जयपुर

एसीबी में परिवाद दर्ज हुआ तो निगम से गायब हो गई ग्रीन लाइन प्रोजेक्ट की फाइल

अधिकारियों ने कर ली थी नगर निगम को करोड़ों की चपत लगाने की तैयारी

जयपुर। नगर निगम में विवादित मामलों की फाइलें गायब होने का पुराना इतिहास रहा है। जिन मामलों में अधिकारियों के फंसने की संभावना होती है, उन फाइलों को गायब करवा दिया जाता है। ऐसी एक गायब हुई फाइल का मामला निगम में सामने आया है। इस मामले में विवादित ग्रीन लाइन प्रोजेक्ट की फाइल गायब बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि एसीबी में परिवाद दर्ज होने के बाद इस मामले में संदिग्ध अधिकारियों ने इस फाइल को गायब करवा दिया है।

नगर निगम ने वर्ष 2010 में राजधानी के मैरिज गार्डनों, होटलों, रेस्टोरेंटों, खान-पान की दुकानों और मिठाई की दुकानों से फूड वेस्ट को एकत्रित कर उसे खाद में बदलने के लिए ग्रीन लाइन प्रोजेक्ट की शुरूआत की थी। यह काम शिवशक्ति एंटरप्राइजेज को सौंपा गया था। अनुबंध की शर्तों के अनुसार कंपनी को मैरिज गार्डनों, होटलों से फूड वेस्ट उठाने के एवज में निर्धारित शुल्क वसूलना था। फूड वेस्ट से खाद बनाकर बेचना था। शुल्क और खाद से प्राप्त आय में से उसे पांच लाख रुपए रेवेन्यू शेयर, एक लाख रुपए प्रतिवर्ष लाइसेंस फीस नगर निगम को देनी थी। निगम को देय राशि में हर वर्ष 10 फीसदी बढ़ोतरी भी होनी थी। निगम में कहा जा रहा है कि अनुबंध में कंपनी को किसी प्रकार के भुगतान का कोई क्लॉज नहीं था।

निगम सूत्रों का कहना है कि फर्म की ओर से निगम में करीब 90 लाख का बिल पेश कर काम के एवज में भुगतान मांगा गया था। जबकि अनुबंध की शर्तों के अनुसार निगम की कंपनी के प्रति कोई देनदारी नहीं थी। बल्कि निगम कंपनी से करोड़ों रुपए का रेवेन्यू शेयर और लाइसेंस फीस मांगता है।

निगम के उपायुक्त स्वास्थ्य हर्षित वर्मा ने बिल को प्रत्येक मैरिज गार्डन से कचरा उठाने और मैरिज गार्डनों द्वारा 500 रुपए शुल्क नहीं दिए जाने की बात वैरिफाइ किए बिना ही सत्यापित किया और फाइल को आगे बढ़ा दिया, लेकिन मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी ने इस फाइल पर सवाल खड़े कर दिए और कंपनी को भुगतान पर विपरीत टिप्पणी लिख कर फाइल को करीब 25 दिन पूर्व वित्तीय सलाहकार के पास भेज दिया।

कहा जा रहा है कि तभी से यह फाइल गायब है। न तो स्वास्थ्य शाखा और न ही अकाउंट्स शाखा इस फाइल के बारे में जानकारी दे रहे हैं। नियमानुसार यदि फाइल सलाहकार के पास आई थी, तो उन्हें इस पर अपनी टिप्पणी कर फाइल को आगे भेजना चाहिए था। निगम के वित्तीय सलाहकार महेंद्र मोहन से जब इसकी जानकारी ली गई तो पहले उन्होंने बोला कि वह फाइल उनके पास तो नहीं आई और न ही उन्होंने उस पर कोई वर्क किया। इस फाइल की जानकारी उपायुक्त स्वास्थ्य हर्षित वर्मा ही दे सकते हैं।

बाद में महेंद्र मोहन ने अपने लिपिक से फाइल की जानकारी लेकर बताया कि यह फाइल उनके पास से उपायुक्त स्वास्थ्य शाखा में जा चुकी है। हमारे पास इसका रिकार्ड है। जबकि गायब हुई फाइल के संबंध में हर्षित वर्मा का कहना है कि अनुबंध में कई शर्तें थी, उन्हीं शर्तों के अनुसार भुगतान के बिल को सत्यापित किया गया था। इस फाइल की जानकारी मेरे पास नहीं है। मेरे पास यह फाइल नहीं आई है।

ऐसे में निगम में हल्ला मचा हुआ है कि अधिकारियों ने इस फाइल को गायब करवा दिया है, क्योंकि इस प्रोजेक्ट को लेकर अगस्त में ही एसीबी में किसी ने परिवाद दर्ज कराया है। यदि यह फाइल रिकार्ड में रही तो कई अधिकारियों की नौकरी पर संकट खड़ा कर सकती है।

नगर निगम के पूर्व मुख्य सचेतक गिरिराज खंडेलवाल का कहना है कि इस प्रोजेक्ट की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। कंपनी को नियमविरुद्ध फायदा पहुंचाने वाले और फाइलों को गायब कराने वाले अधिकारियों की पहचान करके उनके खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। निगम का रेवेन्यु शेयर नहीं दिए जाने के कारण जब उच्चाधिकारियों ने इस कंपनी का काम बंद कराने के आदेश दे दिए थे, तो फिर अधिकारी कैसे कंपनी को बिल का भुगतान करने में जुटे हैं।

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