जयपुर

क्या राजे बनेंगी राजस्थान में मुख्यमंत्री पद का चेहरा? कांग्रेस हो या भाजपा मुख्यमंत्री का चेहरा बनना नहीं है आसान

जयपुर। भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से ऐन पहले कोटा, भरतपुर और जयपुर संभाग के भाजपा नेताओं की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को फिर मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की मांग उठाई गई है। राजनीतिक गलियारों में इस मांग के गहरे अर्थ लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस हो या भाजपा मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनना आसान काम नहीं है। ऐसे में जो दावा कर रहे हैं, उन्हें दरकिनार किया जाना खतरनाक हो सकता है।

मुख्यमंत्री का चेहरा बनने की परंपरा कहां से शुरू हुई, यह कहा नहीं जा सकता, लेकिन कांग्रेस ने प्रदेश में आज तक किसी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया। इतिहास में झांके तो भाजपा में पहले भैरोंसिंह शेखावत और उसके बाद वसुंधरा राजे को प्रमुख चेहरा माना जाता रहा है। जबकि कांग्रेस में पहले मिर्धा और मदेरणा परिवार और उसके बाद अशोक गहलोत को सर्वमान्य चेहरा माना गया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि यह परंपरा संविधान सम्मत नहीं है, क्योंकि संविधान में मुख्यमंत्री चुनने का हक विधायकों के पास होता है और चुनावों के बाद बहुमत वाली पार्टी के विधायक मिलकर मुख्यमंत्री का चुनाव करते हैं। चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करना जनादेश को प्रभावित करने वाला माना जा सकता है। कहीं न कहीं इस परंपरा से पूंजीवाद को बढ़ावा भी मिलता है। क्योंकि वर्तमान में चुनावों का खर्च इतना बढ़ गया है कि चुनाव लड़ाने के लिए पूंजीवादी व्यवस्था का सहारा लेना ही पड़ता है।

मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनना आसान काम इस लिए नहीं कहा जा सकता है कि इसके लिए दावेदार को कई कसौटियों पर खरा उतरना पड़ता है। मुख्यमंत्री पद का चेहरा वही बन सकता है, जो पूरे प्रदेश में 36 कौम का चेहरा बनकर उभरे, उसके साथ प्रदेश के सभी क्षेत्रों के नेताओं का सहयोग हो, पार्टी आलाकमान से सीधा संपर्क हो, जो जनता से सीधा संवाद करे, दावेदार चेहरे पर जातिवादी राजनीति का ठप्पा नहीं हो।

क्योंकि यदि कोई जातिवादी नेता मुख्यमंत्री बनता है तो अन्य कौमों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। जिस जाति का मुख्यमंत्री चेहरा हो, उस जाति को सैक्रिफाइस के लिए तैयार रहना चाहिए। साथ ही इसी चेहरे पर निर्भर रहता है कि कौन चुनाव लड़ेगा और उसे कैसे चुनाव लड़ाया जाएगा, खर्च किस तरह से वहन होगा, क्योंकि जब पार्टियां जिला स्तर पर कोई पद देती है तो उसमें भी पहले देखती है कि दावेदार सक्षम है या नहीं।

राजस्थान के वर्तमान राजनीतिक परिदृष्य को देखें तो वर्तमान में राजे के अलावा अन्य कोई नेता इन पैरामीटर्स में सैट नहीं बैठ रहा है। भाजपा में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर रहा कोई भी चेहरा प्रदेश में 36 कौम का चेहरा बनकर सामने नहीं आ पा रहा है। पिछले दो दशक में प्रदेश में स्थापित नेता के रूप में उभरे सभी राजे के साथ हैं। राजनाथ सिंह, नितिन गड़करी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण वह पार्टी आलाकमान के सीधे संपर्क होने के साथ नागपुर में भी उनकी सीधी पकड़ है।

रही बात चुनाव लड़ने और लड़ाने की तो इसमें भी राजे खेमा ही सबसे पॉवरफुल नजर आ रहा है। अन्य चेहरे खुद तो चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन वह किसी को चुनाव लड़वा नहीं सकते। इसके लिए उन्हें केंद्र की तरफ देखना ही पड़ेगा। ऐसे में यदि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राजे को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं करता है तो अगले विधानसभा चुनवों में प्रदेश में भाजपा की हार-जीत की सभी जिम्मेदारी केंद्रीय नेतृत्व की रहेगी, क्योंकि फिर चुनाव केंद्रीय नेताओं के चेहरों पर लड़ा जाएगा और प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने की सिरदर्दी भी केंद्र की होगी।

विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा की संस्थापक सदस्य विजया राजे सिंधिया की नैसर्गिक उत्तराधिकारी के रूप में राजे को देखा जाता है। उनका प्रभाव राजस्थान ही नहीं मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तक है। ऐसे में मध्यप्रदेश में सत्ता के लिए भाजपा के लिए राजस्थान में राजे की उपस्थिति जरूरी हो जाती है। राजे के बिना मध्यप्रदेश में सत्ता समीकरण बिगड़ सकते हैं।

उधर दूसरी ओर अशोक गहलोत मुख्यमंत्री पद पर हैं, लेकिन उनको सचिन पायलट की ओर से लगातार चुनौती दी जा रही है। कहा जा रहा है कि पिछली भाजपा सरकार की कमियों और कांग्रेस की पूर्व सरकारों द्वारा किए गए काम के कारण ही इस बार वह सत्ता में आ पाए है। कांग्रेस की पूर्व की सरकारों की बात करें तो इससे पहले भी गहलोत की सरकार थी और वह पूरे प्रदेश के सर्वमान्य नेता के रूप में माने जाते हैं।

प्रदेश में गहलोत के अलावा किसी अन्य नेता की आज तक पार्टी आलाकमान तक सीधी पहुंच नहीं है। प्रदेश के सभी संभागों के बड़े नेताओं पर पकड़ के साथ कांग्रेस में वही एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो दूसरों को भी चुनाव लड़वा सकते हैं।

भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी से एक दिन पूर्व भाजपा खेमे की ओर से केंद्रीय नेतृत्व को इशारा दे दिया गया है कि वह जो भी कदम उठाए सोच समझ कर ही उठाए। शनिवार को वसुंधरा खेमे के बड़े चेहरों में से पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी, पूर्व मंत्री राजपाल सिंह शेखावत और यूनुस खान ने भरतपुर के उन धार्मिक स्थलों का दौरा किया जहां 8 मार्च को राजे की ओर से जन्मदिन के अवसर पर शक्ति प्रदर्शन किया जाएगा। जन्मदिन के अवसर पर राजे तीन सभाओं को संबोधित करने वाली है।

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