इसरो मिशन मून की सफलता के बाद आगामी शनिवार को ‘मिशन सूर्य’ लॉन्च करने जा रहा है। इस लॉन्चिंग के बाद वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि आदित्य एल-1 मिशन से अंतरिक्ष में मौसम की गतिशीलता, सूर्य के कोरोना के तापमान, सौर तूफान एवं उत्सर्जन एवं पराबैंगनी किरणों के धरती, खासकर ओजोन परत पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा सकेगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अब दूसरे मिशन की तैयारी में जुट गया है। 2 सितंबर दोपहर 11 बजकर 50 मिनट पर श्रीहरिकोटा से सौर मिशन आदित्य-एल1 को स्पेसपोर्ट से प्रक्षेपण किया जाएगा। अन्य देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां भी सूर्य का अध्ययन करने के लिए अपने मिशन लॉन्च करेगा।
पहली बार कब हुआ प्रयास
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने अगस्त 2018 में पार्कर सोलर प्रोब लॉन्च किया था। दिसंबर 2021 में पार्कर ने सूर्य के ऊपरी वायुमंडल से उड़ान भरी। उसने वहां कणों और चुंबकीय क्षेत्रों का नमूना लिया। नासा की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, यह पहली बार था कि किसी अंतरिक्ष यान ने सूर्य को छुआ।
नासा ने किया सोलर ऑर्बिटर लॉन्च
फरवरी 2020 में, नासा ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के साथ हाथ मिलाया और डेटा एकत्र करने के लिए सोलर ऑर्बिटर लॉन्च किया ताकि यह पता लगाया जा सके कि सूर्य ने पूरे सौर मंडल में लगातार बदलते अंतरिक्ष वातावरण को कैसे बनाया और नियंत्रित किया।
तीन एजेंसियों के अपने सौर मिशन
अगस्त, 1997 में नासा द्वारा अन्य सक्रिय सौर मिशन लॉन्च किए गए जिसमें एडवांस्ड कंपोजिशन एक्सप्लोरर मिशन भी शामिल हैं। अक्टूबर, 2006 में सौर स्थलीय संबंध वेधशाला, फरवरी, 2010 में सोलर डायनेमिक्स वेधशाला और इंटरफेस रीजन इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ जून, 2013 में लॉन्च किया गया। इसके अलावा, दिसंबर, 1995 में नासा, ईएसए (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ) और जेएएए (जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी) ने संयुक्त रूप से सोलर एंड हेलिओस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी लॉन्च किया।
जापान ने लाॅन्च किए नए मिशन
जापान की अंतरिक्ष एजेंसी जेएएए (जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी) ने 1981 में अपना पहला सौर अवलोकन उपग्रह, हिनोटोरी लॉन्च किया। आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इसका उद्देश्य हार्ड एक्स-रे का उपयोग करके सौर ज्वालाओं का अध्ययन करना था। एजेंसी के अन्य सौर खोजपूर्ण मिशन 1991 में लॉन्च किए गए, जिसमें योहकोह हैं। वर्ष 2006 में, हिनोड लॉन्च किया गया था, जो परिक्रमा करने वाली सौर वेधशाला योहकोह का उत्तराधिकारी था। जापान ने इसे अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर लॉन्च किया है। वेधशाला उपग्रह हिनोड का उद्देश्य पृथ्वी पर सूर्य के प्रभाव का अध्ययन करना है।
यूरोप भी नहीं रहा पीछे
अक्टूबर, 1990 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) ने सूर्य के ध्रुवों के ऊपर और नीचे अंतरिक्ष के पर्यावरण का अध्ययन करने के लिए यूलिसिस लॉन्च किया। नासा और जेएएक्सए के सहयोग से लॉन्च किए गए सौर मिशनों के अलावा, ईएसए ने अक्टूबर, 2001 में प्रोबा-2 लॉन्च किया। प्रोबा-2, प्रोबा श्रृंखला का दूसरा मिशन है, जो लगभग आठ वर्षों के सफल प्रोबा-1 अनुभव पर आधारित है, भले ही प्रोबा-1 एक सौर अन्वेषण मिशन नहीं था। प्रोबा-2 पर चार प्रयोग थे, उनमें से दो सौर अवलोकन प्रयोग थे। प्रोबा का मतलब ऑन-बोर्ड स्वायत्तता के लिए परियोजना है। ईएसए के आगामी सौर मिशनों में 2024 के लिए निर्धारित प्रोबा-3 और 2025 के लिए निर्धारित स्माइल शामिल हैं।
चीन की भी है सूरज पर नजर
एडवांस अंतरिक्ष-आधारित सौर वेधशाला (एएसओ-एस) को चीन ने 8 अक्टूबर, 2022 को राष्ट्रीय अंतरिक्ष विज्ञान केंद्र, चीनी विज्ञान अकादमी (सीएएस) द्वारा सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था।
इसरो ने सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत के पहले सौर मिशन ‘आदित्य-एल1’ का दो सितंबर को पूर्वाह्न 11 बजकर 50 मिनट पर श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से प्रक्षेपण किया जाएगा। आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को सौर कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परत) के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज बिंदु) पर सौर वायु के यथास्थान अवलोकन के लिए तैयार किया गया है। एल1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
क्या है आदित्य का लक्ष्य
आदित्य-एल1 मिशन का लक्ष्य एल1 के पास की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है। यह अंतरिक्ष यान सात पेलोड लेकर जाएगा, जो अलग-अलग वेव बैंड में फोटोस्फेयर (प्रकाशमंडल), क्रोमोस्फेयर (सूर्य की दिखाई देने वाली सतह से ठीक ऊपरी सतह) और सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) का अवलोकन करने में मदद करेंगे।