जयपुर

चुनाव से पहले मचेगा भाजपा में गदर! पूनिया के निर्देशन में अगले चुनाव होने पर संक्षय

जयपुर। राजस्थान की सियासत में गुटबाजी नासूर बन चुकी है। भाजपा हो या कांग्रेस दोनों पार्टियों में यह चरम पर है। अब कहा जा रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान भाजपा में गदर मच सकता है। इसके पीछे प्रमुख कारण गुटबाजी को समाप्त करने के लिए भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की ओर से दिखाई जाने वाली सख्ती को बताया जा रहा है।

सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश चुनावों के बाद भाजपा का केंद्रीय नेतृतव राजस्थान की ओर रुख करेगा। प्रदेश भाजपा में चल रही गुटबाजी को समाप्त करने की कोशिशों में केंद्रीय नेतृत्व सख्ती दिखा सकता है। केंद्र के सख्ती के रूप में प्रदेश संगठन में बदलाव, बिना मुख्यमंत्री चेहरे के चुनाव में उतरना और चुनावों में भीतरघात करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जैसे कदम प्रमुख हो सकते है।

केंद्र सख्ती इसलिए कर सकता है, क्योंकि प्रदेश में सभी गुट चाहते हैं कि चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री का चेहरा तय कर दिया जाए, जबकि केंद्र गुटबाजी को समाप्त करने के लिए बिना चेहरे के चुनाव में उतरने का मानस बना चुका है। ऐसे में चेहरा तय किया जाए या ना किया जाए, प्रदेश भाजपा में विवाद होना तय है।

भाजपा में माना जा रहा है कि अगला विधानसभा चुनाव सतीश पूनिया के नेतृत्व में नहीं लड़ा जाएगा। कारण यह कि पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बने करीब डेढ़ वर्ष बीत चुका है और चुनाव 2023 के अंत में होने से पूर्व पूनिया का तीन वर्ष का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। भाजपा विधान के अनुसार एक कार्यकाल पूरा करने के बाद उसी नेता को फिर से प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा सकता है, लेकिन अभी तक पूनिया भाजपा में सर्वमान्य प्रदेशाध्यक्ष नहीं बन पाए हैं।

ताजा राजनीतिक हालातों में वसुंधरा गुट की ओर से पूनिया के भारी विरोध के चलते उनके फिर से प्रदेशाध्यक्ष बनने पर संक्षय जताया जा रहा है। वसुंधरा गुट चाहता है कि पूनिया अपना यह कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाएं और उनके खेमे में से किसी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाए है। पहले कोटा संभाग में राजे गुट के नेताओं ने पूनिया पर निशान साधा और उसके बाद जयपुर में पूर्व मंत्री और विधायक कालीचरण सराफ ने राजे के समर्थन में ताल ठोकी है।

सूत्र कह रहे हैं कि प्रदेशाध्यक्ष को निशाने पर लिए जाने का सीधा मतलब है कि इस पद पर भी चुनावों के पहले काफी हाहाकार मच सकता है। राजे गुट खुद का प्रदेशाध्यक्ष चाहता है, ताकि संगठन पर उनकी पकड़ मजबूत हो और अगले विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण में उनकी पूरी दखल रहे। वहीं पूनिया गुट चाहता है कि वह अपना कार्यकाल पूरा करें और दोबारा प्रदेशाध्यक्ष बनें, तीसरी ओर केंद्र प्रदेशाध्यक्ष पद पर अपने आदमी को बिठाना चाहता है, ताकि टिकट वितरण उनके निर्देशों पर हो, प्रदेश में गुटबाजी को दबाया जा सके।

इन सभी विवादों के बीच संगठन में पार्टी से इतर बैठकें करने और बयान जारी करने वालों के लिए कहा जाने लगा है कि पार्टी के जयचंद बाहर निकलने लगे हैं। यह वही नेता हैं, जिनको अपने टिकट कटने का डर सता रहा है और इस तरह का माहौल बनाकर वह अपने टिकटों के जुगाड़ में अभी से ही लग गए हैं।

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