चल रहा हो और नीचे के कर्मचारियों को पता हो कि उनपर कोई खास कार्रवाई नहीं होगी। जिस राज्य की इकोनॉमी में पर्यटन प्रमुख आधार हो, वहां पर्यटकों के साथ ऐसा दुव्र्यवहार निंदनीय है। देश में कोरोना संकट आने के बाद तीन साल से यही घरेलू पर्यटकों ने राजस्थान के पर्यटन को संभाल रखा है और लाखों लोगों का रोजगार चल रहा है।

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