जयपुरराजनीति

सुप्रीम कोर्ट के दर पर राजस्थान का सियासी संग्राम

स्पीकर सीपी जोशी ने दायर की एसएलपी

जयपुर। राजस्थान में चल रहा सियासी संग्राम अब सीमाएं लांघ कर सुप्रीम कोर्ट के दर पर पहुंच चुका है। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी का कहना है कि विधायकों को नोटिस देने या अयोग्य घोषित करने का अधिकार स्पीकर का होता है। जब तक मैं कोई निर्णय नहीं ले लेता, अदालत इस मामले में दखल नहीं दे सकती है।

अभी तक मैंने सिर्फ नोटिस दिया है, फैसला नहीं लिया। इसीलिए हाईकोर्ट द्वारा इस मामले में दखल को लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की है। वकील सुनील फर्नाडिज ने जोशी की एसएलपी दायर की है। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला उठने पर स्पीकर की ओर से कपिल सिब्बल ने अपील की है कि आज ही इस मामले की सुनवाई की जाए। हालांकि चीफ जस्टिस ने तुरंत सुनवाई से इन्कार कर दिया।

जोशी का तर्क है कि बतौर स्पीकर उनके अधिकार संविधान प्रदत्त हैं। उसी के तहत उन्होंने विधायकों को नोटिस जारी किए, लेकिन हाईकोर्ट ने इस संबंध में लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय नहीं लेने के लिए निर्देशित किया है।

जोशी ने पत्रकारों से वार्ता में कहा कि किसी विधायक को अयोग्य घोषित करने का अधिकार स्पीकर का है। जब तक उसमें कोई निर्णय नहीं हो जाए, कोई उसमें दखल नहीं दे सकता है। हम संसदीय लोकतंत्र की पालना कर रहे हैं। अगर हम कोई फैसला करते हैं, तो कार्ट रिव्यू कर सकता है। विधानसभा अध्यक्ष के काम में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

यह मामला अति आवश्यक प्रकृति का है। इस पूरे घटनाक्रम और हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश से मेरा संवैधानिक अधिकार कम हुआ है, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत है। ऐसी स्थिति में उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी पर तत्काल सुनवाई की जाएगी।

जोशी ने कहा कि दलबदल कानून पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 1992 में ही तय कर दिया था कि जब तक स्पीकर कोई फैसला नहीं ले, कोर्ट कोई डायरेक्शन नहीं देगा। मेरे समक्ष मुख्य सचेतक ने 19 विधायकों की अयोग्यता याचिका लगाई थी, जिसपर मैंने सिर्फ नोटिस दिया था, जो मेरे क्षेत्राधिकार में है और जब तक मैं कोई फैसला नहीं करता, तब तक यह मामला कोर्ट में नहीं जा सकता है।

इसके बावजूद कोर्ट ने मुझे दो बार इन याचिकाओं के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं करने के लिए निर्देशित किया गया। एक संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में मैं इन याचिकाओं के संबंध में आदेश पारित करने के लिए बाध्य हूं, लेकिन माननीय उच्च न्यायालय का सम्मान करते हुए मैंने इस संबंध में कोई निर्णय नहीं दिया है।

बतौर स्पीकर मैने हमेशा पद की गरिमा बनाए रखी और हमेशा यही प्रयास रखा कि लोकतांत्रिक परंपराओं और अधिकारों का संरक्षण हो। इस घटनाक्रम में मेरे अधिकारों में हस्तक्षेप हो रहा है तो न्यायपालिका से गतिरोध टालने का प्रयास भी किया, लेकिन संविधान में मिले अधिकारों का हनन ना हो, यह भी ध्यान रखा जाना जरूरी है।

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