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जन्माष्टमी- ईश्वर में श्रद्धा एवं प्रेम का प्रतीक

हर वर्ष भाद्रपद माह शुरू होते ही सभी कृष्ण भक्त जन्माष्टमी के पर्व की तैयारी में बड़ी धूमधाम से लग जाते हैं । जन्माष्टमी के पर्व को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और गोकुल अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार करीब 5000 साल पहले भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में भगवान विष्णु के आठवें अवतार ने श्री कृष्ण के रूप में मथुरा में जन्म लिया था ।

 हर बार की तरह इस बार भी जन्माष्टमी दो दिन मनाई जा रही है। 11 और 12 अगस्त दोनों दिन जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है। लेकिन 12 अगस्त को जन्माष्टमी मानना श्रेष्ठ है। मथुरा और द्वारिका में 12 अगस्त को जन्मोत्सव मनाया जाएगा।

भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, लेकिन कई बार ऐसा संयोग बनता है कि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों एक ही दिन नहीं आते । इस बार भी वर्ष 2020 में नक्षत्र और तिथि एक साथ नहीं मिल रहे हैं। 11 अगस्त को सुबह 9:07 के बाद अष्टमी तिथि आरंभ हो रही है और 12 अगस्त को 11:17 तक रहेगी, वहीं रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 13 अगस्त को सुबह 3:27 से 5:22 तक होगा । ज्योतिष आचार्यों के अनुसार इस साल जन्माष्टमी के दिन कृतिका नक्षत्र रहेगा,चंद्रमा मेष राशि में और सूर्य कर्क राशि में रहेगा जिसके कारण वृद्धि योग भी रहेगा । 12 अगस्त को पूजा का शुभ समय रात 12:05 से लेकर रात 12:45 तक है पूजा की अवधि 42 मिनट तक रहेगी।

कृष्ण भक्त जन्माष्टमी के पर्व बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। भगवान श्री कृष्ण के मंदिरों को खूबसूरत तरीके से सुंदर सजाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन घर में झांकी सजाने से सुख समृद्धि आती है और भगवान श्रीकृष्ण का आर्शीवाद प्राप्त होता है। भक्त अपने घर व मंदिर सजाते हैं और पूजा करते हैं।लोग लड्डू गोपाल को नए वस्त्र पहनाकर उन्हें झूले पर बिठाकर झूला झूलाते हैं । भोग के रूप में पंचामृत, माखन मिश्री, धनिया पंजीरी, खीर, मखाना पाक बनाए जाने का विशेष महत्व है।लोग विभिन्न व्यंजन व मिष्ठान बनाकर छप्पन भोग भी लगाते हैं ।

जन्माष्टमी के व्रत व पूजा का बहुत बड़ा महत्व समझा जाता है। जन्माष्टमी के दिन व्रत रखकर रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में विधि पूर्वक पूजा करते हैं। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

मान्यता है कि इस दिन बालस्वरूप बालगोपाल की विधि पूर्वक पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।  पूजा करने के लिए एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और भगवान श्री कृष्ण के बालस्वरूप को पात्र में रखें और फिर लड्डू गोपाल को पंचामृत और गंगाजल से स्नान करवाएं और भगवान को नए वस्त्र पहनाएं। अब भगवान को रोली और अक्षत से तिलक करें। अब लड्डू गोपाल को उनकी प्रिय चीजों से भोग लगाएं। श्रीकृष्ण को तुलसी का पत्ता भी अर्पित करें। भोग के बाद श्रीकृष्ण को गंगाजल भी अर्पित करें। विधिवत पूजा करने के बाद कान्हा जी की आरती गाकर पूजा संपन्न करी जाती है।पूजा के बाद प्रसाद वितरित किया जाता है और व्रत खोला जाता है।

जहां घर के बड़े सदस्य व्रत व पूजा करके जन्माष्टमी मनाते हैं , वही घर के बच्चे इस त्यौहार का दही हांडी के कार्यक्रम के साथ बहुत आनंद उठाते हैं। वर्तमान परिस्थितियों के चलते इस वर्ष हम सबको घर पर रहकर ही जन्माष्टमी के पर्व का अपने परिवार के साथ आनंद लेना चाहिए ।

।। जय श्री कृष्णा ।।

लेखिका ज्योतिषी एवं प्रैक्टिसिंग रेकी हीलर हैं। अपॉइंटमेंट के लिए [email protected] में मेल करें।

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