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भारत में कुछ लोग हैं, जो नहीं चाहते कि भारत उठ खड़ा हो : विजयादशमी उत्सव पर बोले RSS चीफ मोहन भागवत

यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहाँ से , अब तक है बाकी नमो निशान हमारा
कुछ बात तो है की हस्ती मिटती नहीं हमारी ,सदियों से रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा

अपने भाषण में कुछ इस तरह सरसंघसंचालक मोहन भगवत ने भारतवर्ष की विशेषताओं को परिभाषित किया। मौका था विजयदशमी का। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत बुधवार, 24 अक्टूबर को सुबह नागपुर के रेशम बाग में वार्षिक विजयादशमी कार्यक्रम को संबोधित किया , जिसमें पर्वतारोही संतोष यादव मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में शस्त्र पूजा की। इस दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अयोध्या में बन रहे राम मंदिर पर बयान दिया। उन्होंने कहा 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। उन्होंने आगे कहा कि प्रति वर्ष भारत के लोगो का गौरव बढ़ रहा है। इस वर्ष विजयादशमी में भी हम इसकी अनुभूति कर रहे है। जैसे- G20 यहां हुआ, वो होता तो प्रति वर्ष है, लेकिन हमने उसमे अपनी संस्कृति और गौरव को दिखाया। दुनिया ने भारत की उड़ान को देखा। हमारे मन की प्राणिक सद्भावना है और अफ्रीकन यूनियन को साथी बनाने पर भी पहले ही दिन सर्व सहमति हुई।
प्रसिद्ध गायक शंकर महादेवन ने की शुरुआत
इस बीच गायक-संगीतकार शंकर महादेवन ने RSS विजयादशमी उत्सव कार्यक्रम में श्लोक गाते हुए कहा कि तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय, ॐ शांतिः शांतिः शांतिः….यह विश्व की शांति का मंत्र है. हर इंसान की शांति के लिए प्रार्थना… यही हमारा देश है….
मणिपुर हिंसा के कारणों पर उठाये सवाल
संघ प्रमुख ने कहा कि मणिपुर की वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो यह बात ध्यान में आती है. लगभग एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक यह आपसी फूट की आग कैसे लग गई? क्या हिंसा करने वाले लोगों में सीमापार के अतिवादी भी थे? अपने अस्तित्व के भविष्य के प्रति आशंकित मणिपुरी मैतेयी समाज और कुकी समाज के इस आपसी संघर्ष को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास क्यों और किसके द्वारा हुआ ? वर्षों से वहां पर सबकी समदृष्टि से सेवा करने में लगे संघ जैसे संगठन को बिना कारण इसमें घसीटने का प्रयास करने में किसका निहित स्वार्थ है? इस सीमा क्षेत्र में नागाभूमि व मिजोरम के बीच स्थित मणिपुर में ऐसी अशांति व अस्थिरता का लाभ प्राप्त करने में किन विदेशी सत्ताओं को रुचि हो सकती है? क्या इन घटनाओं की कारण परंपराओं में दक्षिण पूर्व एशिया की भू- राजनीति की भी कोई भूमिका है? उन्होंने कहा कि देश में मजबूत सरकार के होते हुए भी यह हिंसा किन के बलबूते इतने दिन बेरोकटोक चलती रही है? गत 9 वर्षों से चल रही शान्ति की स्थिति को बरकरार रखना चाहने वाली राज्य सरकार होकर भी यह हिंसा क्यों भड़की और चलती रही? आज की स्थिति में जब संघर्ष व्रत दोनों पक्षों के लोग शांति चाह रहे हैं उसे दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठाते हुए दिखते ही कोई हादसा करवा कर फिर से हिंसा भड़काने वाली ताकते कौन सी हैं।


एकता जबरदस्ती बनाई तो बार बार बिगड़ेगी
भागवत ने राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक तीन तत्वों – मातृभूमि के प्रति समर्पण, पूर्वजों पर गर्व और सामान्य संस्कृति – के बारे में भी बात की। रैली को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने फिजूलखर्ची पर रोक लगाने और देश में रोजगार के अवसर बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि समाज की स्थाई एकता अपनेपन से निकलती है, स्वार्थ के सौदों से नहीं। हमारा समाज बहुत विशाल है और विविधताओं से भरा है। कालक्रम में कुछ विदेश की आक्रामक परंपराएं भी हमारे देश में प्रवेश कर गई, फिर भी हमारा समाज इन्हीं तीन बातों के आधार पर एक समाज बनकर रहा। इसलिए हम जब एकता की चर्चा करते हैं, तब हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह एकता किसी लेन-देन के कारण नहीं बनेगी। जबरदस्ती बनाई तो बार बार बिगड़ेगी।
मंत्र विप्लव का समझाया अर्थ
RSS चीफ मोहन भागवत ने कहा कि समाज विरोधी कुछ लोग अपने आपको सांस्कृतिक मार्क्सवादी या बोक (Woke) यानी जगे हुए कहते हैं। परंतु मार्क्स को भी उन्होंने 1920 दशक से ही भुला रखा है। विश्व की सभी सुव्यवस्था, मांगल्य, संस्कार, तथा संयम से उनका विरोध है। मुठ्ठी भर लोगों का नियंत्रण सम्पूर्ण मानवजाति पर हो, इसलिए अराजकता व स्वैराचरण का पुरस्कार, प्रचार व प्रसार करते हैं। माध्यमों तथा अकादमियों को हाथ में लेकर देशों की शिक्षा, संस्कार, राजनीति व सामाजिक वातावरण को भ्रम व भ्रष्टता का शिकार बनाना उनकी कार्यशैली है। ऐसे वातावरण में असत्य, विपर्यस्त तथा अतिरंजित वृत्त के द्वारा भय, भ्रम तथा द्वेष आसानी से फैलता है। आपसी झगड़ों में उलझकर असमंजस व दुर्बलता में फंसा व टूटा हुआ समाज, अनायास ही इन सर्वत्र अपनी ही अधिसत्ता चाहने वाली विध्वंसकारी ताकतों का भक्ष्य बनता है। उन्होंने कहा कि अपनी परम्परा में इस प्रकार किसी राष्ट्र की जनता में अनास्था, दिग्भ्रम व परस्पर द्वेष उत्पन्न करने वाली कार्यप्रणाली को मंत्र विप्लव कहा जाता है।

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