भारत की एक समय प्रमुख निजी एयरलाइन, जेट एयरवेज, के भविष्य पर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिससे कंपनी के पुनः संचालन की संभावनाएं समाप्त हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जेट एयरवेज के परिसमापन (लिक्विडेशन) का आदेश जारी किया, जिसका अर्थ है कि अब इसकी संपत्तियों की बिक्री कर कर्जदाताओं का भुगतान किया जाएगा।
मामला क्या था?
जेट एयरवेज को फिर से चालू करने के लिए जालान कालरॉक कंसोर्टियम (JKC) ने एक समाधान योजना प्रस्तुत की थी, जिसे पहले नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने मंजूरी दी थी। हालांकि, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) सहित अन्य कर्जदाताओं ने इस योजना पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें समाधान योजना की व्यावहारिकता पर सवाल उठाए गए। सुप्रीम कोर्ट ने NCLAT के फैसले को खारिज कर कंपनी को लिक्विडेशन की प्रक्रिया में भेजने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि NCLAT ने योजना की समीक्षा में कानूनी सिद्धांतों का पालन नहीं किया और पाया कि योजना का कार्यान्वयन असफल रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि समाधान योजना के तहत कंसोर्टियम ने शर्तों को पूरा नहीं किया, इसलिए कंपनी का लिक्विडेशन जरूरी हो गया है। इस फैसले के बाद कंपनी के पास अपना संचालन पुनः शुरू करने की कोई संभावना नहीं बची, और बैंकों तथा अन्य कर्जदाताओं का भुगतान संपत्ति की बिक्री से किया जाएगा।
जेट एयरवेज का सफर और संकट
जेट एयरवेज की स्थापना नरेश गोयल ने की थी, और यह कई वर्षों तक भारत में एक प्रमुख एयरलाइन के रूप में काम करती रही। बड़े विमानों पर निर्भरता, लीज की बढ़ती किश्तों का भुगतान न कर पाने, और वित्तीय संकटों ने कंपनी के संचालन को गंभीर रूप से प्रभावित किया। 2019 में कंपनी की वित्तीय स्थिति इतनी बिगड़ गई कि इसे अपना संचालन बंद करना पड़ा। नरेश गोयल पर मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे, और उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच का सामना करना पड़ा।
नतीजा
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जेट एयरवेज का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, और यह अब केवल भारतीय उड्डयन इतिहास का हिस्सा बनकर रह जाएगी। इसकी बची हुई संपत्तियों की नीलामी से बैंकों और अन्य लेनदारों का कर्ज चुकाया जाएगा, जिससे कर्जदाताओं को अपने देनदारियों की कुछ वसूली संभव हो सकेगी।