जयपुर

कौन बनेगा अधिकारियों का दलाल?

ठेकेदारों की लड़ाई में एसीबी ने की थी कार्रवाई

जयपुर। अमिताभ बच्चन के सीरियल का जुमला कौन बनेगा करोड़पति तो हर किसी की जबान पर है, लेकिन नगर निगम में करोड़पति बनने के लिए एक दूसरा ही जुमला काम में आता है और वह है ‘कौन बनेगा अधिकारियों का दलाल’। नगर निगम में लंबे अंतराल के बाद उच्चाधिकारियों की अदलाबदली हुई है। वहीं एक नया नगर निगम भी बना है, ऐसे में ठेकेदारों के बीच लड़ाई चल रही है कि अधिकारियों का दलाल कौन बनेगा?

कहा जा रहा है कि दलालों की इसी लड़ाई में नगर निगम हैरिटेज में ट्रेप की कार्रवाई हुई, लेकिन अब निगम के अधिकारियों की शामत आ गई है, क्योंकि अभी एसीबी को एक सिरा पकड़ में आया है। एसीबी जब निगम के भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों और ठेकेदारों के आपसी रिश्तों को खंगालेगी तो कई चौंकाने वाले खुलासे होने की संभावना है।

इस लिए होती है लड़ाई

सूत्रों का कहना है कि निगम में अधिकारियों का दलाल बनने के लिए काफी लड़ाई होती है। हर कोई ठेकेदार अधिकारियों का दलाल बनना चाहता है। कोई अधिकारियों का दलाल बनना चाहता है तो कोई महापौर या उपमहापौर का। उन्हें फायदा यह होता है कि जो भी दलाल बनता है वह निगम में होने वाले सभी कामों की कमीशन राशि सभी ठेकेदारों से इकट्ठा करके बड़े अधिकारियों तक पहुंचाता है। एसे दलाल की निगम के अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी चवन्नी चलने लगती है।

बिना काम के लाखों का फायदा

सूत्र कहते हैं कि यदि बड़े अधिकारी हर किसी से कमीशन की राशि नहीं लेते हैं, ऐसे में वह एक विश्वस्त ठेकेदार को अपना दलाल बना देते हैं। अधिकारी यदि दलाल को कहता है कि उसे हर बिल की राशि पर 1 फीसदी कमीशन चाहिए तो दलाल अन्य ठेकेदारों को कमीशन डेढ़ फीसदी बताते हैं। अन्य ठेकेदारों की सीधे उच्चाधिकारियों से कमीशन के बारे में बात करने की हिम्मत नहीं पड़ती, ऐसे में दलालों को बिना काम के लाखों का फायदा होता है। कहा जा रहा है कि निगम में सीईओ, डिप्टी सीईओ, महापौर , उप महापौर और विशेषकर इंजीनियरिंग शाखा के अधिकारियों के आस-पास उनके दलाल मंडराते रहते हैं।

अधिकारियों को चपत लगाने से नहीं चूकते

सूत्रों के अनुसार यदि ठेकेदारों का 10 करोड़ का बिल है तो दलाल ठेकेदारों से डेढ़ फीसदी के हिसाब से 15 लाख रुपए का कमीशन ले लेता है और अधिकारी को बिल की राशि में से एसडी, सेल्स टैक्स आदि का अमाउंट काट काट कर भुगतान कर देता है। एसडी, सेल्स टैक्स का अमाउंट करीब 15 फीसदी होता है। दलाल को पहले आधा फीसदी जो उसने कमीशन ज्यादा बताया था, उसका 5 लाख रुपया मिल जाता है। इसके बाद अधिकारी को देय कमीशन में एसडी, सेल्स टैक्स की 15 फीसदी कटौती करके 8 लाख 50 हजार रुपए अधिकारी को दे देता है और शेष बचे डेढ़ लाख रुपए खुद हजम कर जाता है। ऐसे में दलाल को 10 करोड़ रुपए के बिल में साढ़े छह लाख रुपए का फायदा होता है और यही कमाई ठेकेदारों के बीच रंजिश का कारण बनी हुई है।

इसलिए हुई ट्रेप की कार्रवाई

सूत्रों के अनुसार नगर निगम में कुछ ही समय पूर्व उच्चाधिकारियों का तबादला हुआ है और हाल ही में नगर निगम हैरिटेज भी बना है और वहां भी नए उच्चाधिकारी लगे हैं। इससे पूर्व जो उच्चाधिकारी थे उनकी दलाली का काम निगम की ही एक महिला अधिकारी करती थी, जिससे दलालों की कमाई रुक गई थी। महिला अधिकारी से निगम के अन्य अधिकारी और कर्मचारी भी परेशान थे। ऐसे में नए अधिकारी आने पर सभी ठेकेदार इन नए अधिकारियों के दलाल बनने की कोशिश में लगे हैं, ताकि उनकी कमाई का रास्ता खुल जाए। एसीबी के ट्रेप की कार्रवाई के बाद निगम में हवा उड़ रही है किसी दूसरे दलाल ने गोपी ठेकेदार की शिकायत की और उसकी सूचना पर एसीबी ने ट्रेप की कार्रवाई की।

अब ग्रेटर का नंबर

सूत्रों का कहना है कि हालांकि ट्रेप की कार्रवाई हैरिटेज में हुई, लेकिन कमीशन का असली खेल नगर निगम ग्रेटर में हुआ, क्योंकि हैरिटेज के पास वित्तीय अधिकार नहीं थे। जानकारी आई है कि दीपावली पर बिना दोनों निगमों के महापौरों की सहमति के ठेकेदारों को भुगतान करने के बाद ही हैरिटेज को वित्तीय अधिकार प्रदान किए गए हैं। दोनों निगमों के ठेकेदारों को जो भुगतान हुआ, वह ग्रेटर से ही हुआ है। हैरिटेज के अधिकारियों को कमीशन की राशि ग्रेटर से ही पहुंचाई जा रही थी। सुनने में आ रहा है कि ट्रेप की कार्रवाई के बाद दोनों निगमों के कई अधिकारी लंबी छुट्टियों पर जा सकते हैं। छुट्टियों के लिए कोरोना का बहाना बनाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि क्लियर न्यूज ने सबसे पहले दोनों निगमों में बिना महापौर की सहमति के ठेकेदारों को भुगतान का मामला उजागर किया था।

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