जयपुर

सरकार कोरोना से लड़ने में उलझी, पायलट गुट के विधायक हेमाराम चौधरी( Hemaram choudhary) ने दिया इस्तीफा, कांग्रेस में चर्चा जी-23 (G-23) ने की गांधी परिवार के सिपहसालार अशोक गहलोत को अस्थिर करने की कोशिश

एक तरफ राजस्थान सरकार कोरोना की दूसरी लहर से दो-दो हाथ करने में लगी थी, उसी दौरान गुढ़ामलानी से सबसे वरिष्ठ विधायकों में से एक हेमाराम (Hemaram Choudhary) चौधरी ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा भेजा है। विधानसभा की ओर से वक्तव्य जारी कर बता दिया गया है कि हेमाराम चौधरी का इस्तीफा ई-मेल के जरिए प्राप्त हुआ है, जिसपर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

हालांकि अभी तक हेमाराम चौधरी या उनके करीबियों की ओर से यह नहीं बताया गया है कि उन्होंने किस कारण से इस्तीफा दिया है, लेकिन गहलोत गुट में चर्चा है कि इस इस्तीफे के जरिए प्रदेश की राजनीति में भूचाल लाने की कोशिश की गई है, जो सफल नहीं हो पाएगी। जिस समय सरकार की पहली प्राथमिकता कोरोना की दूसरी लहर से प्रदेश की जनता को बचाना है, उस समय सरकार को फिर से अस्थिर करने और दबाव बनाने के लिए यह कार्रवाई की गई है। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष गहलोत सरकार के सामने आए सियासी संकट के समय हेमाराम चौधरी सचिन पायलट गुट के साथ रहे थे।

कांग्रेस में कयास लगाए जा रहे हैं कि इस इस्तीफे के तार दिल्ली में जी-23 से जुड़े हो सकते हैं। कारण यह कि हाल ही में कांग्रेस के चुनावों को लेकर दिल्ली में सोनिया गांधी के नेतृत्व में बैठक हुई थी, लेकिन कोरोना के चलते चुनावों को टाल दिया गया। इसी बैठक में कोरोना संक्रमण पर कांग्रेस की ओर से एक कोर कमेटी का निर्माण किया गया और गुलाम नबी आजाद को इस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया।

सूत्रों के अनुसार इसके बाद से ही कांग्रेस में चर्चा है कि गुलाम नबी और कांग्रेस के बीच सहमति बन गई है और नबी को राज्यसभा सदस्य बनाया जा सकता है। हाल ही में महाराष्ट्र में एक सांसद की मृत्यु के बाद कांग्रेस के पास सीट खाली भी है। इस घटनाक्रम के बाद से ही जी-23 में हडकंप मच गया और गांधी परिवार के प्रमुख सिपहसालार अशोक गहलोत को परेशान करने के लिए यह इस्तीफे का खेल खिलवाया गया है। नबी प्रकरण से नाराज जी-23 ने गहलोत पर अटैक करके गांधी परिवार को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की है।

जी-23 से नबी के निकल जाने के बाद गुट में शामिल नेताओं को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी। उसी का परिणाम है कि सोची समझी रणनीति के तहत चौधरी का इस्तीफा दिलाया गया है, क्योंकि चौधरी काफी बुजुर्ग हैं और हो सकता है कि वह आगे चुनाव भी नहीं लड़ें।

गहलोत गुट के लोगों का कहना है कि इस इस्तीफे से प्रदेश सरकार पर कोई असर नहीं आएगा। सरकार के खिलाफ बगावत करने वालों को कांग्रेस में पहले ही महत्व नहीं दिया जा रहा है। प्रदेश में कांग्रेस की पिछली सरकार के दौरान भी चुनावों से ऐन पहले हेमाराम चौधरी ने मंत्रीपद से इस्तीफा दिया था। सूत्र बता रहे हैं कि उस समय भी चौधरी ने फिर कभी चुनाव नहीं लड़ने की बात कही थी, लेकिन इस बार वह फिर टिकट लेकर चुनाव जीतकर आ गए। ऐसे में उनके इस्तीफे को कांग्रेस में कोई खास तवज्जो नहीं दी जा रही है।

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