बेंगलुरु। बढ़ती जनसंख्या की ही गति से जो समस्या बढ़ रही है वह है इस जनसंख्या को सहारा देने के लिए ज़मीन की कमी, फिर चाहे वह मकान के लिए हो या अनाज के लिए। मकान की कमी को पूरी करने के लिए, खासकर बड़े शहरों में, बहुमंजिली इमारतों का निर्माण किया का रहा है। किन्तु अनाज का क्या? बढ़ती जनसंख्या के साथ प्रति व्यक्ति कृषि भूमि के स्वामित्व का आकार घट रहा है। समस्या और अधिक दुर्गम हो रही है क्योंकि मौजूदा कृषि/ उपजाऊ भूमि को औद्योगिक अथवा आवासीय भूमि में स्थानांतरित किया जा रहा है।
इसका सबसे बड़ा कारण है कि भारत में कृषि मुख्यतया छोटे किसानों द्वारा की जाती है जो कृषि भूमि का छोटा क्षेत्रफल होने के कारण विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल नहीं कर पाते। इन किसानों के लिए खेती एक लाभदायक व्यवसाय नहीं है। ये मात्र अपने परिवार के भरण पोषण के लिए अनाज उत्पन्न कर पाते हैं। यदि कुछ बच गया और अच्छे दाम मिल गए तो उसे बेच देते हैं किन्तु किसी वर्ष अनुकूल परिस्थिति ना होने पर परिवार के गुज़र बसर हेतु भी अनाज उत्पन्न नहीं हो पाता। इस कारण मौका मिलने पर ये किसान अपनी भूमि को बेच देते हैं।
ऐसे में एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। यह एक कृषि पद्धति है जिसका उद्देश्य कृषि को पशुपालन और कृषि संबंधी अन्य व्यवसायों से जोड़कर सबका सर्वांगीण विकास करना है। यह प्रणाली कृषि क्षेत्र को लाभदायक बनाने की क्षमता रखती है। यह एक बहुआयामी प्रणाली है जिसे मात्र परिभाषित करके किसानों को अपनाने को नहीं कहा सकता।
सैद्धांतिक रूप से कहें तो यह एक बहुत आसान प्रणाली है जिसमें पशुपालन, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन, कृषि वानिकी, चारा फसलों के उत्पादन इत्यादि को कृषि कार्य के साथ एकीकृत किया जाते है जिस कारण इसे एकीकृत कृषि प्रणाली कहा जाता है। किन्तु व्यावहारिक रूप से इसे अपनाने में विभिन्न पद्धतियों के आपसी समीकरण को ध्यान में रखना पड़ता है जिससे इस प्रणाली में मौजूद सभी क्षेत्र अपनी क्षमता के अनुसार संपूर्ण उत्पादन करने में सक्षम हो पाएं।
एकीकृत कृषि प्रणाली का एक बहुत सुंदर उदाहरण उत्तर-पूर्वी भारत के कई धान के खेतों में देखने को मिलता है जहां किसान धान की फ़सल के बीच में मछली पालन भी करते हैं। मछलियां धान की फसल में मौजूद कीड़े-मकोड़ों, शैवाल इत्यादि का सेवन करती हैं और साथ ही साथ मछलियों द्वारा विसर्जित मल-मूत्र, जैविक उर्वरक का कार्य करते हैं जिससे न सिर्फ धान की पैदावार में वृद्धि होती है बल्कि धान और मछली, दोनों के उत्पादन लागत में कमी भी आती है। धान की कटाई से पहले मछलियों को पकड़ कर बेच दिया जाता है।
इसी प्रकार शुष्क क्षेत्रों में अनाज की फ़सल या दाल के साथ ही पेड़ों या चारा फ़सल उगाने पर इनके उत्पादन में वृद्धि आती है। इस व्यवस्था में यदि पशु पालन को जोड़ दिया जाए तो एक बेहतरीन प्रणाली कि स्थापना होती है जिसमें पेड़ या चारे की फसल मुख्य फ़सल की मेड़ का काम करके उसे जानवरों से सुरक्षित करने के साथ ही पशुओं को चारा प्रदान करने का कार्य करती है। पशुओं द्वारा उत्सर्जित मल-मूत्र खेत में उर्वरक का कार्य करते हैं। बायोगैस संयंत्र होने पर गोबर, पत्ते, इत्यादि से जैविक उर्वरक के साथ साथ गोबर गैस का भी उत्पादन किया सकता है जिसका इस्तेमाल घरेलू इंधन के तौर पर हो सकता है।
आम भाषा में कहा जाए तो एकीकृत कृषि प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है जो किसी स्थान के वातावरण के अनुकूल कुछ चयनित अंतर निर्भर और अंतर संबंधित फसलों, पशुओं और कृषि संबंधित अन्य सहायक व्यवसायों के द्वारा की जाती है। चयनित गतिविधियां ऐसी होती हैं कि किसी एक गतिविधि से उत्पन्न अपशिष्ट दूसरी गतिविधि के लिए मुख्य निविष्ट का कार्य करती है।
बेहतर उत्पादन से मिलने वाले अधिक मुनाफे के अतिरिक्त इस प्रणाली का एक मुख्य लाभ यह भी है कि किसानों कि निर्भरता मात्र कृषि पर रहने की जगह विभिन्न क्षेत्रों में वितरित हो जाती है। इस कारण प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते यदि मुख्य फसल नष्ट भी हो जाए तो किसानों के पास एक दूसरी सहायक जीविका का साधन रहता है।
एक बेहतर योजना से बनाई गई एकीकृत कृषि प्रणाली में अपशिष्ट उत्पादन नहीं होता (या न के बराबर होता है) क्योंकि एक गतिविधि से उत्पादित अपशिष्ट दूसरी गतिविधि में काम आ जाती है और इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता। इसके साथ ही इस प्रणाली से नए रोजगार उत्पन्न होते हैं, पूरे साल आमदनी प्राप्त होती है, कृत्रिम उर्वरकों के कम इस्तेमाल से उत्पादन लागत में कमी आती है और अंततः कृषक समुदाय की आजीविका में सुधार होता है।
सरकार को चाहिए कि कृषि संगठनों/ संस्थानों के जरिए किसानों में एकीकृत कृषि प्रणाली के प्रति जागरूकता लाएं, किसानों को उनके वातावरण, मिट्टी और सामाजिक मानदंडों के अनुकूल एकीकृत कृषि प्रणाली के मॉडल सुझाएं और जो किसान इन्हें अपनाने के प्रति इच्छुक हों उन्हें सब्सिडी तथा सस्ती दरों पर कृषि ऋण दिलाकर उनकी मदद की जाए।
यदि इस प्रणाली को मजबूती प्रदान करने के लिए गंभीरता से कार्य किया जाए तो निश्चित तौर पर यह सरकार को अपने वर्ष 2022 के लिए स्थापित लक्ष्य ‘किसानों की आय दोगुनी करना’ को हासिल करने में मदद कर सकती है।