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जयपुर के स्मारकों से गायब हो रही पुरानी कलाकृतियां, सिसोदिया रानी बाग से झरने वाला फाउंटेन गायब

संरक्षित स्मारकों के मूल स्वरूप को नहीं बचा पा रहे, वर्ल्ड हेरिटेज सिटी के मूल स्वरूप को कैसे रखेंगे बरकरार

धरम सैनी
जयपुर। राजस्थान के जिस प्राचीन वैभव को देखने के लिए विश्वभर के सैलानी यहां आते हैं, उसी वैभव को लगातार नष्ट किया जा रहा है। मामला सामने आया है राजधानी के ऐतिहासिक सिसोदिया रानी बाग का, जहां एक प्राचीन कलात्मक फाउंटेन को गायब कर दिया गया है। यह हाल प्रदेश की राजधानी का है, तो सोचा जा सकता है कि प्रदेश के दूर-दराज इलाकों में लावारिस हालत में पड़े स्मारकों का क्या हाल हो रहा होगा?

क्लियर न्यूज ने बताया था कि सिसोदिया रानी बाग में एक प्राचीन फाउंटेन को पुरातत्व विभाग और उसकी कार्यकारी एजेंसी आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण (एडमा) ने पिछले करीब 4-5 सालों से बंद कर रखा है। इस फाउंटेन में जिस कुंड से पानी आता था, उसे एडमा के इंजीनियरों ने इस सोच के साथ दफन कर दिया कि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।

नीले गोले में मार्बल का वह झरना फव्वारा साफ दिखाई दे रहा है, जिसे अब गायब कर दिया गया है।

बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है कि एडमा ने प्राचीन फव्वारे को बंद कर दिया, बल्कि हकीकत यह है कि एडमा के अधिकारियों ने इस कुंड के ऊपर बने एक प्राचीन झरना फव्वारे को तो गायब ही कर दिया है। जानकारी के अनुसार दफन किए गए कुंड के ऊपर एक झरना फव्वारा भी था, जो अब मौजूद नहीं है। करीब ढाई से तीन फीट ऊंचे इस फव्वारे के टॉप पर पान-पत्तियों का कलात्मक पत्थर लगा था। इसी पत्थर के नीचे बनी नालियों से पानी झरने के रूप में नीचे कुंड में गिरता था। कुंड में रंगीन लाइटें लगी थी, रात में यह झरना अद्भुत नजारा पेश करता था और पर्यटकों को काफी पसंद आता था। अब पता नहीं एडमा ने इस फव्वारे को कहां बेच खाया? आखिर क्या कारण थे कि इस फव्वारे को गायब कर दिया गया?

पता कराएंगे, कहां गया फव्वारा?
सिसोदिया बाग से गायब हुए इस फव्वारे के संबंध में जब एडमा के अधिशाषी अभियंता (अतिरिक्त प्रभार-कार्यकारी निदेशक कार्य) बीपी सिंह से जानकारी चाही गई तो उनका कहना था कि हम पुराने रिकार्ड निकलावाकर देखेंगे, क्योंकि करीब दस वर्ष पूर्व सिसोदिया बाग में बड़े स्तर पर संरक्षण कार्य कराए गए थे।पता लगाएंगे कि इस झरना फव्वारे को क्यों हटाया गया। यदि हटाया गया तो अब वह फव्वारा कहां है। पुरातत्व विभाग से पहले पीडब्ल्यूडी इस बाग का संधारण करता था, हो सकता है कि यह झरना फव्वारा पीडब्ल्यूडी ने लगवाया हो। यदि इसे पीडब्ल्यूडी ने लगवाया था तो यह प्राचीन नहीं हो सकता। शायद इसी कारण से इसे यहां से हटवा दिया गया हो।

पांच और दस साल के बीच में घूम रही शक की सूई
एडमा सूत्रों का कहना है कि चार-पांच वर्ष पूर्व यह फव्वारा यहां देखा जा रहा था, उसके बाद यह गायब हो गया। जबकि अधिकारी दस वर्ष पूर्व काम होने के गीत गा रहे हैं। यह इसलिए कि किसी भी नुकसान के लिए अधिकारी खुद जिम्मेदार नहीं बनना चाहते हैं। जिन अधिकारियों पर संरक्षण कार्यों की जिम्मेदारी है, वह पिछले पांच-छह वर्ष से एडमा में जमे बैठे हैं। यदि वह मानते हैं कि चार-पांच साल में फव्वारा गायब हुआ तो उनकी जिम्मेदारी तय हो जाएगी। ऐसे में वह लगातार कह रहे हैं कि यह कार्य करीब दस वर्ष पूर्व हुए थे, ताकि उनकी जिम्मेदारी तय न हो।

बदल रहा मूल स्वरूप, वर्ल्ड हेरिटेज सिटी दर्जे का क्या होगा
पुरातत्व विभाग के सूत्रों का कहना है कि पिछले दो दशकों से विरासत संरक्षण के नाम से लूट मची हुई है। केंद्र और राज्य सरकार से संरक्षण के लिए अरबों रुपयों का बजट आया। इस बजट को संरक्षण के नाम पर ठिकाने लगा दिया गया, जबकि इसके बदले प्रदेश के स्मारकों के मूल स्वरूप को बदल दिया गया। अब तो जयपुर का आधा शहर स्मारक की श्रेणी में आ गया है और वहां भी संरक्षण के नाम पर धडल्ले से प्राचीन निर्माण का मूल स्वरूप बदला जा रहा है। सरकार सोई बैठी है। शहर के लोग धृतराष्ट्र बनकर बैठे हैं। जयपुर के जनप्रतिनिधि मौन साधे बैठे हैं, मानो चाह रहे हों कि यह दर्जा हटे। ऐसे में जयपुर के वर्ल्ड हेरिटेज सिटी दर्जे पर संकट के बादल छाए नजर आ रहे हैं।

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