सितंबर का महीना आते ही भारत और दुनिया भर में हिंदू परिवार श्राद्ध या पितृ पक्ष की वार्षिक अनुष्ठान अवधि के लिए तैयारियां शुरू कर देते हैं, जो कि अपने पूर्वजों को सम्मानित करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए समर्पित होता है। श्राद्ध 15 दिनों की वह अवधि है, जिसमें लोग अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह अवधि आमतौर पर भाद्रपद के चंद्र महीने में आती है, जो पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस्या तक चलती है।
पितृ पक्ष का हिंदू संस्कृति में अत्यधिक महत्व है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस अवधि के दौरान पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी लोक पर आती हैं और अपने वंशजों से अर्पित किए गए प्रसाद को स्वीकार करती हैं। श्राद्ध का अनुष्ठान करने से पूर्वजों की आत्मा की शांति सुनिश्चित होती है और परिवार में समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य और शांति बनी रहती है। श्राद्ध के अनुष्ठानों में तर्पण, पिंड दान, ब्राह्मणों को भोजन कराना और व्रत रखना शामिल होता है।
2024 में श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां
वर्ष 2024 में श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेंगें। आदरणीय अखिलेश गुरुजी, मथुरा के अनुसार श्राद्ध पक्ष तिथियां और दिनांक इस प्रकार हैं।
महालय अमावस्या पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है, जिसमें यह विश्वास किया जाता है कि इस दिन पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी लोक से विदा होकर पुनः परलोक लौट जाती हैं। इस अवधि के दौरान श्राद्ध का अनुष्ठान करने से परिवार में समृद्धि और सुख-शांति बनी रहती है।
पितृपक्ष में क्या किया जाता है?
श्राद्ध: श्राद्ध करना पितृपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण कर्म है। श्राद्ध में पितरों के नाम पर भोजन बनाकर ब्राह्मणों को दान किया जाता है।
पिंडदान: पिंडदान में चावल के पिंड (लड्डू) बनाकर पितरों को अर्पित किया जाता है।
तर्पण: तर्पण में जल से पितरों का तर्पण किया जाता है।
दान: पितृपक्ष में दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
शास्त्रों का पाठ: पितृपक्ष में शास्त्रों का पाठ करने से पितरों को शांति मिलती है।
पितृपक्ष में क्या नहीं करना चाहिए?
मांसाहार: पितृपक्ष में मांसाहार से बचना चाहिए।
नशाखोरी: पितृपक्ष में शराब और अन्य नशे का सेवन नहीं करना चाहिए।
झगड़ा: पितृपक्ष में किसी से झगड़ा नहीं करना चाहिए।
अशुद्ध कार्य: पितृपक्ष में अशुद्ध कार्य नहीं करने चाहिए।