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सरकार किसानों के दबाव से मुक्त, सर्वोच्च न्यायालय ने कृषि कानूनों को लागू करने से रोका और 4 सदस्यों वाली समिति बनाई, अब किसानों को इसी समिति करनी होगी बात

सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार, 12 जनवरी को कृषि कानूनों को लेकर सुनवाई की और इन कानूनों के क्रियान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी। इसके अलावा न्यायालय ने किसानों से बातचीत के लिए चार सदस्यों वाली एक समिति जो कृषि कानूनों के पक्ष और विपक्ष के लोगों से वार्ता करेगी और दो महीने में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।

लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद किसान संगठनों की ओर से कहा गया कि उनका आंदोलन जारी रहेगा और वे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गई समिति से कोई बात नहीं करेंगे। अलबत्ता, सरकार से 15 जनवरी को बातचीत जरूर की जाएगी।

समिति सरकार की पक्षधर

किसानों को समर्थन दे रहे राजनीतिक दलों की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को शुरुआत में किसानों की जीत करार दिया गया किंतु धीरे-धीरे सारा माजरा स्पष्ट होते-होते इन राजनीतिक दलों के सरकार का उपहास उड़ाते स्वर धीमे पड़ने लगे। किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल ने तो यहां तक कह डाला कि यह समिति सरकार की पक्षधर है और इसके सभी सदस्य समय-समय पर नये कृषि कानूनों की जरूरतों को लेकर बयान देते रहे हैं।

उन्होंने कहा कि किसान ऐसी समिति से किसी प्रकार की बातचीत नहीं करेंगे। उल्लेखनीय है कि इस समिति में भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घनावत, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और डॉक्टर प्रमोद कुमार जोशी को शामिल किया गया है।

कौन हैं समिति के सदस्य

भारतीय किसान यूनियन से जुड़े रहे भूपिंदर सिंह मान कृषि विशेषज्ञ हैं, राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। वे अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के चेयरमैन भी हैं और अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के तहत आने वाले कृषि संगठनों ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाक़ात कर कृषि कानूनों का समर्थन किया था।

अनिल घनवत महाराष्ट्र से हैं के प्रमुख किसान संगठन शेतकारी संगठन के अध्यक्ष हैं। कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी 2015 में पद्मश्री सम्मान पा चुके हैं कृषि उपज लागत व मूल्य आयोग के वे चेयरमेन रह चुके हैं। प्रमोद कुमार जोशी भी हैदराबाद के नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च मैनेजमेंट और नेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली के अध्यक्ष रहे हैं।

आंदोलन जारी रहेगा

किसान नेताओं का कहना है कि वे अपना आंदोलन जस का तस जारी रखेंगे। उनकी ओर से कहा गया कि गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी को शांतिपूर्ण रैली निकली जाएगी। उन्होंने कहा कि अदालत को किसान आंदोलन के संदर्भ में अंधेरे में रखा गया है। किसानों ने स्पष्ट किया कि वे शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं और वे आंदोलन में किसी तरह की हिंसा नहीं चाहते हैं।

किसानों को माया मिली न राम

दरअसल किसान चाहते थे कि नये कृषि कानूनों को रद्द किया जाये और इस मामले पर वे सरकार पर दबाव बना रहे थे। वार्ता के कई दौर हुए किंतु न किसान अपनी मांग से पीछे हटे और न ही सरकार। मामला अदालत में पहुंच गया और अब सर्वोच्च अदालत के पास मामला होने के बाद उन्हें समझ में आने लगा है कि जो हालात बने हैं, उनमें सरकार पर किसानों को लेकर बना दबाव हट गया है। अब किसानों को सर्वोच्च अदालत द्वारा बनाई गई चार सदस्यीय समिति से ही बात करनी होगी।

सरकार के लिए इतना जरूर है कि उसके बनाये कानून फिलहाल लागू नहीं हों सकेंगे किंतु यह भी स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय ने नये कृषि कानूनों को रद्द करने के आदेश नहीं दिये हैं, उन्हें सिर्फ कुछ समय के लिए टाला है।  सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले पर समिति बनाकर मामले को सुलझाने को बात कही है और सरकार की ओर से भी यही तो कहा जा रहा था। ऐसे में आंदोलन कर रहे किसानों की स्थिति माया मिली ना राम वाली होकर रह गई है।

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