जयपुर

नाहरगढ़ से भाग रहे बघेरे, अभ्यारण्य में वन्यजीवों की सुरक्षा खतरे में, नाहरगढ़ फोर्ट की रात्रिकालीन सुरक्षा को लेकर पुरातत्व विभाग और आरटीडीसी आमने-सामने, बड़े खेल में वन विभाग मौन

कोरोना लॉकडाउन में नाहरगढ़ फोर्ट परिसर और प्राचीरों पर बघेरे खुलेआम घूम रहे थे, लेकिन लॉकडाउन खत्म हुआ और लोगों की आवाजाही शुरू हुई तो बघेरे फोर्ट से भाग गए। ऐसे में दो बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं कि फोर्ट में बघेरे क्यों आए? और आवाजाही शुरू होते ही वह क्यों भाग गए? इसका जवाब यह है कि नाहरगढ़ फोर्ट बघेरों का प्राकृतिक आवास है। यहां लोगों की आवाजाही बढ़ने से बघेरों में असुरक्षा की भावना पैदा हुई और वह फोर्ट से भाग गए।

अब सरकार को सोच लेना चाहिए कि नाहरगढ़ अभ्यारण्य का क्या करना है? क्या इसे अभ्यारण्य ही बनाए रखकर जयपुर के पर्यावरण को बचाना है, या फिर कुछ राजनेताओं, पूंजीपतियों और ब्यूरोक्रेट्स की वाणिज्यिक गतिविधियां यहां शुरू कराके, शहर के वनक्षेत्र को बर्बाद करना है?

जयपुर के एकमात्र अभ्यारण्य क्षेत्र नाहरगढ़ में संरक्षित वन्यजीवों की सुरक्षा खतरे में है। नाहरगढ़ अभ्यारण्य क्षेत्र की सीमा के अंदर स्थित नाहरगढ़ फोर्ट की रात्रिकालीन सुरक्षा को लेकर पुरातत्व विभाग और आरटीडीसी के अधिकारी आमने-सामने हो चुके हैं। जबकि असलियत यह है कि अभ्यारण्य के अंदर वन एवं वन्यजीव अधिनियमों की धज्जियां उड़ाकर गैरकानूनी रूप से वाणिज्यिक गतिविधियां संचालित करने के लिए अधिकारी आमने-सामने हुए हैं।

आरटीडीसी के प्रबंध निदेशक निक्या गोहाएन ने 25 जनवरी को पुरातत्व विभाग के निदेशक को पत्र लिखकर नाहरगढ़ अधीक्षक पर गंभीर आरोप लगाए कि आरटीडीसी के पड़ाव रेस्टोरेंट और बार के पास स्थित कालीबुर्ज का संरक्षण के बाद भी रख-रखाव नहीं किया जा रहा है और न ही यहां चौकीदार है। बुर्ज पर दिनरात असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है। यह लोग इस पूरे परिसर का अनधिक्रत उपयोग करते हैं। संरक्षण कार्यों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया है, जिससे पड़ाव की व्यवस्थाएं भी प्रभावित हो रही है।

असामाजिक तत्वों द्वारा पड़ाव कैम्पस में प्रवेश कर तोड़फोड़ की जा रही है। पहाड़ और जंगल क्षेत्र होने के कारण रात्रि चौकीदार भी इनसे भयभीत रहते हैं, जिससे आरटीडीसी को यहां सीसीटीवी कैमरे लगाने पड़ गए।

आरटीडीसी को याद दिलाई शर्तें

पुरातत्व सूत्रों के अनुसार यह पत्र मिलने के बाद पुरातत्व निदेशक पीसी शर्मा ने अधीक्षक से स्पष्टीकरण मांगा, जिससे अधीक्षक की भृकुटियां तन गई। उन्होंने पड़ाव रेस्टोरेंट बार के लिए विभाग के साथ हुए करार की शर्तों का हवाला देते हुए एक सख्त पत्र आरटीडीसी के प्रबंध निदेशक को लिख दिया। आरटीडीसी को याद दिलाया गया कि शर्तों के अनुसार रात के समय फोर्ट की सुरक्षा की जिम्मेदारी आरटीडीसी की है।

करार का निकाल रहे गलत अर्थ

उधर आरटीडीसी सूत्रों का कहना है कि अधीक्षक करार की शर्तों का गलत अर्थ निकाल रहे हैं। पूर्व में फोर्ट पहले बंद होने के कारण सुरक्षा की जिम्मेदारी आरटीडीसी की थी, लेकिन पुरातत्व विभाग द्वारा नाइट ट्यूरिज्म शुरू करने के बाद रात तक फोर्ट में पर्यटक आते हैं, ऐसे में पूरे फोर्ट की सुरक्षा की जिम्मेदारी आरटीडीसी की कैसे हो सकती है। आरटीडीसी सिर्फ अपने क्षेत्र की सुरक्षा उठाने में ही सक्षम है।

वाणिज्यिक गतिविधियों में वन अधिकारियों की मिलीभगत तो नहीं

फोर्ट के व्यावसायिकरण के लिए अवैध रूप से जगह कब्जाने के लिए आरटीडीसी और पुरातत्व विभाग की लड़ाई से वन विभाग अंजान नहीं है, लेकिन वन अधिकारी नाकारा बने बैठे हैं। मौजूदा वाणिज्यिक गतिविधियों को बंद कराना तो दूर, नई वाणिज्यिक गतिविधियों के मामले सामने आने के बावजूद वन अधिकारी कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है। लगता है कि इनमें वन अधिकारियों की भी पूरी मिलीभगत है। इस लड़ाई के संबंध में जब वन अधिकारियों से सवाल पूछे गए तो कोई भी इस मामले पर बोलने को तैयार नहीं है।

एनजीटी में पहुंचा मामला

अभ्यारण्य में अवैध वाणिज्यिक गतिविधियों का मामला एनजीटी तक पहुंच चुका है। फोर्ट में वाणिज्यिक गतिविधियों पर वन विभाग में शिकायत हुई थी। विभाग ने जांच कराई और रिपोर्ट जुलाई 2020 में सामने आ गई। वन विभाग ने फोर्ट में चल रही सभी वाणिज्यिक गतिविधियों को अवैध पाया। शिकायतकर्ता ने लीगल नोटिस देकर फोर्ट से जुड़े सभी विभागों पर जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की मांग की, लेकिन किसी भी विभाग ने नोटिसों तक का जवाब नहीं दिया, ऐसे में शिकायतकर्ता एनजीटी पहुंच चुके हैं।

काली बुर्ज पर नहीं हो सकती वाणिज्यिक गतिविधियां

इस मामले में शिकयतकर्ता राजेंद्र तिवाड़ी का कहना है कि अभ्यारण्य क्षेत्र में लोग 24 घंटे मौजूद रहेंगे तो वन्य जीवों की सुरक्षा को खतरा होना लाजमी है। वाहनों की आवाजाही से वन्यजीवों के विचरण में बाधा आएगी। बड़ी मात्रा में पर्यटकों के अभ्यारण्य में जाने और अपशिष्ट पदार्थ फेंकने से वन एवं वन्यजीवों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वाइल्डलाइफ एक्ट शाम पांच बजे बाद अभ्यारण्य क्षेत्र में आवाजाही की इजाजत नहीं देता है, फिर कैसे यहां पड़ाव और नाइट ट्यूरिज्म संचालित हो रहा है।

जो वन अधिकारी वाणिज्यिक गतिविधियों पर बोलने से बच रहे हैं, क्या उन्हें जांच रिपोर्ट की जानकारी नहीं है? यहां नहीं तो उन्हें एनजीटी में इन सवालों का जवाब देना पड़ेगा। नाहरगढ़ फोर्ट आरक्षित वन क्षेत्र में है, जो सेंचुरी का पार्ट है। ऐसे में काली बुर्ज को न तो आरटीडीसी ले सकता है और न ही पुरातत्व विभाग किसी को दे सकता है।

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