जयपुर

पूरे देश में ऑक्सीजन (oxygen) के लिए हाहाकार, जयपुर में सरकार और रसूखदार कर रहे ऑक्सीजन सिलेंडर बर्बाद : पृथ्वी दिवस पर विशेष

धरम सैनी

पूरे देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बाद ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा हुआ है। अस्पतालों के पास ऑक्सीजन का स्टॉक खत्म हो चुका है। सिलेंडरों की कालाबाजारी की खबरें आ रही है। पृथ्वी दिवस पर जीवन के लिए जरूरी ऑक्सीजन की यह मारामारी शर्मसार करने वाली है, लेकिन जिम्मेदारों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसा ही कुछ जयपुर में हो रहा है, जहां शहर के ऑक्सीजन सिलेंडर को बर्बाद किया जा रहा है और इसमें सरकार व रसूखदार शामिल हैं।

हम बात कर रहे हैं जयपुर के ऑक्सीजन सिलेंडर नाहरगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य और झालाणा वन क्षेत्र की, जिसे लगातार बर्बाद किया जा रहा है। वर्तमान में सरकार की ओर से पर्यटन विकास के नाम पर नाहरगढ़ अभ्यारण्य में वाणिज्यिक गतिविधियां बढ़ाई जा रही है। ऐसा ही चलता रहा तो दो-तीन दशकों में यह अभ्यारण्य पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा। मानवीय आमद-रफ्त लगातार बढ़ने से यहां के जानवर पलायन करने को मजबूर होंगे और आबादी वाले क्षेत्रों में जाकर मौत का शिकार होगे।

नाहरगढ़ अभ्यारण्य की बर्बादी की कहानी देश की राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास के राज्यों से जुड़ी है। करीब डेढ़ दशक से दिल्ली और उसके आस-पास के राज्य हरियाणा, पंजाब और पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रदूषण की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। दिल्ली की हवा में तो वर्षभर प्रदूषण का जहर घुला रहता है। सर्दियों में प्रदूषण की मात्रा बेहद खतरनाक स्तर तक बढ़ जाती है, क्योंकि पराली जलाने से प्रदूषण तेजी से बढ़ जाती है। ऐसे में दिल्ली और पास के राज्यों से लोग पिछले एक दशक से अपने फेंफड़ों में ऑक्सीजन भरने के लिए जयपुर आने लगे।

नाहरगढ़ फोर्ट के बाहर पार्किंग निर्माण के लिए पुरातत्व विभाग द्वारा 5 बीघा में पेड़ों को काट दिया गया

इन राज्यों से आने वाले पर्यटक चार से पांच दिन तक जयपुर में रहते हैं और उनका अधिकांश समय आमेर, नाहरगढ़ फोर्ट और झालाणा लेपर्ड सफारी में ही गुजरता है। जयपुर के अलावा इन पर्यटकों के पसंदीदा डेस्टिनेशन अलवर का सरिस्का अभ्यारण्य, सवाई माधोपुर का रणथंभौर अभ्यारण्य और कोटा, उदयपुर व माउंट आबू के वन क्षेत्र रहते हैं। इन पर्यटकों के एक दशक के मूवमेंट से पता चल जाता है कि वन क्षेत्रों का कितना महत्व है।

नाहरगढ़ में एक दशक से पर्यटकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होने लगी तो जनप्रतिनिधियों, ब्यूरोक्रेट्स की नजर नाहरगढ़ पर जम गई और कमाई के साधन खोजने शुरू कर दिए। पर्यटन विकास के नाम पर वन एवं वन्यजीव अधिनियमों की धज्जियां उड़ने लगी और वाणिज्यिक गतिविधियां बढ़ाई जाने लगी। कई बीघा जंगल को काट दिया गया। अभ्यारण्य की बाहरी सीमा में बस्तियां बसा दी गई, लाइट और पानी के कनेक्शन दे दिए गए। रसूखदारों ने जंगल काट कर अपने फार्म हाउस खड़े कर दिए। यह अतिक्रमण लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जो जयपुर को ऑक्सीजन देने वाले इस जंगल की सेहत के लिए नुकसानदेह है।

नाहरगढ़ और झालाणा की पहाड़ियों के कारण अभी तक जयपुर का पर्यावरण बचा हुआ है और यहां की हवा में उतना जहर नहीं है, जितना दिल्ली में। शहर में यही दो ऐसे क्षेत्र हैं, जहां हरियाली दिखाई देती है, वरना पूरे शहर से हरियाली और बड़े पेड़ लगातार समाप्त होते जा रहे हैं और उनकी जगह कंक्रीट का जंगल खड़ा हो गया। हरियाली के नाम पर बड़े पेड़ लगाने के बजाए जिम्मेदार विभागों का सिर्फ कमीशन के चक्कर में सजावटी पौधे लगाने पर जोर है। ऐसे मे इन जंगलों को बचाए रखा जाना बेहद जरूरी है।

ऑक्सीजन की कमी से अस्पतालों में तड़पते मरीजों को देखकर जयपुर के ऑक्सीजन सिलेंडरों को बचाने के जनता को आगे आना होगा और सरकार पर दबाव डालना होगा कि वह वन क्षेत्रों में वाणिज्यिक गतिविधियां रोके। वन क्षेत्रों को अतिक्रमण मुक्त कर बढ़ोतरी के लिए काम करे। वनों की बर्बादी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

जयपुर को सिर्फ पर्यटन की दरकार नहीं है, पर्यटन के साथ पर्यावरण भी जरूरी है। पर्यटन विकास के नाम पर पर्यावरण को खराब नहीं किया जा सकता है। यदि जयपुर के वनों को बर्बाद किया जाता है तो यहां की हालत दिल्ली से भी बदतर हो जाएगी, क्योंकि यही जंगल शहर के भूमिगत जल भंडारों के लिए भी जरूरी है। जंगल खत्म होगा तो शहर का भूमिगत जल भंडार भी खत्म हो जाएगा।

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