जयपुर। नगर निगम चुनावों के बाद जनता सोच रही होगी कि नया बोर्ड बनने के बाद जयपुर के दिन कुछ सुधरेंगे, लेकिन राजधानी के लोगों को यह आस छोड़ देनी चाहिए कि नए बोर्ड उनकी समस्याओं को कम करेंगे। जानकारों का कहना है कि बोर्डों में काम के नाम पर अब सिर्फ और सिर्फ राजनीति होगी, जनता के काम नहीं होंगे। शहर की जनता को पांच साल सफाई, डोर-टू-डोर कचरे का संग्रह, सीवर, रोड लाइट, आवारा पशु, पट्टों और अन्य कार्यों के लिए सिर्फ निगम कार्यालयों में चप्पलें घिसते हुए हाजिरी लगानी होगी।
निगम सूत्रों का कहना है कि नगर निगम ग्रेटर में जल्द ही महापौर और सीईओ के बीच अधिकारों की लड़ाई शुरू होने वाली है, क्योंकि निगम का शगुन ही अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम करने के साथ हुआ है, जबकि सीईओ ने बिना महापौर की सहमति के ठेकेदारों को करोड़ों रुपयों का भुगतान कर दिया। ग्रेटर की महापौर सौम्या गुर्जर ने निगम सीईओ दिनेश यादव को पत्र लिखकर अपने अधिकारों की जानकारी मांगी है।
सूत्र कह रहे हैं कि इस पत्र के साथ ही निगम में राजनीति शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि ग्रेटर बोर्ड भाजपा का है और प्रदेश में सरकार कांग्रेस की है, तो निगम में सिर्फ कांग्रेस की ही चलेगी। अधिकारी सिर्फ कांग्रेसी पार्षदों, विधायकों और हारे हुए विधायक प्रत्याशियों के ही काम करेंगे। ऐसे में बोर्ड और अधिकारियों के बीच टकराव की शुरूआत हो चुकी है, जल्द ही इस टकराव के विकराल होने के आसार हैं।
पिछले बोर्ड में भी अधिकारों को लेकर निगम में भारी हंगामा हुआ था। पूर्व महापौर अशोक लाहोटी और सीईओ रवि जैन के बीच अधिकारों को लेकर कई महीनों तक टकराव हुआ था। उस समय जैन के तबादले के साथ इस विवाद की समाप्ति हुई थी, क्योंकि उस समय सरकार भी भाजपा की थी, लेकिन वर्तमान में सरकार कांग्रेस की है। इसका खामियाजा शहर की जनता ने ही भुगता था और अब नए बोर्ड में भी पांच सालों तक ऐसा ही कुछ रहने वाला है।
पूर्व पार्षद अनिल शर्मा का कहना है कि किसी महापौर को अपने अधिकारों कोपूछने की जरूरत नहीं होती है। निगम में सभी प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार महापौर पद में समाहित हैं। सभी कार्यों में महापौर की सहमति जरूरी होती है। नगर निगम जयपुर सीईओ को भी एक करोड़ तक के कार्य कराने का अधिकार है, लेकिन यह कार्य भी महापौर की सहमति से होते हैं।