जयपुर

कोटा संभाग के प्राचीन मंदिरों का मूल स्वरूप बिगाड़ने के मामले में शासन सचिव ने लिया संज्ञान, पुरातत्व निदेशालय हाईकोर्ट और उच्चाधिकारियों को बरगलाने में जुटा

जयपुर। कोटा संभाग के अति प्राचीन और संरक्षित मंदिर समूहों का मूल स्वरूप बिगाड़ने का मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया, लेकिन इसकी जानकारी पुरातत्व, कला एवं संस्कृति विभाग की शासन सचिव तक नहीं पहुंच पाई है। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के बजाए जब अन्य सूत्रों से शासन सचिव तक इस मामले की रिपोर्ट और हाईकोर्ट का नोटिस पहुंचा तो उन्होंने संज्ञान लेते हुए रिपोर्ट तलब कर ली है।

पुरातत्व सूत्रों का कहना है कि प्राचीन मंदिरों के मूल स्वरूप को बदलने जैसा बेहद गंभीर मामला अधिकारियों द्वारा दबाए रखने और उच्च स्तर पर इसकी सूचना नहीं पहुंचाने से शासन सचिव मुग्धा सिन्हा काफी नाराज बताई जा रही है। जब उनके पास दूसरे सूत्रों से इसकी जानकारी पहुंची तो उन्होंने विभाग के निदेशक पीसी शर्मा से इस मामले पर तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है।

उल्लेखनीय है कि इस मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय में भी याचिका दायर हुई है। याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस की बेंच ने इस मामले में पुरातत्व निदेशक को 31 मार्च तक रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दे रखे हैं। विभाग को जांच के लिए अधिकारी नियुक्त कर फोटो समेत रिपोर्ट पेश करनी है। निदेशालय बुधवार को यह रिपोर्ट पेश कर देगा।

हाईकोर्ट के निर्देशों की पालना में निदेशक ने तीन सदस्यों की कमेटी गठित कर इस मामले की जांच कराई है। कमेटी में एक सदस्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण सहायक और दो सदस्य पुरातत्व विभाग से हैं। इनमें अल्बर्ट हॉल संग्रहालय के अधीक्षक राकेश छोलक और मुख्यालय पर तैनात तकनीकी अधीक्षक धर्मजीत कौर शामिल है। गौरतलब है कि धर्मजीत कौर को स्मारकों के संरक्षण का कोई भी आधिकारिक और तकनीकी अनुभव नहीं है।

इनका अब तक का पूरा कार्यकाल संग्रहालय क्यूरेटर के रूप में बीता है। सूत्रों का कहना है कि जांच रिपोर्ट के नाम पर पुरातत्व अधिकारी हाईकोर्ट की आंखों में धूल झोंकने की कोशिशों में लगे हैं। तकनीकी रूप से जो कमेटी बनाई गई है, वह यह जांच करने में किसी प्रकार से भी सक्षम नहीं है।

इस मामले में कोटा वृत्त अधीक्षक की भूमिका की भी जांच होनी है। कमेटी में जो दो सदस्य शामिल किए गए हैं, वह कोटा वृत्त अधीक्षक से जूनियर हैं। वहीं इसी वृत्त में दूसरी अन्य अनियमितताओं (पोपाबाई मंदिर-आंवा, छन्नेरी-पन्नेरी-झालावाड़)के लिए उप निदेशक की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई थी, तो फिर सवाल उठ रहे हैं कि दोबारा नई कमेटी क्यों बनाई गई है? क्या यह नई कमेटी हाईकोर्ट और शासन सचिव को सही रिपोर्ट दे पाएगी?

शासन सचिव को करानी चाहिए स्वतंत्र जांच
पुरातत्व सूत्रों का कहना है कि शासन सचिव को निदेशालय द्वारा विभाग के कार्यों की पूरी जानकारी नहीं पहुंचाई जा रही है। ऐसे में शासन सचिव को निदेशक से रिपोर्ट मांगने के बजाए स्वयं के स्तर पर स्वतंत्र जांच कराना बेहतर रहेगा, क्योंकि इस गंभीर मामले में खुद निदेशक की भी जवाबदेही बन रही है।

कोटा के पोपाबाई मंदिर समूह और झालावाड़ के छन्नेरी-पन्नेरी का मूल स्वरूप बिगाड़ने के मामले में काम बंद होने के बाद निदेशक ने एक भी बार वहां जाकर असलियत जानने की कोशिश नहीं की। वहीं निदेशक की मंजूरी के बाद ही ठेकेदार को रनिंग बिल का भुगतान किया गया। ऐसे में निदेशक सही जांच रिपोर्ट शासन सचिव को देंगे, इसपर संक्षय नजर आ रहा है।

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