जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने में अभी काफी समय है, लेकिन भाजपा केंद्रीय नेतृत्व अभी से ही प्रदेश में महा ‘प्रयोग’ करने में जुट गया है। भाजपा में कहा जा रहा है कि यदि यह महाप्रयोग सफल रहा तो इसकी गूंज पूरे देश में होगी। राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय अध्यक्ष के दौरे के बाद भी प्रदेश भाजपा में चल रही उठापटक को देखते हुए कहा जा रहा है कि भाजपा राजस्थान में सत्ता का मोह त्यागकर संगठन को मजबूत करने की कोशिश कर सकती है।
भाजपा में इस बार आर या पार की लड़ाई चल रही है। राष्ट्रीय नेतृत्व चाहता है कि भले ही प्रदेश में सत्ता को तिलांजलि देनी पड़ जाए, लेकिन दो दशकों से अधिक समय से चली आ रही गुटबाजी को समाप्त करना ही पड़ेगा, तभी यहां संगठन मजबूत हो सकता है और कांग्रेस मुक्त राजस्थान के बारे में सोचा जा सकता है, क्योंकि भाजपा के लिए राजस्थान शुरूआती दौर से ही प्रभाव क्षेत्र रहा है और यहां भाजपा को भारी समर्थन मिलता आया है। गुटबाजी के कारण यहां हर पांच साल में सरकारें बदलने का क्रम चल निकला था, जिसे अब पूरी तरह से खत्म किया जाएगा।
भाजपा में पहले दबाव और पैसे के दम पर राजनीति हो रही थी और संगठन ऐसे नेताओं के दबाव में आ जाता था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व बदलने के बाद संगठन को मजबूत करने की दिशा में ज्यादा काम किया जा रहा है। इसलिए देशभर में ऐसे नेताओं को साइडलाइन किया जा रहा है, जो या तो दबाव की राजनीति करते हैं, या फिर पैसे की राजनीति। ऐसे में यदि राजस्थान में भाजपा दो फाड़ भी हो जाती है, तो केंद्रीय नेतृत्व को इसका गम नहीं होगा। यदि ऐसा हुआ तो राजस्थान के इस प्रयोग की देशभर में गूंज होगी और नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह प्रयोग नजीर बन जाएगा।
इसके पीछे सोच यही है कि भाजपा में अब किसी व्यक्ति विशेष को महत्व नहीं दिया जा रहा है, बल्कि संगठन और विचारधारा को मजबूत किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में महंत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना और हरियाणा में खट्टर की दोबारा ताजपोशी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कद्दावर नेताओं में शुमार होते हैं, लेकिन उन्हें भी आखिरकार संगठन की शरण में ही आना पड़ा।
सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व हो या फिर प्रदेश नेतृत्व सभी की निगाहें रविवार को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के जन्मदिन के अवसर पर होने वाले कार्यक्रमों पर रहेगी। राजे गुट की ओर से इन कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में शामिल होने के संदेश भेजे जा रहे हैं। ऐसे में देश व प्रदेशभर से कौन-कौन राजनेता और कार्यकर्ता इन कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं, इसपर नजर रहेगी। इन कार्यक्रमों की पूरी रिपोर्ट दिल्ली तक जाएगी। सूत्र बता रहे हैं कि इसी डर की वजह से राजे गुट के कुछ नेता जाने से भी कतरा रहे हैं।
यहां से बिगड़ी बात
सूत्रों का कहना है कि भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्ढा के जयपुर दौरे के समय राजे गुट ने जयपुर में मंदिरों के दर्शन के नाम पर छोटा शक्ति प्रदर्शन किया। इसके बाद राजे गुट को शक्ति प्रदर्शन जैसे कार्यक्रमों के लिए चेतावनी दे दी गई थी। दो दिन पूर्व राजे ने कोरोना वैक्सीन लगवाई और कहा जा रहा है कि इस दौरान उन्होंने प्रदेश सरकार के कार्यों की तारीफ कर दी, जिससे बात बिगड़ गई। इसके बाद ही प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को खुलकर खेलने का इशारा मिल गया और सरकार के खिलाफ सात दिवसीय हल्ला बोल कार्यक्रम तैयार हो गया।
कांग्रेस को है पूरी खबर
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा में चल रही उठापटक और महाप्रयोग की पूरी जानकारी कांग्रेस को है। तभी तो मुख्यमंत्री गहलोत बार-बार भाजपा नेताओं को टोक रहे हैं कि हमारे लिए क्या कहते हो पहले खुद का घर संभालो। गहलोत द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि प्रदेश में अगली सरकार भी उन्हीं की बनेगी। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में गुटबाजी नहीं है। कांग्रेस तो आस लगाए बैठी है कि जिस तरह भाजपा की गुटबाजी के कारण इस बार बिना काम करे हमारी सरकार बन गई, उसी प्रकार अगली बार भी हमारी ही सरकार बनेगी, क्योंकि भाजपा की गुटबाजी खत्म नहीं हो पा रही है।
परिवहन मंत्री ने हल्ला बोल को धार्मिक यात्रा चुनौति देने का एजेंडा बताया
उधर उपचुनावों में कांग्रेस को पछाड़ने के लिए भाजपा की ओर से सरकार के खिलाफ शुरू किए 7 से 14 मार्च तक हल्लाबोल कार्यक्रम को राजे की धार्मिक यात्रा को चुनौती देने का एजेंडा बताया है। खाचरियावास ने कहा कि भाजपा नेताओं का आपसी कलह और कांग्रेस के अच्छे बजट से दिमागी संतुलन बिगड़ गया है। राजे द्वारा धार्मिक यात्रा की घोषणा के साथ ही भाजपा की राजनीति में दो फाड़ हो गए हैं। अब राजे गुट और भाजपा संगठन पर काबिज नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने और अपनी ताकत का प्रदर्शन करने में लगे हुए हैं।