एडमिरल सुरीश मेहता देश के ऐसे पहले नौसेना प्रमुख (31 अक्टूबर 2006 से 31 अगस्त 2009 तक) रहे हैं जो भारत की स्वतंत्रता के बाद की पैदाइश थे। अति विशिष्ट सेना मेडल (एवीएसएम) और परम विशिष्ट सेवा मेडल (पीवीएसएम) सम्मान पा चुके मेहता भारतीय नौसेना में 1971 से लेकर तक आए सभी किस्मों के बदलावों के गवाह रहे हैं। भारतीय नौसेना दिवस के विशेष मौके पर उनके साथ क्लीयरन्यूज डॉट लाइव के संपादक राकेश रंजन ने विभिन्न विषयों पर उनसे बातचीत की। पेश है, उनके साथ बातचीत के प्रमुख अंश, उन्हीं की जुबानी..
- 1971 के युद्ध के दौरान, मैं चेन्नई में तैनात था। काफी जूनियर था और हमें किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा गया था। हम अपने एयर क्राफ्ट में बैठे रहते थे और अगले आदेश की प्रतीक्षा में रहते थे। तब के पूर्वी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश की तरफ सीमाएं सील कर दी गई थीं। उस युद्ध के ऑपरेशन ट्राइडेंट में मैंने सिर्फ निगहबानी तक ही काम किया था। बहुत से सीनियर लोग थे, उन्होंने सीमा पर मोर्चा संभाल रखा था।
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- 1971 के युद्ध के समय और आज के समय में अंतर बहुत आ गया है। पहले अपनी ही तीनों सेनाओं के बीच समन्वय में बहुत समय लगता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। घरेलू स्तर पर कोई भी बात हो, तीन अधिकारी एक ही समय पर बातचीत कर किसी भी आपदा का तत्काल समाधान निकाल लेते हैं।
- जहां तक अंतरराष्ट्रीय स्तर की बात है, बहुत से प्लेफॉर्म हैं जहां विदेशी सेनाओं के साथ भी समन्वय तत्काल स्थापित कर लेते हैं। पिछले दिनों मालाबार सैन्य अभ्यास में भारत, जापान और अमरीका के साथ ऑस्ट्रेलिया भी जुड़ गया था। पड़ोसी दुश्मन देशों को इससे हमारी बढ़ती ताकत का अहसास जरूर हुआ होगा। इसके एक और फायदा यह भी होता है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जब भी हमारे पड़ोसी देश किसी किस्म की नापाक हरकतें करते हैं, तो हम अपने विश्वस्त सहयोगी देशों को तत्काल अपनी बात समझा पाने के साथ जरूरत पड़ने पर उनसे मदद भी ले सकते हैं और संयुक्त सैन्य अभ्यास के कारण आपदा के समय पर हमारे बीच परस्पर सहयोग की भावना भी रहती है।
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- 1971 से लेकर अब तक जो सबसे बड़े अंतर को मैं देख पाता हूं, वह तकनीकी विकास का है। अपने पड़ोसी दुश्मन देशों के मुकाबले इस मामले में हम काफी आगे हैं। हमारे पास ऐसे शक्तिशाली सेटेलाइट हैं, जिससे सीमा पर निगहबानी में काफी सुविधा हुई है। इसके लिए हम इंडियन स्पेस रिसर्स ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) के शुक्रगुजार हैं। हम उन्हें अपनी जरूरतें बताते हैं और इसके अनुरूप वे हमें सुविधाएं उपलब्ध करा पाते हैं।
- कभी लग सकता है कि हमारे दुश्मन देशों के पास शक्तिशाली मिसाइलें हैं। अलबत्ता हमारे पास भी उनके मुकाबले में हथियार हैं लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि नई तकनीक के साथ हमें पता चल जाता है कि हमारे ऊपर कब और कैसे हमला हो सकता है तो उससे निपटने के लिए हमारे पास नई तकनीक वाली प्रतिरक्षा प्रणाली तत्काल जवाब देने को मौजूद रहती है। हम दुश्मन की बैलेस्टिक मिसाइलों का लक्ष्य से पूर्व ही भेदन कर पाने में सक्षम हैं। तकनीक के मामले में हम उनसे दो कदम आगे हैं।
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- निस्संदेह के चीन के साथ हमें नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वह अपनी विस्तारवादी नीति के तहत अन्य देशों के साथ संबंध बनाता है। विशेषतौर पर वह किसी देश को दीर्घकालीन ऋण देता है या फिर आधारभूत सुविधाओं के विकास के नाम पर उस देश में घुसता है और ऋण देता है। फिर, उस देश के पास ऋण चुकाने के लिए धन नहीं होता तो उससे विकास किया हुआ इलाका खरीद लेता है। इसी वजह से क्षेत्र में हमें तनाव की स्थिति देखने को मिलती है। लेकिन, भारतीय फौज चाक-चौबंद है और किसी भी परिस्थिति से निपटने को तैयार है।