जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि प्रदेशवासियों की बजरी की जरूरतों को पूरा करने के लिए लाई गई मैन्यूफैक्चर्ड सेंड (एम-सेंड) पॉलिसी-2020 गेमचेंजर साबित होगी। इस बहुप्रतीक्षित नीति के कारण प्रदेश में एम-सेंड के उपयोग तथा इसके उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और नदियों से निकलने वाली बजरी पर हमारी निर्भरता में कमी आएगी। साथ ही प्रदेश के माइनिंग क्षेत्रों में खानों से निकलने वाले वेस्ट की समस्या का भी समाधान होगा। बड़ी संख्या में एम-सेंड इकाइयां लगने से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
गहलोत सोमवार को मुख्यमंत्री निवास पर एम-सेंड नीति-2020 के लोकार्पण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। गहलोत ने कहा कि पर्यावरण संबंधी प्रक्रिया व न्यायिक आदेशों के बाद प्रदेश में निर्माण कार्यों की आवश्यकता के अनुरूप बजरी की उपलब्धता नहीं हो पा रही है। ऐसे में वर्ष 2019-20 के बजट में हमने बजरी के दीर्घकालीन विकल्प के रूप में एम-सेंड नीति लाने का वादा किया था। हम प्रदेश की जनता को इस नीति के जरिए एम-सेंड के रूप में प्राकृतिक बजरी का उचित विकल्प उपलब्ध कराने जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने खान विभाग के अधिकारियों से कहा कि वे इस नीति के माध्यम से दी जा रही रियायतों तथा प्रावधानों का उद्यमियों में व्यापक प्रचार-प्रसार करें ताकि प्रदेश में अधिक से अधिक निवेशक एम-सेंड निर्माण की इकाइयां लगाने के लिए आगे आएं और पर्यावरण सुरक्षा के साथ दीर्घकालिक विकल्प के रूप में बजरी की समस्या का समाधान हो सके।
खान एवं गोपालन मंत्री प्रमोद जैन भाया ने कहा कि नीति में एम-सेंड इकाइयों को उद्योग का दर्जा दिया गया है। इस नीति में देश के अन्य राज्यों की एम-सेंड नीति का अध्ययन कर प्रदेश की जरूरतों के अनुरूप आवश्यक प्रावधान किए गए हैं। भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप इसमें संशोधन भी किए जा सकेंगे। प्रदेश में विभिन्न निर्माण कार्यों में करीब 70 मिलियन टन बजरी की मांग है। वर्तमान परिस्थितियों में बजरी की समस्या को दूर करने के लिए यह नीति उपयोगी साबित होगी।