जयपुर

कर संग्रहण निजी कंपनी को दिए जाने पर भड़की कर्मचारी यूनियन

नगर निगम प्रशासन को दी चेतावनी, अनुबंध निरस्त करो, नहीं तो होगा आंदोलन

जयपुर। नगरीय विकास कर और विज्ञापन शुल्क वसूली का कार्य निजी कंपनी को दिए जाने से नगर निगम कर्मचारी यूनियन नाराज हो गई है। यूनियन ने निगम प्रशासन को चेतावनी दी है कि प्रशासन निजी कंपनी के साथ किए अनुबंध को निरस्त करे, नहीं तो यूनियन को आंदोलन करने पर मजबूर होना पड़ेगा, जिसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।

निगम प्रशासन को सौंपे गए ज्ञापन में यूनियन इस अनुबंध में भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है और कह रही है कि अधिकारियों ने नियमों की अवहेलना करके यह अनुबंध किया है, जिससे निगम को भारी राजस्व हानि होगी।

अध्यक्ष कोमल यादव का कहना है कि स्पैरो सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड और जयपुर नगर निगम ग्रेटर व हेरिटेज में नगरीय विकास कर और विज्ञापन शुल्क की वसूली के लिए अनुबंध हुआ है, जो नियमों की अवहेलना कर किया गया है।

स्वायत्त शासन विभाग की ओर से पूर्व में जारी अधिसूचना के अनुसार नगरीय निकाय नगरीय विकास कर की वसूली अपने संसाधनों से कर सकेंगे। निकाय किसी एजेंसी को रिकार्ड संधारित करने, प्रमाणित दस्तावेज के आधार पर संशोधन करने, रिकार्ड कम्प्युटराइज्ड करने, मांग पत्र जारी करने, सर्वे करने एवं अन्य संबंधित कार्य नगरीय निकाय के अधीन रहते हुए किए जाने के लिए अधिकृत कर सकेंगी, लेकिन निगम अधिकारियों ने इस आदेश की गलत व्याख्या करते हुए निजी कंपनी को कर वसूलने के कार्यआदेश जारी कर दिए गए।

यूनियन का कहना है कि नगरीय निकायों में राजस्व वसूली के लिए राजस्व अधिकारियों, राजस्व निरीक्षकों, कर निर्धारकों, असिस्टेंट कर निर्धारक, सहायक राजस्व निरीक्षकों की पूरी फौज मुख्यालय और जोनों में तैनात है। इन अधिकारियों-कर्मचारियों का सालाना वेतन 2.70 करोड़ रुपए है। इस टीम ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में लगभग 81 करोड़ रुपए का राजस्व वसूल किया है। यदि राजस्व वसूली का कार्य निजी कंपनी को दे दिया जाएगा तो यह फौज क्या करेगी?

यूनियन के अनुसार निजी कंपनी को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 80 करोड़ रुपए की वसूली का लक्ष्य दिया गया है, जो निगम कर्मचारियों द्वारा वसूल किए गए राजस्व से कम है। यदि कंपनी राजस्व लक्ष्य को पूरा करती है तो उसे 10 फीसदी कमीशन दिया जाएगा अर्थात यह कि जो काम कर्मचारी 2.70 करोड़ में पूरा करेंगे, उसके एवज में कंपनी को 8 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। ऐसे में कंपनी को दिए गए अतिरिक्त 5.30 करोड़ रुपए राजस्व हानि कहलाएगी, जो अधिकारियों की नीयत पर शक खड़ा कर रही है।

महामंत्री प्रभात कुमार का कहना है कि कंपनी जितनी कर वसूली नहीं कर पाती है, उस कर को वसूलने की जिम्मेदारी राजस्व अधिकारियों पर रहेगी, जो कुर्की आदि कार्रवाईयों से वसूली जाती है। निगम के पास रेग्यूलर कर दाताओं की संख्या काफी कम है, ज्यादातर वसूली सख्त कार्रवाईयों के जरिए ही हो पाती है, लेकिन अनुबंध के अनुसार निगम के अधिकारी जो वसूली करेगे, उस राशि पर भी कंपनी को कमीशन दिया जाएगा, जो तर्कसंगत नहीं है। यह अनुबंध एक तरह से निगम पर दोहरी मार है।

यह अनुबंध भ्रष्टाचार बढ़ाने वाला भी साबित होगा, जो सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी नीति के खिलाफ है। इसलिए निगम प्रशासन को इस अनुबंध को तुरंत प्रभाव से निरस्त करना चाहिए। इसके बजाए निगम अपने राजस्व कर्मचारियों की सुविधाओं और उन्हें अधिक वसूली पर प्रोत्साहन राशि की योजना शुरू करे तो इससे भी बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।

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