धरम सैनी
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुट गए हैं। राजस्थान में हार के बाद हुई कांग्रेस की समीक्षा बैठक में कुछ खास निकलकर नहीं आया और सभी को लोकसभा चुनावों के लिए अभी से ही जुटने को कहा गया है। कांग्रेस में कहा जा रहा है कि अब पार्टी राजस्थान में ओबीसी वर्गों को फिर से अपने पाले में लाने की तैयारी करेगी क्योंकि 65 फीसदी से अधिक वोटरों वाला यह सबसे बड़ा समूह है।
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार दक्षिणी भारत में मुस्लिम वोटरों का वापस पाले में आना कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस को संजीवनी दे गया। दोनों राज्यों में कांग्रेस ने बहुमत से सरकार बना ली। कांग्रेस ने मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए काफी पहले से योजना बना रखी थी और इसका फायदा भी उसे मिला। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में एआईएमआईएम, बसपा, आसपा, आप जैसी पार्टियां मुस्लिम वोटरों की सौदागर बनकर आई, लेकिन कांग्रेस ने उनकी नहीं चलने दी और इस वोटर समूह का अपने पाले में ध्रुविकरण करने में सफल रही।
कांग्रेस बनाएगी जातिगत जनगणना को सबसे बड़ा मुद्दा
ओबीसी वोटबैंक भी कांग्रेस का परंपरागत वोटबैंक रहा है, लेकिन यह वोटबैंक काफी हद तक भाजपा की ओर जा रहा है, इस सबसे बड़े वोटबैंक को अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के पहले से ही प्रयास शुरू कर दिए थे। कांग्रेस के जानकार बताते हैं कि पार्टी ने ओबीसी राजनीति और जातिगत जनगणना को बिहार—उत्तर प्रदेश से बाहर निकालकर पूरे देश का मुद्दा बना दिया है। कांग्रेस अब इसे देश का सबसे बड़ा मुद्दा बनाने का प्रयास करेगी। यही कारण रहा कि तेलंगाना में ओबीसी वर्ग को मुख्यमंत्री पद सौंपा गया।
फिर आमने—सामने होंगे मोदी—गहलोत
देश में ओबीसी राजनीति के बड़े चेहरों की बात करें तो भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे करेगी, वहीं कांग्रेस के पास मोदी को टक्कर देने के लिए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का चेहरा है। ऐसे में कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनावों में ओबीसी वर्ग को कांग्रेस के पाले में लाने के लिए कांग्रेस अशोक गहलोत के चेहरे को आगे करेगी। गहलोत राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों में भी लोकसभा चुनाव लड़वाने और जितवाने में सक्षम है। उनके अलावा कांग्रेस में कोई अन्य बड़ा ओबीसी चेहरा नहीं है, जो अन्य राज्यों में भी सर्वमान्य हो। ऐसे में लोकसभा चुनावों में मोदी—गहलोत एक बार फिर आमने—सामने होंगे।
कांग्रेस अब मूल ओबीसी को देगा तरजीह
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ओबीसी विभाग के राष्ट्रीय संयोजक और राजस्थान राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य राजेंद्र सेन का कहना है कि आगामी लोकसभा चुनावों में जातिगत जनगणना देश का सबसे बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। कांग्रेस की कोशिश रहेगी कि राजस्थान समेत पूरे देश में 65 फीसदी से अधिक ओबीसी वोटबैंक को साधा जाए। ऐसे में अब एआईसीसी, राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी में व अन्य संगठनों में ओबीसी वर्ग को ज्यादा पद दिए जाकर उन्हें लाइमलाइट में ला सकती है। खासकर मूल ओबीसी वर्ग की उन जातियों को जिन्हें अभी तक ओबीसी आरक्षण का पूरा लाभ नहीं मिल पाया है। ओबीसी वर्ग को लेकर ज्यादा से ज्यादा घोषणाएं होगी। कोई भी चुनाव हो ओबीसी वर्ग को उनकी जनसंख्या के हिसाब से टिकट दिए जा सकते हैं।
जाट—गुर्जरों ने नहीं दिया भाजपा का साथ
सेन ने कहा कि राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा ने ओबीसी वोटरों को अपने पाले में करने की पूरी कोशिश की थी। खासकर जाट और गुर्जर समाज को, लेकिन यह दोनों ही समाज कांग्रेस के कोर वोटर हैं और भाजपा इन्हें अपने पाले में नहीं कर पाई। राजस्थान में ओबीसी वोटरों का कांग्रेस—भाजपा में बंटवारा हुआ है, लेकिन 70 फीसदी ओबीसी वोट अभी भी कांग्रेस के पास ही है। कांग्रेस की ओर से मूल ओबीसी वर्ग की उन जातियों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था, जो हकीकत में ओबीसी होने का पूरा फायदा नहीं उठा पाई थी। ऐसे में मूल ओबीसी वर्ग से कुछ वोट छिटक कर भाजपा की ओर गया है। जल्द ही इस वोट बैंक को भी कांग्रेस अपने पाले में लाने की कोशिश करेगी।
राजस्थान में सामान्य वर्ग से सीएम, तो ओबीसी कांग्रेस के पाले में
राजनीति के जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनावों में विपक्षी दल जातिगत जनगणना को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर ओबीसी राजनीति करेंगे। राजस्थान में भाजपा सामान्य वर्ग से सीएम बनाने की कोशिश में जुटी है। हो सकता है उपमुख्यमंत्री बनाकर ओबीसी वर्ग को साधने का प्रयास किया जाए, लेकिन ताजा हालातों और जातिगत जनगणना के मुद्दे को देखते हुए अगर भाजपा सामान्य वर्ग से राजस्थान का सीएम बनाती है, तो लोकसभा चुनावों में पूरे उत्तर भारत के ओबीसी वर्ग में गलत संदेश जाएगा और ओबीसी वर्ग पहले की तर्ज पर पूरी तरह कांग्रेस के पाले में जा सकता है।