जयपुर

राजस्थान का देवस्थान विभाग 4 लाख वर्ष पूर्व ही लाएगा ‘महाप्रलय’

विश्व के एकमात्र कल्कि मंदिर को देवस्थान विभाग ने किया अपवित्र, मंदिर के गर्भगृह के नीचे बनाए टॉयलेट, परिक्रमा मार्ग को रोका

धरम सैनी

जयपुर। कलियुग का आरंभ महाभारत की लड़ाई के बाद हो गया था। अभी कलियुग का प्रथम चरण ही चल रहा है और इसके अंत होने में चार लाख वर्ष से अधिक का समय शेष है लेकिन लगता है कि देवस्थान विभाग चाल लाख वर्ष पूर्व ही ‘महाप्रलय’ ले आएगा क्योंकि विभाग ने जयपुर में स्थापित विश्व के एकमात्र कल्कि भगवान के मंदिर में परिक्रमा मार्ग रोककर गर्भगृह और शयन कक्ष के बीच में टॉयलेट बनावा रखे हैं।

यह टॉयलेट करीब डेढ़ दशकों से यहां बने हैं। इस दौरान मंदिर में कई बार पुजारी बदले, शहर के लोगों ने अनगिनत बार मंदिर में दर्शन किए, लाखों पर्यटकों ने इस मंदिर को देखा लेकिन यह धर्म विरुद्ध कार्य किसी की भी नजर में नहीं आया। हैरानी की बात यह है कि मंदिर के बगल में ही देवस्थान विभाग का उपायुक्त कार्यालय बना हुआ है, इसके बावजूद इस गलती पर विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की भी नजर नहीं पड़ी।

कल्कि मंदिर में इन दिनों स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की ओर से संरक्षण व जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। इस काम का जायजा लेने के दौरान क्लीयर न्यूज ने विभाग की इस गलती को पकड़ा। धार्मिक आस्था से खिलवाड़ के इस मामले में जब जयपुर के प्रमुख संत-महंतों से चर्चा की गई तो वह भड़क गए और उन्होंने देवस्थान विभाग के अधिकारियों को भला-बुरा कहा और चेतावनी दी कि विभाग जल्द से जल्द इस गलती को सुधारे। नहीं तो शहर के धर्माचार्य, विद्वान और ज्योतिषी विभाग सरकार से सीधे बात करेंगे।

मंदिर के मुख्य शिखर के नीचे परिक्रमा मार्ग को रोक कर बनाए गए टॉयलेट

विद्वानों ने यह कहा


बंशीधर पंचांग के पंडित दामोदर शर्मा ने कहा कि मंदिर की परिक्रमा मार्ग को रोककर गर्भगृह से सटाकर शौचालय निर्माण बिलकुल गलत है, इससे मंदिर अपवित्र हो गया है। देवस्थान विभाग मंदिर में बने टॉयलेट हटाए। राधा दामोदर मंदिर के महंत मलय गोस्वामी ने कहा कि छोटी काशी में इस तरह की घटना अविश्वसनीय है। यह तो विभाग की अराजकता है। विभाग ने मंदिर जैसी अतिपवित्र जगह को अपवित्र करने का काम किया है। मंदिर के पुराने स्वरूप को बरकरार किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि परिक्रमा मार्ग को मुक्त किया जाना चाहिए और मंदिर का शुद्धिकरण होना चाहिए। शहर के प्राचीन प्राचीन मंदिर देवस्थान विभाग की बपौती नहीं है, जनता को इन मंदिरों के प्राचीन वैभव को बरकरार करने के लिए आवाज उठानी चाहिए। गलता पीठाधीश्वर महंत अवधेशाचार्य ने कहा कि विभाग के अधिकारियों को मौका मुआयना करना चाहिए और उचित निर्णय लेते हुए इस गलत निर्माण को तुरंत हटा देना चाहिए

मंदिर में बना भयानक योग


वास्तुशास्त्री एसके मेहता ने कहा कि भारतीय परंपराओं में धर को मंदिर माना जाता है और इसी लिए प्राचीन समय में घरों में शौचालय नहीं बनाए जाते थे, लेकिन यहां तो मंदिर में शौचालय बना दिया गया, जिसनसे मंदिर में चाण्डाल योग बन गया है। वास्तु में शौचालय का संबंध राहु से बताया गया है और मंदिर का संबंध गुरु से होता है। मंदिर में शौचालय बनने से राहु और गुरु का संबंध होकर चाण्डाल योग बना है। इस योग से मंदिर में पवित्रता के स्थान पर नेगेटिव एनर्जी की बढ़ोतरी हो गई है। ऐसे में न तो यहां की गई पूजा का फल मिलेगा और न ही पूजा देवताओं को प्राप्त होगी। पूजन करने वालों की मानसिकता खराब हो जाएगी।

मंदिर में परिक्रमा मार्ग को रोका गया है, लेकिन हिंदू धर्म में देव विग्रहों के दर्शन-पूजन के बाद परिक्रमा का विधान है। मंदिरों के परिक्रमा करने से सकारात्मक ऊर्जा साधक के शरीर में प्रवेश करती है। यह ऊर्जा हम घर में लेकर जाते हैं तो घर से भी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है और घरों में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है, जिससे घरों में सुख-शांति आती है। महंत मलय गोस्वामी का कहना है कि शिव, गणेश और देवी मंदिरों में तुलसी का निषेध होता है, ऐसे में इन मंदिरों को छोड़कर अन्य सभी मंदिरों में परिक्रमा का विधान होता है।

गलती हुई है तो उसे सुधारेंगे


इस मामले में देवस्थान विभाग के उपायुक्त प्रथम, आकाश रंजन ने कहा कि यह टॉयलेट काफी पुराने बने हुए हैं। पूर्व में जो गलती हुई है, उस अब उसे सुधारा जाएगा। मंदिर में स्मार्ट सिटी की ओर से संरक्षण कार्य चल रहा है, यहां काम करा रहे इंजीनियरों से वार्ता करके टॉयलेट हटाने और परिक्रमा मार्ग खुलवाने का कार्य भी करा दिया जाएगा।

कौन हैं भगवान कल्कि


धर्माचार्यों के अनुसार भगवान विष्णु के 12वें अवतार का नाम कल्कि है। इनका अवतरण कलियुग के अंत में होगा और कल्कि भगवान अवतरित होकर पूरे विश्व में प्रलय लाएंगे और उस प्रलय के बाद फिर से प्रथ्वी पर नवजीवन शुरू होगा। कल्कि भगवान का वाहन अश्व होगा इसीलिए कल्कि मंदिर में भी अश्व की प्रतिमा लगी है। अश्व के बारे में मान्यता है कि इसके खुर में एक गड्ढा बना है, जो धीरे-धीरे भर रहा है, जिस दिन यह गड्ढा भर जाएगा, उस दिन कलियुग का अंत होगा और मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा कल्कि अवतार के रूप में आ जाएगी और पापों से परिपूर्ण विश्व का अंत करेगी।

कल्कि मंदिर का इतिहास


इस मंदिर का निर्माण जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने 1739 में किले की बुर्जनुमा आकार में दक्षिणायन शिखर शैली में कराया था और यह विश्व का एकमात्र प्राचीन कल्कि मंदिर है। जयसिंह ने पुराणों के आधार पर कल्कि देवता की कल्पना की थी और उसी के अनुरूप मंदिर और विग्रह का निर्माण कराया। यह मंदिर जयपुर के सिटी पैलेस की सीध में बना हुआ है। कहा जाता है कि जयसिंह अपने महल से सुबह सबसे पहले गढ़ गणेश, गोविंद देवजी और कल्कि भगवान के दर्शन प्रतिदिन किया करते थे। मंदिर से कल्कि भगवान की शोभायात्रा भी निकाली जाती थी और मंदिर के बेसमेंट में आज भी शोभायात्रा का प्राचीन रथ रख हुआ है। कहा जाता है कि टीले पर बने मंदिर के शिखर पर लगे पीतल के कलश पर स्थापित मूर्ति संसार की सभी गतिविधियों पर नजर रखती है।

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