जयपुर

एक शहर, दो फॉरेस्ट, एक में प्रवेश शुल्क, दूसरे में निर्बाध आवाजाही

आखिर किस के दबाव मे वन विभाग नहीं लगा पा रहा नाहरगढ़ में चेकपोस्ट


जयपुर। एक शहर में दो फॉरेस्ट हों, इनमें से एक सेंचुरी हो और दूसरा साधारण फॉरेस्ट। यहां साधारण फॉरेस्ट में जाने के लिए तो लोगों से प्रवेश शुल्क वसूला जाए, लेकिन सेंचुरी में लोगों की दिन-रात निर्बाध आवाजाही हो, क्या ऐसा हो सकता है?

हां यह कारनामा राजधानी जयपुर में चल रहा है, जहां वन विभाग झालाना वन क्षेत्र में जाने पर लोगों से प्रवेश शुल्क की वसूली कर रहा है, वहीं दूसरी ओर नाहरगढ़ सेंचुरी है, जहां दिन-रात लोगों की आवाजाही बनी रहती है। गैर वानिकी गतिविधियां और वाणिज्यिक गतिविधियां हो रही है, इसके बावजूद वन अधिकारी मौन साधे बैठे हैं।

वन विभाग के सूत्रों के अनुसार वर्ष 2012-13 विभाग के पास दो प्रस्ताव आए थे। इन प्रस्तावों के तहत नाहरगढ सेंचुरी और झालाना फॉरेस्ट में चेकपोस्ट लगाकर जंगल में घूमने आने वालों से प्रवेश शुल्क वसूली का तय किया गया था। इसके तहत झालाना में तो चेकपोस्ट लगाकर प्रवेश शुल्क की वसूली शुरू कर दी गई, लेकिन नाहरगढ़ सेंचुरी में आज तक न तो चेकपोस्ट लग पाया और न ही प्रवेश शुल्क की वसूली शुरू हो पाई है।

अब वन विभाग को ही यह बताना होगा कि क्या उनके लिए सेंचुरी ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है? आखिर किस के दबाव में आज तक वन विभाग नाहरगढ़ जाने वाले रास्ते पर चेकपोस्ट नहीं लगा पाया? क्या कारण है कि वन विभाग अभी तक नाहरगढ़ के लिए वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति का गठन नहीं कर पाया? साफ हो रहा है कि वन विभाग के अधिकारी पुरातत्व और पर्यटन विभाग के भारी दबाव में हैं और दबाव के चलते वन्य जीवों और वनों को होते नुकसान को देख रहे है।

प्रतिवर्ष करोड़ों का नुकसान
जानकारी के अनुसार वन विभाग की ओर से झालाना में भारतीय नागरिकों से 50 रुपए और विदेशी नागरिकों के लिए 300 रुपए तय कर रखी है। पुरातत्व अधिकारियों के अनुसार अक्टूबर से मार्च के पर्यटन सीजन के दौरान प्रतिदिन 6 से 7 हजार देशी-विदेशी पर्यटक नाहरगढ़ पहुंचते हैं। नाहरगढ़ में पर्यटकों का सालाना औसत 2 हजार पर्यटक प्रतिदिन का है। देशी-विदेशी पर्यटकों के बीच अमूमन 60-40 का रेश्यो माना जाता है।

ऐसे में गत वित्तीय वर्ष को ही लें तो ज्ञात होता है कि नाहरगढ़ में पूरे साल में 4 लाख 32 हजार देशी पर्यटक आए। पचास रुपए के हिसाब से इनकी प्रवेश राशि 2 करोड़ 16 लाख रुपए सालाना बनती है। वहीं वर्षभर में 2 लाख 88 हजार विदेशी पर्यटक नाहरगढ़ पहुंचे और 300 रुपए के हिसाब से उनका प्रवेश शुल्क 8 करोड़ 64 लाख रुपए बनता है। पर्यटकों के वाहनों का शुल्क अलग है। वहीं रात के समय यहां चल रहे बार में पहुंचने वालों का शुल्क भी अलग है। ऐसे में वन विभाग को सालाना करीब 11 करोड़ रुपए के राजस्व से हाथ धोना पड़ रहा है।

जवाब देने से बच रहे अधिकारी
नाहरगढ़ जाने के रास्ते पर चेकपोस्ट लगाने और पर्यटकों से अभ्यारण्य में प्रवेश के शुल्क की वसूली के बाबत जब हमने वन विभाग के अधिकारियों से जानकारी चाही तो वह जवाब देने से बचते रहे। विभाग के उच्चाधिकारी क्षेत्रीय वन अधिकारी से बात करने के लिए कह रहे हैं, लेकिन क्षेत्रीय वन अधिकारी तो फोन उठाने से भी बचने लगे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर कब नाहरगढ़ के रास्ते पर चेकपोस्ट लगेगा?

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