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कोविड-19 महामारी और वैश्विक मंदी के दौर में पेश केंद्रीय बजट 2021-22 भारत को आत्मविश्वास से लबरेज कर आत्मनिर्भर बनायेगा

सुमित अग्रवाल

चार्टड अकाउंटेंट

कोविड-19 जैसी महामारी और वैश्विक मन्दी के मद्देनज़र पेश किया गया वित्त वर्ष 2021-22 का केंद्रीय बजट न केवल भारत को आत्मविश्वास से लबरेज कर आत्मनिर्भर बनायेगा बल्कि यह भारत के डिजिटल वातावरण में ढलने की क्षमता को दर्शाता है। असाधारण परिस्थितियो में पेश किया गया यह बजट देश की क्षतिग्रस्त अर्थव्यवस्था को न केवल मजबूती प्रदान करने वाला है बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक सिद्ध होगा।

अब तक बजट में राजकोषीय घाटे को के साथ रोटा, कपड़ा और मकान की जरूरतों को लक्षित किया जाता रहा है लेकिन इस बार के बजट में ऐसा नहीं किया गया। इस बार का बजट विकटतम परिस्थितियों में दो कदम आगे निकल गया है। इसमें रोटी, कपड़ा और मकान की आधारभूत आवश्यकता के साथ शिक्षा और मेडिकल को भी मुख्य जरूरतों में शामिल कर लिया गया है। इससे लोगों के जीवन स्तर पर में न केवल सुधार आने की संभावना है बल्कि रोगजार सृजन के भी अनेक अवसर पैदा होने वाले हैं।

सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बजट में करों के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की गई है। निस्संदेह आम आदमी को हर बार लगता है कि करों से उसे राहत मिलनी चाहिए और इसमें कुछ गलत भी नहीं है। लेकिन, इस बार जिस प्रकार अर्थव्यवस्था रुक गई है। सरकार  की आमदमी भी घट गई, ऐसे में करों का बोझ बढ़ने की आशंका व्यक्त की जा रही थी।

इस बार के बजट में सरकार ने किसी प्रकार के करों का बोझ ना बढ़ाकर आम आदमी को परोक्ष रूप से राहत ही दी है। इस बार के बजट में स्थिति ऐसी बनायी गई है कि सभी को काम करके दिखाना होगा। कोई भी अपनी जिम्मेदारियों विशेषतौर पर करों की जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता। कृषि. श्रम संबंधी कानूनों और करों संबंधी कानूनों को इतना सरलीकृत किया गया है, किसी का भी बच निकलना संभव नहीं रह गया है। हमारे चार्टड अकाउंटेंट्स समुदाय के लोग आश्चर्य कर रहे हैं, इतना जल्दी कैसे यह सब कर लिया गया है। हम लोगों पर अब काम का बोझ बढ़ गया है।

कुल मिलाकर केंद्रीय बजट 2021-22 के दिल में गांव और किसान हैं। उनकी आय बढ़ाने के पूरे-पूरे इंतजाम इस बजट में किये गये हैं। छोटे उद्योगों के लिए फंड के विशेष प्रावधान किये गये हैं। इस बजट को मनमोहन सिंह के 1992-93 के बजट के समान कहा जा सकता है, जिसने उदारीकरण का मार्ग प्रशस्त कर विकास के रास्ते खोल दिये थे।

तब तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करते हुए आयात कर को 300 से अधिकतम स्तर से 50 प्रतिशत कर दिया था। इस बार कुछ कदम आगे बढ़ते बजट में महत्वपूर्ण वस्तुओं पर आयात करों को कम करते हुए, भारत में निर्माण को प्रोत्साहित किया है। वास्तव में यह  बजट प्रत्येक वर्ग का समावेश कर सभी को आत्मविश्वास से भरकर आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त करेगा।

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