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न गंदी गलियां साफ हो रही, न सरकारी खजाने को चपत रुक रही

गंदी गलियों के नाम पर पहले किया करोड़ों का खेल, अब फिर डोर-टू-डोर कंपनी पर मेहरबानी की तैयारी

धरम सैनी

जयपुर। राजधानी जयपुर को वर्ल्ड हैरिटेज सिटी का दर्जा मिल चुका है। दर्जा मिलने के बाद नया हैरिटेज नगर निगम बना दिया गया, लेकिन इस निगम को बने अभी ज्यादा दिन भी नहीं हुए थे कि अधिकारियों ने खेल करने शुरू कर दिए हैं। दशकों से परकोटे के निवासियों के लिए परेशानी की सबब बनी गंदी गलियों की सफाई के मामले में करोड़ों के खेल किए जा रहे हैं।

परकोटे की गंदी गली

करीब चार वर्षों से शहर में सफाई का जिम्मा डोर-टू-डोर कंपनी बीवीजी ने संभाल रखा है। कंपनी को सफाई के साथ परकोटे की गंदी गलियों को भी हमेशा साफ रखना था, लेकिन आज तक कंपनी ने कभी गंदी गलियों की सफाई नहीं की। कंपनी की अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ ऐसी कि आज तक काम नहीं करने के एवज में कंपनी के बिलों में कटौति नहीं हुई। जानकारों का कहना है कि अधिकारी कटौती नहीं करके कंपनी को हर वर्ष करोड़ों रुपयों का बेजा फायदा पहुंचा रहे हैं।

बैठक में फिर वही ढाक के तीन पात

इस वर्ष भी परकोटे के निवासियों ने मानसून पूर्व गंदी गलियों की सफाई की मांग निगम से करनी शुरू कर दी। इसपर चर्चा करने के लिए नगर निगम हैरिटेज के सीईओ लोकबंधु ने शुक्रवार को अधिकारियों और बीवीजी कंपनी की बैठक बुलाई, लेकिन इस बैठक में भी कोई ठोस हल नहीं खोजा जा सका। अधिकारियों की राय को दरकिनार कर उच्चाधिकारियों ने निर्देश दे दिए बताते हैं कि गंदी गलियों की सफाई का काम बीवीजी कंपनी ही करेगी।

अधिकारी चाहते थे कि जॉब बेसिस पर गंदी गलियों की सफाई का काम करा कर उसमें हुए खर्च की कटौती कंपनी के बिलों में से की जाए, कर्मचारियों की उपलब्धता नहीं होने के कारण कंपनी यह काम करने में सक्षम नहीं है। पूर्व के वर्षों में कभी कंपनी ने गंदी गलियों की सफाई का काम नहीं किया। ऐसे में कंपनी के भरोसे नहीं रहा जा सकता है। कोरोना संक्रमण की शुरूआत से लेकर अब तक परकोटा क्षेत्र हॉट स्पॉट बना हुआ है। ऐसे में यदि गंदी गलियों की सफाई नहीं होती है और अन्य कोई बीमारी पनपती है तो परकोटे की सघन आबादी में हालात बेकाबू हो जाएंगे।

कंपनी को पहुंचाया 40 करोड़ का फायदा

वर्ष 2018-19 में भी नगर निगम अपने कर्मचारियों से गंदी गलियों की सफाई करा चुका है। चुनावी मौसम होने के कारण सफाई का भारी दबाव था। ऐसे में निगम कर्मचारियों से सफाई कराकर उसकी कटौती कंपनी के बिलों से करना तय हुआ। निगम के करीब 350 कर्मचारियों ने तीन-चार महीनों तक गंदी गलियों की सफाई की, लेकिन आज तक उसकी कटौति कंपनी के बिलों में से नहीं की। एक निगम सफाईकर्मी का औसत वेतन करीब 12 हजार रुपए बैठता है। ऐसे में निगम ने गंदी गलियों की सफाई में करीब 39 करोड़ 37 लाख 50 हजार रुपए खर्च किया।

लोग रोते रहेंगे, कंपनी नहीं करेगी काम

निवर्तमान पार्षद अनिल शर्मा ने कहा कि लोग रोते रहेंगे और कंपनी काम नहीं करेगी। बीवीजी कंपनी अपनी किसी भी शर्त के अनुरूप कार्य नहीं कर पाई है। कंपनी का मुख्य काम डोर-टू-डोर करना था, उसमें वह पूरी तरह से फेल रही है। कंपनी के पास रुटीन सफाई के लिए कर्मचारी और संसाधन उपलब्ध नहीं है तो वह गंदी गलियों की सफाई कैसे करेगी। पूर्व में जनता व क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की मांग आने पर निगम ने अपने स्तर पर सफाई कराई थी। इसका करोड़ों रुपयों का खर्च कंपनी के बिलों में से काटा जाना चाहिए था, लेकिन अधिकारियों ने कंपनी के बिल से इसकी कटौती नहीं की।

बैठक करने की जरूरत ही नहीं

परकोटे के निवर्तमान पार्षद विकास कोठारी का कहना है कि एक तरफ तो यह क्षेत्र कोरोना महामारी से जूझ रहा है, दूसरी ओर गंदगी भी बड़ी परेशानी है। यदि सफाई नहीं हुई तो अन्य महामारियां भी यहां फैल कर बड़ी तबाही मचा सकती है, क्योंकि यह घनी आबादी क्षेत्र है। गंदी गलियों की सफाई के लिए बैठकें करने और प्लान बनाने की जरूरत ही नहीं है। यह काम बीवीजी कंपनी को करना है। कंपनी यह काम नहीं कर रही तो अधिकारी सख्त कार्रवाई करें। इस स्थिति में अधिकारियों की कार्यशैली पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है।

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